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सूर्य ग्रहण (Surya Grahan)

Surya garhan
Surya garhan

जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तब सूर्य कुछ समय के लिए चंद्रमा के पीछे छुप जाता है। इसी स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में सूर्य ग्रहण कहते हैं। ग्रहण को हिन्दू धर्म में शुभ नहीं माना जाता है।

धर्म के अनुसार सूर्य ग्रहण (Surya Grahan Katha)

मत्स्य पुराण में सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की कथा का संबंध राहु-केतु और उनके अमृत पाने की कथा से है। कथा के अनुसार जब मोहनी रूप धारण कर विष्णु जी देवताओं को अमृत और असुरों को वारुणी (एक प्रकार की शराब) बांट रहे थे तब एक दैत्य स्वरभानु रूप बदलकर देवताओं के बीच जा बैठा। वह सूर्य और चन्द्रमा के बीच बैठा था। जैसे ही वह अमृत पीने लगा सूर्य और चन्द्रमा ने उसे पहचान लिया और विष्णु जी को बता दिया।

विष्णु जी ने तत्काल उस राक्षस का सर धण से अलग कर दिया। राक्षस का सर राहु कहलाया और धण केतू। कहा जाता है कि जैसे राहु का सर अलग हुआ वह चन्द्रमा और सूर्य को लीलने के लिए दौड़ने लगा लेकिन विष्णुजी ने ऐसा नहीं होने दिया। उस दिन से माना जाता है कि जब भी सूर्य और चन्द्रमा निकट आते हैं तब उन्हें ग्रहण लग जाता है।

सूर्य ग्रहण के समय क्या न करें (Rituals During Solar Eclipse )

  • घर में रखे अनाज या खाने को ग्रहण से बचाने के लिए दूर्वा या तुलसी के पत्ते का प्रयोग करना चाहिए।
  • ग्रहण समाप्त होने के बाद तुरंत स्नान कर लेना चाहिए। इसके साथ ही ब्राह्मण को अनाज या रुपया दान में देना चाहिए।
  • ग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिए।
  • मान्यता है कि गर्भवती स्त्री को ग्रहण नहीं देखना चाहिए।
  • भगवान शिव को छोड़ अन्य सभी देवताओं के मंदिर ग्रहण काल में बंद कर दिए जाते हैं।

सूर्य ग्रहण क्यों होता है?

वैज्ञानिकों के अनुशार किसी खगोलीय पिण्ड का पूर्ण अथवा आंशिक रुप से किसि अन्य पिण्ड से ढक जाना या उस पिण्ड के पीछे आ जाना ग्रहण कहलाता हैं। खगोलीय पिण्ड किसी अन्य पिण्ड ढक जाने पर नजर नहीं आता तो, उसे ग्रहण कहां जाता हैं।

सूर्य ग्रहण तब कहां जाता हैं, पृथ्वी और सूर्य के बीच में चन्दमा के आजा ने पर सूर्य ढंक जाता हैं, और पृथ्वी के कुछ हिस्सो पर से सूर्य का नजर नहीं आना सूर्य ग्रहन कहलाता हैं। जब सूर्य पूर्ण रुप से या आंशिक रुप से चन्द्र द्वारा ढक जाने पर सूर्य नजर नहीं आता तो, उसे सूर्य ग्रहण अथवा आंशिक सूर्य ग्रहण कहां जाता हैं।

सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते है।

पूर्ण सूर्य ग्रहण

जब चन्द्रमा पूरी तरह से पृथ्वी को अपनी छाया में ले लेता हैं, तब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता हैं। इसके फलस्वरुप सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंच नहीं पाता हैं और पृथ्वी पर अंधकार कि स्थिति हो जाती हैं। इस प्रकार बनने वाले ग्रहण को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहां जाता हैं।

आंशिक सूर्यग्रहण

चन्दमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया से ढंक पाता तो उसे आंशिक सूर्यग्रहण कहा जाता हैं।

वलय सूर्यग्रहण

चन्द्र सूर्य को इस प्रकार से ढक लेता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता हो, तो उसे वलय सूर्यग्रहण कहां जाता हैं। इस ग्रहण में सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन के समान प्रतीत होता हैं।

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