एक बार अमरीका के एक छोटे शहर में मेला लगा। उस शहर में काले-गोरे दोनों रंग के लोग रहते थे। मेले में एक रंग-बिरंगे गुब्बारे बेचनेवाला व्यक्ति भी आया हुआ था। उसके गुब्बारों में हीलियम गैस भरी होने के कारण आकाश में उड़ रहे थे। जिनका एक सिरा उसकी दुकान से बंधा हुआ था। जब कभी उसकी बिक्री कम होने …
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किसी को भी कमतर न आंके
एक बार चौड़े रास्ते ने पगडंडी से कहा, ‘मुझे लगता है कि तुम मेरे आसपास ही चलती हो।’ पगड़ंगी ने विनम्रता से कहा, ‘नहीं मालूम, तुम्हारे रहते लोग मुझ पर ही चलना क्यों पसंद करते हैं। जब कि मैं तुमसे काफी छोटी हूं।’ उसी समय संयोगवश एक वाहन आकर रुका। सामने एक छोटा सा पुल था। जिस पर बोर्ड लगा …
Read More »आचार्य बहुश्रुत के शिष्यों की कांटों भरी अंतिम परीक्षा
एक बार गुरुकुल में तीन शिष्यों की विदाई का अवसर आया तो आचार्य बहुश्रुत ने कहा की सुबह मेरी कुटिया में आना। तुम्हारी अंतिम परीक्षा होगी। आचार्य बहुश्रुत ने रात्रि में कुटिया के मार्ग पर कांटे बिखेर दिए। सुबह तीनों शिष्य अपने-अपने घर से गुरु के निवास की ओर चल पड़े। मार्ग पर कांटे थे। लेकिन शिष्य भी कमजोर नहीं …
Read More »अपने हर काम में कुछ इस तरह ढूंढें आनंद
एक गांव में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। उधर से एक संत गुजरे। उन्होंने एक मजदूर से पूछा- यहां क्या बन रहा है? उसने कहा- देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं? संत ने कहा- हां, देख तो रहा हूं। लेकिन यहां बनेगा क्या? मजदूर झुंझला कर बोला- मालूम नहीं। यहां पत्थर तोड़ते-तोड़ते जान निकल रही है और …
Read More »हर माँ की कहानी
तुम माँ के पेट में थे नौ महीने तक, कोई दुकान तो चलाते नहीं थे, फिर भी जिए। हाथ—पैर भी न थे कि भोजन कर लो, फिर भी जिए। श्वास लेने का भी उपाय न था, फिर भी जिए। नौ महीने माँ के पेट में तुम थे, कैसे जिए? तुम्हारी मर्जी क्या थी? किसकी मर्जी से जिए? फिर माँ के …
Read More »परमहंस ने बताया सांसारिक बंधनों से ऐसे पाएं छुटकारा
एक बार रामकृष्ण परमहंस नदी के घूम रहे थे। उनके साथ उनके कुछ शिष्य भी थे। रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों से बातें कर रहे थे। नजदीक ही नदी के किनारे अनेक मछुआरे मछलियां पकड़ रहे थे। कभी मछलियां मछुआरों के हाथ लग जातीं, तो कभी निराशा उनके हाथ लगती। रामकृष्ण परमहंस जाल में फंसी मछलियों की गतिविधियों को बड़े ध्यान …
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