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एक लापरवाह लड़के की कहानी !!

जब भी सूरज पढ़ने के लिए किताबें निकालता तो उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। किताबे खोलते ही उसे बाहर जाकर अपने दोस्तों के साथ मस्ती करने का मन करता है। उसके माँ ने उसे खेलने के लिए कभी रोका नहीं, सिर्फ इतना समझाता रहता था की खेलने के साथ साथ पड़ना भी जरुरी होता है। पर सूरज का बिगड़ैल मन हमेशा उल्टा ही करता था।

जब उसके सभी साथी स्कूल से आकर थोड़ा सुस्ताकर पड़ने बैठ जाते और शाम को खेलने निकलते, वही सूरज स्कूल से आकर टीवी देखने लग जाता और शाम होते ही खेलने निकल जाता। पढ़ाई पर मन न लगने की वजह से क्लास की परीक्षा में बड़ी ही मुश्किल से पास हो पाया। इतने कम नंबर देखकर उसके माँ ने उसे खूब डाटा और पड़ने के लिए जोर देने को कहा। माँ  के डर से सूरज पड़ने तो बैठ जाता पर उसका चंचल मन पढ़ाई में उसका  साथ नहीं देता था।

एक शाम उसकी माँ ने उसे बताया की धोबी अभी तक उसकी स्कूल यूनिफार्म लेकर नहीं आया। और अगर नहीं आया तो अगले दिन वह स्कूल नहीं जा पायेगा। उसके माँ ने उसे बताया की सायद धोबी बीमार पड़ा होगा। माँ ने सूरज को उसकी स्कूल यूनिफार्म लाने के लिए धोबी के घर जाने को कहा।

धोबी का घर पास ही एक बस्ती में था इसलिए सूरज पैदल ही चल पड़ा। उस बस्ती में काफी गरीब लोग रहते थे। उस बस्ती में तो कई घरो में बिजली भी नहीं थी लेकिन सड़को पर बिजली के खंबे लगे थे, जो चारों तरफ रौशनी फैला रहे थे।

जब सूरज धोबी के घर पहुंचा तो देखा की उसकी माँ का कहना सही था। धोबी बीमार पड़ा था इसलिए स्कूल यूनिफार्म लेकर नहीं आ पाया। सूरज ने धोबी से अपनी यूनिफार्म ली और घर की तरफ चल पड़ा। सूरज रास्ते पर चल रहा था की तभी उसकी नजर एक खंबे के निचे बैठे एक लड़के पर पड़ती है, जो किताबे खोलकर पड़ रहा था।

उसकी लगन देखकर सूरज उसके पास गया और उससे कहा, आखिर तुम इतनी रात को सड़क पर बैठकर क्यों पड़ रहे हो?” उस लड़के ने कहा, “दिन भर मैं अपने पिता के साथ घर घर जाकर सब्जी बेचता हूँ। और फिर  पहर के स्कूल में पड़ने जाता हूँ। शाम को घर आकर घर के कामों में माँ का हाथ बटाता हूँ। क्युकी उसका परिवार बिजली का खर्चा नहीं उठा पाता है इसलिए रात का खाना खा कर यही पड़ने बैठ जाता है।”

उसकी बातें सुनकर सूरज को बहुत बुरा लगा और मन ही मन वह रो पड़ा। उसने अपने आप से कहा, “कहाँ मैं दिन भर टीवी देखता और खेलता रहता हूँ, और कहाँ यह जो माँ और अपने पिता के कामो में हाथ बटाने के बाद  भी सड़क पर बैठा पढ़ाई कर रहा है।”  उस लड़के की लगन को देखकर सूरज का सिर शर्म से झुक गया।

उसकी कदम तो घर के तरफ चल रहे थे लेकिन मगर उसका मन वही बैठा हुआ था। घर पहुंचने तक उसने यह थान लिया था की आज से पढ़ाई में पूरा मन लगाकर पढ़ेगा। सूरज के इस फैसले ने मानो उसे पूरी तरह से बदल दिया। सूरज सिर्फ पास ही नहीं हुआ बल्कि अपने स्कूल के बार्षिक परीक्षा में फर्स्ट आया।

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