क्या सच में किसी धोबी के कहने पर राम जी ने सीता जी को वनवास भेजा था ,,,,,,
राम जी ने कभी सीता से नही कहा की तुम वनवास चली जाओ ,पति की व्याकुलता राजा का कर्तव्य प्रजा की कहा सुनी इन सब में राम जी कही अंदर ही अंदर पीस रहे थे ,उन्हे राजा का कर्तव्य भी निभाना था और पति धर्म भी ,,उनकी निराशा सीए जी से देखी नही गई बार बार पूछने पर भी राम जी ने नही बताया कि अयोध्या वासी नगर में क्या काना फूसी कर रहे हे,,
सीता जी ने अपनी दासी से पता लगवाया की समयसा क्या हे ,,दासी ने कहा कि नगर में सब अबसब्द केह रहे ही की जो लंका में रावण के साथ इतने महीने रही है क्या वो नारी पवित्र हो सकती है राम जी छोड़ क्यों नही देते सीता को ,,,,सुनकर जानकी के पैरो तले जमीन खिसक गई फिर पति की व्याकुलता समझ आई ,की उनको राज धर्म भी निभाना है और पति धर्म भी ,मुझे छोड़ नही सकते यही उनकी सबसे बड़ी समयस्या हे,,,,सीता जी ने खुद वन जाने का निर्णय लिया क्यों की वो पति को दुखी नही देख सकती थी,,,
राम जी को कसम दी की आप मुझे रोकेंगे नही लक्ष्मण को बुलाया गया और सीता जी ने आदेश दिया की मुझे वन में छोड़ आओ ,,, यहां एक दूसरे के प्रति त्याग प्रेम साफ दिखता है ,,,पर लोग आज भी कहते है की राम ने सीता को छोड़ दिया,,,,,,,
एक बार ससुराल जनकपुर से बुलावा आया राम जी गए ना सास ने कुछ पूछा ना ससुर ने कुछ कहा क्यों की वो लोग राम को जानते थे ,,पर एक दासी ने जरूर कहा ,,,,जब दासी राम जी के लिए जलपान लेकर उनके कक्ष में गई तो दासी के चेहरे पर उदासी थी ,राम जी ने कहा में जानता हु तुम सीता की सबसे प्रिय सखी हो और उसके लिए चिंतित भी जो कहना है कह दो ,,,,दासी ने कहा ,,
में जनकपुर के सभी दीवारों पर ये लिख देना चाहती हू की जनकपुर वालो अयोध्या में अपनी बेटी मत ब्याहना वो उनका मोल नही जानते ,दो लब्जो में दासी बहुत कुछ कह गई थी ,,राम जी चुप चाप सुन रहे थे
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रामशरण ने कहा-" सर! जब मैं गांव से यहां नौकरी करने शहर आया तो पिताजी ने कहा कि बेटा भगवान जिस हाल में रखे उसमें खुश रहना। तुम्हें तुम्हारे कर्म अनुरूप ही मिलता रहेगा। उस पर भरोसा रखना। इसलिए सर जो मिलता है मैं उसी में खुश रहता हूं