नेकराम और उसकी पत्नी रुक्मणि एक छोटे से गांव में रहते थे। वह दोनों अपने खेत में अनाज की फसल लगाते और जब फसल पक जाती तो उसे मंडी में बेचकर अपना पालन-पोषण करते थे। फसल लगाने से पहले खेत की खुदाई करनी पड़ती है, जो एक बहुत परिश्रम भरा कार्य होता है। बीज लगाना या सींचना या पकी फसल को काटना इतना कठिन नहीं होता। इस साल नेकराम ने सोचा, “क्यों न इस साल खेत की खुदाई बिना अपनी मेहनत लगाए की जाए। किसी को खुदाई का काम दिया तो बहुत से पैसे देने पड़ेगे।”
नेकराम पैसे भी खर्च नहीं करना चाहता था और यह भी चाहता था की इस साल खुदाई पर मेहनत न करनी पड़े। काफी सोचने के बाद एक विचार उसके दिमाग में आया। अपनी योजना के अनुसार उसने रुक्मणि को कहा, “मोहल्ले भर यह खबर फैला दो की नेकराम के खेत में खूब सा धन गड़ा हुआ है।”
रुक्मणि ने अपनी सहेलियों और गांव की औरतों में यह बात फैला दी और यही बात औरतों दुयारा पल भर में पुरषों के कान में भी पड़ गई। उसी रात बहुत से धन मिलने के लालच में गांव के सभी पुरुष खेत में पहुँचे और पूरा का पूरा खेत खोद डाला। लेकिन गड़ा धन किसी को नहीं मिला। सब थक हारके अपने अपने घर लौट आए।
अगली सुबह, जब नेकराम उठा और अपने खेत को खोदा हुआ पाया तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसे अपनी चतुर बुद्धि पर गर्भ होने लगा। उसने तुरंत बीजों की गठरी उठाई और खेत में जाकर बीज बो दिए। उसे बीज बोता देखकर गांव वाले अपने को ठग सा महसूस समझने लगे।
वह समझ गए की नेकराम ने धन दबा होने की बात फैलाकर उन्हें मुर्ख बनाया है। लेकिन गांव वाले कुछ कर भी नहीं सकते थे इसलिए खामोश रहे। कुछ महीने बाद नेकराम की खेत पकी हुई फसल से लहरा रहे थे। बस उन्हें काट कर मंडी में बेचना ही बाकि रह गया था। नेकराम ने सोचा, “कल से कटाई शुरू करूँगा।” यह सोच वह खाना खा कर सो गया।
अगली सुबह, जब नेकराम उठा और हाथ-मुँह धो कर जब खेत पर पहुँचा तो वह हैरान रह गया। उसने देखा सारी फसल कटी पड़ी थी और इतनी बुरी तरह से कटी गई थी की कोई भी उस अनाज को नहीं खरीदता। उसकी महीनो की मेहनत पर एक ही रात में किसी ने पानी फेर दिया।
उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की किस दुश्मन ने ऐसा किया है। उसने फिर अपनी पत्नी रुक्मणि से पता लगाने को कहा। रुक्मणि जब अपनी सहेलियों से मिली तो पता चला की कल रात किसी ने गांव में खबर फैला दी थी की नेकराम ने अपनी फसल में बहुत सा धन छुपा रखा है इसलिए छिपे धन को ढूंढ़ने के लिए सब गांव वालों ने उसके फसल को तहस-महस कर दिया। उधर नेकराम अपने किए पर पछता रहा था और इधर गांव वाले लोग उसे सबक सिखाने पर जश्न मना रहा था।
इस कहानी से यह समझ चुके होंगे की दुसरो को ठगने की कोशिश करने वाला एक न एक दिन पकड़ा ही जाता है और उसे पछताना पड़ता है।