1971 के अंतिम महीनों में यह तय हो चुका था भारत और पाकिस्तान का युद्ध किसी भी दिन शुरू हो सकता है। दोनों देशों के रणनिति कार युद्ध की रूप रेखा पर दिन रात लगे हुऐ थे। सैनिकों और युद्ध सामग्रियों को देखते हुऐ भारत का पलड़ा बहुत भारी था।
भारत के पास उस समय नौ सेना की शान विमान वाहक पोत विक्रांत भी था जो युद्ध का पाँसा पलटने में पूरी तरह समर्थ था और पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता विक्रांत को लेकर थी। पश्चिम पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान का सम्पर्क केवल समुद्री मार्ग से ही था क्योंकि भारत ने पाकिस्तान को अपने वायु क्षेत्र से गुजरने की अनुमति बहुत पहले ही बंद कर दी थी ।
पाकिस्तान के पास उस समय एक अत्याधुनिक एव दूर तक मार करने वाली पनडुब्बी गाजी थी जो उसे अमेरिका ने लीज़ पर दी थी। नवंबर के द्वितीय सप्ताह में पाकिस्तानी नौसेना को हमारे विक्रांत को तहस नहस करने का आदेश मिला और उन्होंने इस काम पर गाजी को लगाया ।
पाकिस्तान को अपने सूत्रों से पता चला कि विक्रांत उस समय मुंबई में है। गाजी पनडुब्बी विक्रांत पर आक्रमण करने के लिए निकल चुकी थी। इस बीच हमारी इटेलिजेस सर्विस ने पाकिस्तान के रेडियो संदेशों को डीकोड करने में सफलता हासिल कर ली थी तो उन्हें गाजी पनडुब्बी के मूवमेंट की पल पल की ख़बरें मिलने लगी थी तो नौ सेना ने तत्काल विक्रांत की लोकेशन बदल कर उसे मद्रास पहुँचा दिया।
गाजी पनडुब्बी ने तब मद्रास का रूख किया तो हमारी नौ सेना ने विक्रांत को विशाखा पट्टनम पहुँचा दिया। गाजी पनडुब्बी तब विशाखा पट्टनम के तट की और बढ़ने लगी और दिनांक 1 दिसंबर को तट से 2.1 नॉटिकल माईल तक पहुँच कर आक्रमण करने का सही अवसर के ताक में रहने लगी।
दिनांक 3-4 दिसंबर की रात्रि को जब इंदिरा जी रेडियो पर युद्ध शुरू होने का राष्ट्र के नाम संबोधन कर रही थी तो तभी विशाखा पट्टनम समुद्री तट के पास एक ज़ोरदार धमाका हुआ और गाजी पनडुब्बी को हमारी नौ सेना के जवानों ने जल समाधि दे दी। दरअसल गाजी पनडुब्बी की हर हरकत पर हमारी नौसेना नज़र रख रही थी और जैसे ही युद्ध का एलान हुआ उसे तबाह कर पाकिस्तानी नौ सेना की रीढ़ तोड़ डाली थी और पाकिस्तान आज तक यह समझ ही नहीं पाया कि गाजी जैसी शक्तिशाली पनडुब्बी को भारत ने इतनी आसानी से कैसे तबाह कर डाला था।
पाकिस्तानी पनडुब्बी को धोखा देने के लिए हमारी नौसेना ने पहले ही विक्रांत को विशाखा पट्टनम से हटाकर अंडमान भेज दिया था और उसकी जगह एक पुराने युद्ध पोत को खड़ा कर दिया था।
युद्ध समाप्त होने के बाद पाकिस्तान ने पनडुब्बी के अवशेषों को समुद्र से निकालने व उसकी जॉच करने के लिये भारत से अनुरोध किया था जिसे इंदिरा जी ने सख़्ती से नामंज़ूर कर दिया था।
अमेरिका को भी हैरत थी कि उसकी मज़बूत पनडुब्बी कैसे तबाह हो सकती हैं। अमेरिका ने भी इंदिरा जी से अनुरोध किया था कि पनडुब्बी तो उसकी है जो उसने पाकिस्तान को लीज़ पर दी थी तो उसे पनडुब्बी के अवशेष समुद्र से निकालने की इजाज़त दी जाये तो इंदिरा जी ने अमेरिका को भी इजाज़त नहीं दी थी।
क्योंकि पनडुब्बी को भारतीय नॉटिकल एरिया में उड़ाया गया था । अमेरिका भी मन मसोस कर रह गया था और बाद में अमेरिका और पाकिस्तान ने यह खबर फैलायी कि गाजी पनडुब्बी को भारतीय नौसेना ने तबाह नहीं किया था बल्कि हाइड्रोजन गैस के दबाव अधिक होने के कारण उसमें विस्फोट हो गया था ।
गाजी पनडुब्बी पर एक फ़िल्म भी बनी है नाम है ‘ गाजी अटैक ‘ ।