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डीडी कोसाम्बी की इतिहास दृष्टि

अभी कुछ दिनों पहले इतिहास लेखन वाले भाग में मैंने लिखा था कि 1950 के दशक में मार्क्सवादी इतिहास लेखन का उदय हुआ, जिसका प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन में सबसे प्रभावशाली भूमिका रही। मार्क्सवादी इतिहास लेखन पर अधिकाँश लोग ये आरोप लगाते हैं कि इसने प्राचीन भारतीय इतिहास को विकृत कर दिया लेकिन इस लेखन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि इसके वजह से भारतीय इतिहास को राजनीतिक आख्यानों से अलग सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं और प्रक्रियाओं के अध्ययन के तरफ मोड़ा जा सका, विशेषकर वर्ग विभाजन, कृषि सम्बन्धों और किसान मजदूर वर्गों के इतिहास को उचित स्थान मिल सका। सदियों से दबे-कुचले समुदायों को भी इतिहास ने अपने अध्ययन के दायरे में ले लिया। हाँ इसकी कुछ सीमाएं भी रही हैं। मार्क्सवादी इतिहासकारों में डीडी कौशाम्बी (1907-66) का नाम अग्रणी है जो न केवल इतिहासकार थे बल्कि एक महान गणितज्ञ और राजनीतिक विचारक भी थे। इन्होंने अपने ग्रन्थों एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ कल्चर एंड सिविलाइजेशन और एनशिएंट इंडियन कल्चर एंड सिविलाइजेशन में इतिहास की भौतिक वादी व्याख्या प्रस्तुत की। इन्होंने ही सर्वप्रथम जनजातियों और वर्गों की प्रक्रियाओं की दृष्टि से सामाजिक और आर्थिक विकास की अवस्थाओं का सर्वेक्षण किया।

इनके जन्मदिन पर सुनील सिंह इनके बारे में लिखते है ~

डी०डी०कोसाम्बी: भारत के गणितज्ञ, मार्क्सवादी इतिहासकार तथा राजनीतिक विचारक
व्यवहारिकतावादियों और बाहुबलियों के दौर में विचारक सिर्फ मनोरंजन के लिए होते हैं. यही कारण है कि आज डी डी कोसांबी के जन्मदिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है.उनके जन्मदिन के सौवें साल में मुश्किल से एक दो समारोह हुए थे. डी०डी०कोसांबी एक महान गणितज्ञ थे और अन्तिम समय तक मार्क्सवादी विचारधारा के प्रति उनका आसक्ति बनी रही. यह एक असाधारण यात्रा थी. अगर गणित के क्षेत्र में उनका योगदान को देखा जाय तो महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम के बाद भारत में वह इस स्तर के दूसरे महान गणितज्ञ हुए. उनकी गणितीय गवेषनाएँ प्रमुखत: प्रायिकता सिद्धांत (Probability Theory) ,पथ ज्यामिती (Path Geometry) और प्रदिश विश्लेषण(Tensor Analysis) से संबन्धित था. गणित के इन विषयों का सम्बन्ध आइंस्टीन के व्यापक आपेक्षिकता के सिद्धांत (General Relativity Theory) और एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत( Unified Field Theory) से बुनयादी सम्बन्ध रहा है. गणित के क्षेत्र में उनके योगदान की तारीफ अर्न्तराष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक जैसे ब्रिटिस वैज्ञानिक जी०डी० बर्नल तक ने की. बर्नल ने कोसांबी की वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ-साथ विश्व शांति के लिए उनके प्रयासों की भी सराहना की. एक लेखक के तौर पर मैं (जी०डी०बर्नल) खुद को उस हैसियत में नहीं पाता, जो विज्ञान के क्षेत्र में डीडी कोसांबी के योगदान की अहमियत की समीक्षा करे.
सन् 1949 में कोसांबी को प्रिस्टन के उच्च अध्ययन संस्थान में आमंत्रित किया गया था. उस समय आइंस्टीन और कोसांबी के बीच एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत पर कई बार चर्चाएँ हुई. इनकी विद्वता,सादगी और उच्च विचार का आलम यह था कि तीस के दशक में सर्वेंटस आफ इंडियन सोसाइटी के संक्षरण में उन्हें पूना के फर्गूसन कालेज में निमंत्रण मिला. इस कालेज में वह अपनी कैरियर का बेहतरीन दौर को देखा जिसका परिणाम यह था कि सन1942 में उन्हें होमी जहांगीर भाभा की ओर से टाटा इंस्टीच्युट आफ फंडामेंटल रिसर्च(Tata Institute of Fundamental Research)में शोध के लिए निमंत्रण मिला. लेकिन सन् 1962में भारत चीन युद्ध के दौरान कन्युनिष्ट विरोधी मुहिम के तहत उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. इतने बड़े गणितज्ञ के साथ यह व्यवहार किया गया क्योंकि वह एक मार्क्सवादी विचारक थे. अमेरिका में जिस प्रकार मेकार्थीवाद का दौर चला जिसके शिकार आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक हुए. कुछ ऐसा ही दौर उस समय भारत में चला. हार्वड से उच्चतम उपाधि पाने के बाद वह अमेरिका में एक ऐसी जिंदगी जी सकते थे जो हर तरह की सुख सुविधा वाला हो ,एक के बाद दूसरी इनाम पाना कोई बड़ी बात नहीं होती और सामाजिक प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती. लेकिन देशप्रेम ने उन्हें भारत लौट के लिए मजबूर कर दिया. वह वर्षों शोध में लगे रहे और बाद में अलीगढ़ और बनारस विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य से जुड़े गए. कोसांबी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि अपनी जिंदगी की यात्रा में वह हरेक कदम पर एक क्षेत्र की समाप्ति के बाद दूसरी क्षेत्र में शोध शुरू किए. गणित से सांख्यिकी, सांख्यिकी से मुद्राशास्त्र, मुद्राशास्त्र से पुरातत्व और अन्त में मार्क्स के सामाजिक गति के नियम जो स्पष्ट है, तार्किक है, सम्बंद्ध है और जिसमें इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, जीव- विज्ञान, साहित्य आदि तमाम अलग अलग क्षेत्र समाहित है. वह मार्क्सवाद को एक विज्ञान के रूप में लेते थे जिसके उपर समाज के अंदर कट्टरपंथिता को दूर करने का भार है.उन्होंने स्वयं अपने बारे में कहा:
“I learned from these two great men [Marx and Engels] what questions to ask and then went to fieldwork to find the answers because the material did not exist in published books.”
जब उन्होंने मुद्राशास्त्र में कदम रखा तो वह तक्षशिला गए. तक्षशिला के (विशेष रूप से मगधकालीन) सिक्कों के विशाल भंडार और नियंत्रण साधन के रूप में आधुनिक सिक्कों का उन्होंने उपयोग किया. लगभग 12 हजार सिक्कों को तौलने के बाद उन्होंने कहा कि पुरालेख और पुरातत्व से भिन्न एक विज्ञान के रूप में मुद्रा शास्त्र की नींव डाली जा सकती है.
संस्कृत के साहित्य में कोशांबी ने भर्तृहरि और भास की रचनाओं की ओर विशेष ध्यान दिया और उनके भाष्य उत्कृष्ट माने जाते हैं. संस्कृत साहित्य से वह उसकी सामाजिक पीठिका, प्राचीन भारत के इतिहास की ओर बढ़ गए.1938-39 के बाद से उन्होंने इस विषय पर अनेकानेक निबंध लिखे.
1956 में उनकी पुस्तक इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ इंडियन हिस्ट्री आयी. इस पुस्तक में उन्होंने इतिहास की नई परिभाषा दी. कोसांबी ने इतिहास के रिसर्च और इसे लिखने में अपनी मार्क्सवादी विचारधारा का खुलकर इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा , “इतिहास का मतलब, उत्पादन के तरीक़ों और इसमें आए बदलाव के बीच के रिश्ते की काल खंड के हिसाब से व्याख्या करना है.” इतिहास को समझने की उन्होंने एक नई दृष्टि प्रस्तुत की और इतिहास लेखन का नया, परिवर्तनकामी मार्ग प्रशस्त किया. जहां एक ओर उन्होंने पश्चिमी इतिहासकारों की रचनाओं के आधार को चुनौती दी, वहीं दूसरी ओर उन्होंने प्राचीन काल को स्वर्ण-युग बताने वाले हमारे अपने देश के देशाहंकारी भाटों के दंभ को चूर-चूर कर डाला. आज भी इतिहास को एक नए सिरे से लिखने की कोशिस की जा रही है. औपनिवेशिक काल में भारतीय इतिहास को धार्मिक नज़रिए से पेश किया गया. आज राष्ट्रवादियों ने प्राचीन भारत का और भी महिमामंडन किया. इनके अलग कोसांबी ने अपनी किताबों के ज़रिए आधुनिक भारत में इतिहास लेखन की ठहरी हुई और दिखावे वाली परंपरा को जड़ से हिलाने का काम किया. इतिहास के क्षेत्र उनकीस्टडी ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री (1956), मिथ ऐंड रियलिटी (1962) और कल्चर ऐंड सिविलाइज़ेशन ऑफ़ एनशिएंट इंडिया इन हिस्टोरिकल आउटलाइन (1965).
भारत के मशहूर गणितज्ञ, इतिहासकार और राजनैतिक विचारक दामोदर धर्मानंद कोसांबी का जन्म 31 जुलाई 1907 को गोवा के कोसबेन में हुआ था. उनके पिता धर्मानंद कोसांबी अपने ज़माने के मशहूर बौद्ध विद्वान थे. धर्मानंद कोसांबी ने कई साल तक अमरीका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाया था.
सीखने की जुनून,तेज बुद्धि और मानवता के प्रति प्रेम जैसे गुण वह अपने पिताजी से पाए थे. हार्वड में अपनी पढ़ाई के दौरान ही वह गणित, इतिहास और ग्रीक,लेटिन, फ्रेंच जैसी विषयों नें दिलचस्पी लेनी शुरू की. अपनी पढ़ाई के दौरान वह जार्ज विर्कहाफ और नारवर्ट वीनर जैसे गणितज्ञों के सम्पर्क में आए.
1929में भारत लौटने पर उन्होंने बीएचयू में गणित पढ़ाना शुरू कर दिए. इसके बाद वह अलीगढ़ और बाद में पूणे स्थित फर्गूसन कालेज में सेवा दी. फिर उन्होंने टाटा इंस्टीच्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च में शोध के लिए गए. अपने लंबे कैरियर के दौरान वह दुनिया भर के अनेकों विद्वान के सम्पर्क में आए.
डीडी कोसांबी ने तमाम विषयों का पारंपरिक हदों से परे जाकर अध्ययन किया. उन्होंने आनुवांशिकी और सांख्यिकी समेत कई ऐसे विषयों में मूल्यवान और दूरगामी योगदान दिये, जो समाज के लिए बहुत उपयोगी साबित हुए हैं.
उस जमाने में डीडी कोसांबी ने भारत में बिना सोचे-विचारे कहीं पर भी बांध बनाने के इकतरफ़ा फ़ैसलों का कड़ा विरोध किया. इसी तरह मुंबई में मॉनसून आने से पहले मौसमी बीमारियों जैसे टायफ़ाइड पर उनकी रिसर्च भी बहुत कारगर रही. इसी की वजह से ही हर साल मॉनसून आने से पहले क़रीब 500 लोगों की जान बचाई जा सकी.
डी डी कोसाम्बी सिर्फ किताबी रिसर्च में विश्वास नहीं करते थे. उन्होंने कहा,” मार्क्सवाद को गणित की तरह एक अनमनीय रूपवाद में रिड्यूस नहीं किया जा सकता और न ही इसे स्वचालित लेथ मशीन पर काम करने जैसी मानक तकनीक के तौर पर लिया जा सकता है. मानव समाज में प्रस्तुत होने वाली सामग्री में अंतहीन विविधताएँ होती हैं ; प्रेक्षक स्वयं प्रेक्षित की जा रही आबादी का एक भाग होता है , जिसके साथ वह पुरज़ोर ढंग से और परस्पर अन्तर- क्रिया करता है. इसका अर्थ यह हुआ कि सिद्धान्त को लागू करने के लिए विश्लेषणात्मक शक्ति , और किसी स्थिति में मूलभूत विशिष्टताओं को पहचानने की क्षमता का विकास करना आवश्यक होता है. इसे सिर्फ पुस्तकों से नहीं सीखा जा सकता. इसे सीखने का एकमात्र तरीका जनता के व्यापक तबकों के साथ निरंतर संपर्क ही है.”
भारत के इस महान प्रतिभा सम्पन्न प्रसिद्ध वैज्ञानिक, भाषा विज्ञानी और गणितज्ञ दामोदर धर्मानंद कोसांबी का निधन 29 जून, 1966 को हुआ.

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