एक समय की बात है। एक जंगल में एक मोर घूम रहा था। आकाश काले बादलों से घिरा हुआ था और ऐसा लगता था कि कुछ ही देर में वर्षा होने लगेगी।
बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर मोर खुश हो गया और अपने पंख फैलाकर नाचने लगा। उसे अपने नृत्य व सुंदरता पर बड़ा नाज था।
नाचते हुए मोर के पंख बहुत ही सुंदर लग रहे थे। तभी कहीं से उड़ता हुआ एक बगुला भी वहाँ पहुँच गया। उसने मोर को नमस्कार किया और कहा, “वाह मोर भाई!
तुम्हारे पंख तो बहुत सुंदर लग रहे हैं और तुम्हारे नृत्य की प्रशंसा में तो मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। तुम्हें देखकर मन खुश हो गया।” मोर घमंडी प्रवृत्ति का था। उसने बहुत ही घृणित दृष्टि से बगुले की ओर देखते हुए उसके अभिवादन का उत्तर दिया।
बगुले को मोर का व्यवहार देखकर दुख हुआ। वह बोला, “मोर भाई! आपने मेरी बात का ऐसा फीका-सा जवाब क्यों दिया और आप मेरी ओर इतनी घृणा से क्यों देख रहे हैं?” मोर बोला, “मैं तुम्हारे पंखों को देख रहा हूँ।
कितने बदसूरत हैं ये। न तो इनमें कोई चमक है और न ही कोई रंग है। तुम्हें देखकर मेरा मन घृणा से भर गया। तुम्हें तो कोई भी देखना पसंद नहीं करता होगा और जरा मेरी ओर देखो।
कितने सुंदर पंख हैं मेरे। प्रकृति ने तुम्हारे साथ जो अन्याय किया है, उस पर मुझे दुख हो रहा है। वास्तव में तुम्हारे पंख बहुत बेकार हैं।
क्या तुम्हें कभी बुरा नहीं लगता है कि तुम मेरे सामने कितने रंगहीन और कुरूप दिखते हो। प्रकृति ने तुम्हारे साथ भेदभाव किया है।”
यह सुनकर बगुला बोला, “कृपया प्रकृति को दोष न दें। उसने जैसा भी दिया है ठीक दिया है। प्रकृति ने हर प्राणी को आवश्यकतानुसा गुण दिये हैं।
प्रकृति ने आपको सुन्दर पंख दिये हैं, क्योंकि सुन्दर पंखों से आपक नृत्य मनभावन लगता है। परन्तु मुझे अपने जीवनयापन के लिए लंबी उड़ानों की आवश्यकता पड़ती है।
इसलिए प्रकृति ने मुझे ऐसे पंख दिये हैं जो बदसूरत तो दिखते हैं पर इतने मजबूत हैं कि मैं इनकी सहायता से ऊँचे आकाश में बादलो के साथ उड़ सकता हूँ। जहाँ चाहूँ जा सकता हूँ।
मीलों की यात्रा करके भी मैं कभी थकता नहीं हूँ। इसलिए मेरे पंख तुम्हारे सुंदर पंखों से अधिक उपयोगी हैं। इसलिए मुझे अपने रंग-रूप को लेकर प्रकृति से कोई गिला नहीं है।
मैं जैसा हूँ अच्छा हूँ। क्या आप ऐसा कर सकते हैं? नि:सन्देह, आप ऐसा करने में असमर्थ हैं।” बगुले की बात सुनकर मोर के पास कुछ भी कहने के लिए शब्द नहीं रह गए थे। वह अपने कहे हुए शब्दों पर बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसने बगुले से क्षमा माँगी।
शिक्षा: प्रकृति को कभी दोष नहीं देना चाहिए।