आखिर चेतन आनंद की बनाई भारत की पहली वॉर फिल्म का नाम ‘𝗛𝗔𝗤𝗘𝗘𝗤𝗔𝗧’ क्यों रखा गया ?
हकीकत सन 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनाई गई थी यह फिल्म बताती है कि हमारे बहादुर जवानों ने किस प्रकार युद्ध में लड़ते-लड़ते देश की सुरक्षा के लिए अपने बलिदान दिये थे उनको दुर्गम हालातो के चलते युद्ध में पीछे हटने का साफ़ आदेश था लेकिन उन्होंने फिर भी बिना हथियारों ,सुरक्षा उपकरणों और रसद के लड़ना बेहतर समझा इस फिल्म को देखने के बाद जेहन में एक बात उभरती है की आखिर युद्ध की विभीषिका बयां करती इस फिल्म का काम ‘हकीकत ‘क्यों है ?
दरअसल जब फिल्म पूरी होने वाली थी तभी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन हो गया। चेतन आनंद बहुत दुखी हुए लिहाजा उन्होंने यह फिल्म पं. नेहरू को ही समर्पित कर दी…….. फिल्म में नेहरू की अंतिम यात्रा के वास्तविक दृश्य भी जोड़े गये थे इस फिल्म तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री का भाई -भाई का नारा भी दिखाया गया था, यह दर्शाने के लिए कि वास्तव में चीनी कितने विश्वासघाती होते हैं ………एक तरफ दोस्ती का नारा देते हैं दूसरी तरह हमारे जवान के सीने पर घाव भी करते हैं इस प्रकार यह फिल्म जहां बहादुर जवानों की वीर गाथा कहती है, वहीं दूसरी तरफ दुश्मन देश चीन की बर्बरता की हकीकत बयां करती है। इसीलिए इसका नाम भी हकीकत रखा गया था……. इस फिल्म में धर्मेंद्र के अलावा बलराज साहनी और अभिनेत्री प्रिया राजवंश ने बतौर अभिनेत्री पहली बार अभिनय किया था…
चेतन आनंद कलात्मक फ़िल्मों के बनाने में माहिर थे कुल उन्होँने मिलाकर सोलह फ़िल्मेँ बनाईं जिनमें ‘हक़ीक़त ‘उनकी आठवीँ फिल्म थी……चेतन आनंद ने देश को पहली बार पीठ में छुपा घोंपने वाली चीन की चतुराई की वास्तविक तस्वीर दिखाई थी…….सन् 1964 में देशवासियों और जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए चेतन आनंद ने हक़ीक़त बनाई थी जिसकी अधिकांश शूटिंग लद्दाख की पंद्रह हज़ार फ़ुट की दुर्गम बर्फ़ीली पहाड़ियों में हुई थी……हकीकत देशभक्ति की एक लीजेंड फिल्म है……कैफी आजमी के लिखे उस फिल्म के देशभक्ति तराने आज भी राष्ट्रीय पर्व पर शान के साथ बजाये जाते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि हकीकत ने ही बॉलीवुड में युद्ध आधारित फिल्में बनाने की आधारशिला रखी। उल्लेखनीय है कि हकीकत ने ही भविष्य में बॉलीवुड को देशभक्ति की फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया था…
( महान फिल्म निर्माता चेतन आनंद (6 जुलाई 1997) को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए )
पवन मेहरा ✒
( सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )