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दुःख में सुमिरन

कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से दुःख स्वीकार करने को तत्पर नहीं हो सकता। सभी हर क्षण सुखी रहने की कामना करते हैं। महाभारत में जरूर पांडवों की माता कुंती का प्रसंग मिलता है,

जो भगवान् से प्रार्थना करती हैं, ‘प्रभु, मेरे जीवन में समय-समय पर दुःख का आभास होते रहना चाहिए। मैंने अनुभव किया है कि सुख में आपकी याद नहीं आती। केवल संकट और दुःख में ही आप याद आते हैं।

अनेक दार्शनिकों ने मत व्यक्त किया है कि अंधकार के बिना प्रकाश की अनुभूति ही नहीं होती। इसी प्रकार, दुःखों के बिना सुख के महत्त्व का पता ही नहीं चलता। दिन-रात, अंधकार-प्रकाश, सुख-दुःख सभी एक दूसरे के महत्त्व का आभास देने वाले माने गए हैं।

भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, माया स्पर्शस्तुकौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदा। अर्थात्, हे अर्जुन, शीतलता-उष्णता, सुख-दुःख अंतःकरण के धर्म हैं।

जब हम अंतःकरण को छोड़कर ऐसे स्थान पर चले जाते हैं, जहाँ जगत का भास नहीं होता, जहाँ सुख-दुःख नहीं रहते, वही परमानंद की स्थिति है। सुख-दुःख को क्षणिक मानना चाहिए।

गणेशपुरी आश्रम में एक सज्जन बाबा मुक्तानंद परमहंस के सत्संग के लिए पहुंचे। उन्होंने बाबा से प्रश्न किया, ‘परमेश्वर तो सच्चिदानंद हैं, फिर उसने प्राणियों को दुःख की अनुभूति क्यों दी?’

बाबा ने कहा, “भैया, दुःख ही मानव के कल्याण का सच्चा साथी है। इसके आते ही मानव सोचने लगता है कि असंयम और अनीति से दुःख को मैंने ही आमंत्रित किया है। इसलिए वह संयमित और अनुशासित जीवन जीने को प्रेरित होता है।

English Translation

No one can be willing to accept suffering voluntarily. Everyone wishes to be happy every moment. There is definitely a reference to Kunti, the mother of the Pandavas, in the Mahabharata.

Those who pray to the Lord, ‘Lord, there must be a feeling of sorrow in my life from time to time. I have experienced that happiness does not miss you. You are remembered only in distress and sorrow.

Many philosophers have expressed the opinion that without darkness there is no experience of light. Similarly, without sorrow the importance of happiness is not known. Day and night, darkness and light, happiness and sorrow are all considered to give an impression of the importance of each other.

Lord Krishna says to Arjuna, Maya sparstukuunteya shitoshnasukhadukhada. That is, O Arjuna, coolness and warmth, happiness and sorrow are the religions of the conscience.

When we leave the conscience and go to such a place, where there is no sense of the world, where there is no happiness and sorrow, that is the state of bliss. Happiness and sorrow should be considered momentary.

A gentleman arrived at Ganeshpuri Ashram for the satsang of Baba Muktananda Paramhans. He asked Baba, ‘The Supreme Lord is Satchidananda, then why did He give the feeling of sorrow to the living beings?’

Baba said, “Brother, sorrow is the only true companion of human welfare. As soon as it comes, man starts thinking that I have invited sorrow from incontinence and immorality. Therefore he is motivated to lead a restrained and disciplined life.

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