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क्रोध अकेला नहीं आता

सभी धर्मों में क्रोध को सर्वनाश का प्रमुख कारण बताया गया है। महाभारत में कहा गया है कि निद्रां तंद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रिता। इसलिए आलस्य एवं क्रोध आदि दुर्गुणों को छोड़ने में ही कल्याण है। क्रोध के कारण मानव आवेश में आकर विवेक खो बैठता है तथा

उसका दुष्परिणाम कई बार अत्यंत घातक होता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा है, ‘अहंकार आदमी को असहिष्णु बनाता है। जब आदमी अहंकार में भरकर स्वयं को ही सबकुछ मानने लगता है, तो उसकी अहंभावना क्रोध को जन्म देती है। सहनशीलता के अभ्यास से ही क्रोध पर काबू पाया जा सकता है।

कृष्णानंदजी ‘आरोग्य’ में लिखते हैं, ‘क्रोध रूपी आग जो आप अपने शत्रुओं के लिए हृदय में जलाते हैं, वह शत्रु से अधिक आपको जलाती है। क्रोध शरीर में जहर के समान काम करता है।’

वह क्रोध से बचने का उपाय बताते हैं, ‘जब क्रोध आने लगे, तो उसके आने के कारण के बारे में सोचिए और उस कारण को मन से निकाल दीजिए।

शत्रुता, बुरा बरताव, घृणा, घबराहट, कठोरता, परेशानी, उद्वेग-ये सभी क्रोध के पर्याय हैं। क्रोध अकेला नहीं आता। वह दुःख और दरिद्रता को जन्म देता है ।’

एक व्यक्ति ने क्रोध पर विजय पाने के अनुभव का कुछ ऐसे चित्रण किया है-मैंने भगवान् की प्रार्थना का सहारा लिया और स्वयं को अकिंचन मानकर तथा बड़प्पन की झूठी भावना त्यागकर विनम्रता का व्यवहार करने लगा।

घृणा, द्वेष, आलोचना जैसे दुर्गुण स्वतः समाप्त होते चले गए। ईश्वर ने मेरी सहायता की। ‘ टॉलस्टाय ने भी कहा है, ‘क्रोध पर काबू पाने के लिए भगवान् की प्रार्थना और उसके नाम का स्मरण करना कारगर उपाय है।’

English Translation

Anger has been described as the main cause of destruction in all religions. In the Mahabharata, it is said that sleepless sleep, bhayam krodha: laziness, long-suffering. That is why it is good to leave the bad qualities like laziness and anger. Due to anger man loses his conscience and

Its side effects are sometimes very fatal. Acharya Mahapragya has written, ‘Ego makes a man intolerant. When a man fills himself with ego and starts considering himself as everything, then his egoism gives rise to anger. Anger can be controlled only by practicing tolerance.

Krishnanandji writes in ‘Arogya’, ‘The fire of anger that you burn in your heart for your enemies burns you more than the enemy. Anger acts like poison in the body.

He tells the way to avoid anger, ‘When anger starts coming, think about the reason for its coming and remove that reason from the mind.

Enmity, ill-treatment, hatred, nervousness, harshness, trouble, agitation—all these are synonymous with anger. Anger does not come alone. It gives rise to misery and poverty.’

This is how one person depicted the experience of being conquered by anger – I resorted to the Lord’s prayer and began to behave humbly, assuming myself to be ignorant and giving up the false sense of nobility.

The vices like hatred, hatred, criticism went away automatically. God helped me. ‘ Tolstoy has also said, ‘The effective way to overcome anger is to pray to God and to remember His name.’

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