एक समय की बात है महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मगध आए हुए थे। वहां एक चंदौसा नाम का मोची गांव के बाहर अपनी कुटिया बनाकर रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और 4 बच्चे रहा करते थे। चंदौसा की कुटिया के बाहर एक बड़ा सा तालाब था , जिसमें बरसात का पानी जमा हुआ करता था।
चंदौसा सवेरे उठकर जब तालाब पर गया तो उसे एक कमल का पुष्प दिखाई दिया जो दिव्य था। चंदौसा ने अपनी पत्नी फुलौरी को उस पुष्प के बारे में बताया। फुलौरी शांत स्वभाव की थी और पतिव्रता भी थी। फुलौरी ने तत्काल बताया महात्मा बुध यहां आए हुए हैं , शायद वह इस तालाब के पास से गुजरे होंगे जिसके कारण यह फूल हुआ है। चंदौसा के मन में अमीर बनने का स्वपन जागृत हुआ। वह झटपट तालाब में कूद गया और उस पुष्प को तोड़कर ले आया और अपनी पत्नी से आगे की रणनीति बताता है।
मैं यह पुष्प राजा को देकर इसके बदले ढेर सारा मूल्य प्राप्त करूंगा और हम लोग अपना जीवन आराम से व्यतीत करेंगे।
फुलौरी – यह तो अच्छी बात है यह पुष्प हमारे किस काम का ? यह राजा को ही दे आइए।
चंदौसा – ठीक है , मैं शीघ्र ही लौट कर आता हूं ! कहते हुए वह राजमहल की ओर तेज कदमों से निकल पड़ा।
रास्ते में चंदौसा को तेज कदमों से जाते हुए एक व्यापारी देख लेता है। उसके हाथों में दिव्य पुष्प देखकर व्यापारी के मन में उस पुष्प को प्राप्त करने की अभिलाषा जागृत होती है। व्यापारी आवाज देकर चंदौसा को बुलाता है और उस पुष्प का मूल्य पूछता है। व्यापारी उस पुष्प का मूल्य 2 स्वर्ण मुद्रा देने को तैयार हो जाता है। किंतु अंत समय में चंदौसा यह सोचता है व्यापारी जब इस पुष्प का मूल्य 2 स्वर्ण मुद्रा दे रहा है तो राजा अवश्य ही इसके अधिक मूल्य देगा।
व्यापारी को ना करते हुए वह राजमहल की ओर दौड़ता हुआ निकल गया।
राह में राजा रत्नेश आते दिखाई दिए , चंदौसा ने उस पुष्प को राजा को दिखाया राजा उस पुष्प का मूल्य 5 स्वर्ण मुद्रा देने को शीघ्र तैयार हो गए। चंदौसा सोच में पड़ गया कि इस पुष्पों में ऐसी क्या खास बात है , जो व्यापारी और राजा इसकी प्राप्ति करना चाहते हैं। और मेरे पास यह पुष्प है जिसका मैं प्रयोग या मूल्य नहीं जानता यह कितना मूल्यवान है इसकी समझ मुझे नहीं है।
एकाएक चंदौसा के दिमाग में बिजली सी कौंध जाती है , वह राजा को भी ना करते हुए वह महात्मा बुद्ध के शरण में पहुंच जाता है। महात्मा बुद्ध के चरणों में गिरकर वह पुष्प उन्हें समर्पित कर देता है और अपने शरण में संरक्षण मांगता है। महात्मा बुध चंदौसा को उठाकर हृदय से लगा लेते हैं और उसे अपने शरण में लेते हैं। चंदौसा को ज्ञान प्राप्त होता है फिर वह अपने समाज में ज्ञान के माध्यम से समाज की पीड़ा हरने का प्रयत्न करता है और आजीवन महात्मा बुद्ध का शिष्य बन जाता है।