एक लकड़हारा रोज जंगल लकड़ी काटने जाता था। वहां उसे रोज एक अपाहिज लंगड़ी लोमड़ी दिखाई पड़ती थी। वह सोचता जंगल में इसे भोजन कैसे प्राप्त होता होगा? जबकि यह शिकार भी नहीं कर सकती। एक दिन उसने सोचा कि आज मैं पता लगाऊंगा की यह जीवित कैसे है? लकड़हारा उसी के पास के एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि एक शेर अपना शिकार लेकर आया और वहीं पास की एक झाड़ी में बैठकर खाने लगा। पेट भर जाने के बाद शेष शिकार को वह वहीं छोड़ कर चला गया। उस बचे हुए शिकार से लोमड़ी ने अपना पेट भर लिया। यह देखकर लकड़हारे ने सोचा कि मैं व्यर्थ ही भोजन के लिए इतनी मेहनत करता हूँ।
जब भगवान इस अपाहिज लोमड़ी का पेट भरते हैं। तो मेरा क्यों नहीं भरेंगे? यह सोचकर लकड़हारे ने अपनी कुल्हाड़ी नीचे फेंक दी। उसने वही पेड़ के नीचे अपना आसन जमा लिया और भोजन का इंतजार करने लगा। कई दिन बीत गए, लेकिन कोई उसके लिए भोजन लेकर नहीं आया।
वह भूख से इतना कमजोर हो गया कि चलने फिरने में भी असमर्थ हो गया। लेकिन उसका विश्वास दृढ़ था। तभी उसे एक आवाज सुनाई दी। “अरे मूर्ख! तुझे अपाहिज लोमड़ी ही दिखाई दी। कर्मरत वह शेर नहीं दिखाई दिया। अनुशरण ही करना है तो शेर का क्यों नहीं करता? जो स्वयं का पेट तो भरता ही है, साथ ही इस अपाहिज लोमड़ी का भी पेट भरता है।”
यह सुनकर लकड़हारे को अपनी गलती का अहसास हो गया।
Moral of Story- सीख
इस संसार में कर्म किए बिना कुछ नहीं मिलता।