यह उन दिनों की बात है जब पंजाब पर सिख महाराजा रणजीत सिंह का राज्य था। वे महाप्रतापी, शूरवीर और धर्मपालक थे। उनकी वीरता के चर्चे दूर दूर तक थे। आततायी और दुष्ट लोग लोग उनका नाम सुनकर भयभीत हो जाते थे।
उनके राज्य की सीमा अफगानिस्तान से लगती थी। उस समय पूरा पाकिस्तान पंजाब प्रांत में ही आता था। सीमावर्ती क्षेत्रों में अफगानी लुटेरे आये दिन घुसपैठ करके लूटपाट करते रहते थे। उस क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती कम थी। वे इसी बात का लाभ उठाते थे।
एक बार घुसपैठियों ने पेशावर में घुसकर कई दिनों तक लूटपाट मचाई। जब महाराजा रणजीत सिंह को इसकी खबर लगी तो उन्होंने सेनापति को बुलाकर इस सम्बंध में पूछा। सेनापति ने जवाब दिया, “महाराज, अफगानी लुटेरों की संख्या पन्द्रह सौ थी और वहां हमारे सिर्फ डेढ़ सौ सैनिक थे। इस कारण वे उन्हें नहीं रोक सके।”
महाराजा रणजीत सिंह ने सेनापति से कुछ नहीं कहा। उन्होंने उसी समय अपने साथ मात्र डेढ़ सौ सैनिक लिए और पेशावर पहुंचकर अफगानों पर धावा बोल दिया। महाराजा की हिम्मत और तलवारबाजी के आगे अफगान अधिक देर नहीं टिक सके और भाग खड़े हुए।
वापस आकर उन्होंने सेनापति से कहा कि डेढ़ सौ सैनिकों ने ही अफगानों को मार भगाया। यह सुनकर सेनापति का सिर शर्म से झुक गया। तब महाराजा रणजीत सिंह ने सेनापति को कहा कि युद्ध संख्याबल से नहीं हिम्मत से जीता जाता है।
धर्म की रक्षा करने वालों का साहस सदैव आततायियों से अधिक होता है। आप यह कैसे भूल गए कि हमारा एक एक सैनिक सवा लाख के बराबर है।
सीख- Moral
किसी भी युद्ध अथवा संघर्ष में विजय प्राप्त करने के लिए अस्त्र शस्त्र और सैनिकों से अधिक हिम्मत की आवश्यकता होती है। इतिहास में ऐसे बहुत से प्रसंग हैं जब मुट्ठी भर लोगों ने बड़ी बड़ी सेनाओं को धूल चटा दी थी।
यही बात जीवन के संघर्षों और उतार चढ़ावों पर भी लागू होती है। कठिनाइयों, मुसीबतों का हिम्मत से सामना करके मनुष्य उनपर विजय प्राप्त कर लेता है।