एक बार जंगल में रहने वाली चालाक लोमड़ी की मुलाकात सीधे-सादे गधे से हुई. उसने गधे के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखा. गधे का कोई मित्र नहीं था. उसने लोमड़ी की मित्रता स्वीकार कर ली. दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि वे सदा एक-दूसरे की सहायता करेंगे.
उस दिन के बाद से दोनों अपना अधिकांश समय एक-दूसरे के साथ गुजारने लगे. वे जंगल में घूमा करते, घंटों एक-दूसरे से बातें किया करते थे. गधा लोमड़ी का साथ पाकर बहुत ख़ुश था.
एक दिन दोनों जंगल के तालाब किनारे बातें कर रहे थे. तभी वहाँ जंगल का राजा शेर पानी पीने आया. उसने जब गधे को देखा, तो उसके मुँह में पानी आ गया.
लोमड़ी को शेर की मंशा भांपते देर नहीं लगी. वह सोचने लगी कि क्यों न शेर से एक समझौता किया जाए. मैं उसे गधे को मारने में सहायता करूंगी. इस तरह मेरे भोजन की भी व्यवस्था को जायेगी.
वह शेर के पास गई और मधुर स्वर में बोली, वनराज! यदि आप उस गधे का मांस खाना चाहते हैं, तो आपकी सहायता कर सकती हूँ. बस आप मुझे वचन दें कि आप मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचायेंगे और थोड़ा मांस मुझे भी दे देंगे.”
शेर भला सामने से आ रहे प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार करता? वह मान गया. अगले दिन योजना अनुसार लोमड़ी गधे को भोजन ढूंढने के बहाने जंगल में एक ऐसे स्थान पर ले गई, जहाँ एक गहरा गड्ढा था.
लोमड़ी की बातों में उलझे गधे की दृष्टि गड्ढे पर नहीं पड़ी और वह उसमें गिर पड़ा. लोमड़ी ने तुरंत पेड़ के पीछे छुपे शेर को इशारा कर दिया. शेर भी इसी अवसर की ताक में था.
उसने पहले लोमड़ी पर हमला किया और उसे मारकर छककर उसका मांस खाया. बाद में उसने गधे को मारकर उसके मांस की दावत उड़ाई.
शिक्षा – मित्र को धोखा देने वाले का परिणाम बुरा होता है.