बहुत समय पहले एक राजा था, जो खुद के बारे में सोचता था कि वह बहुत ही नेक सोच, दयालु स्वाभाव और दरियादिली है। उसे लगता था कि वह स्थितियों को सही से समझने, हर बात पर न्याय करने और हर विषय में उचित विचार रखने वाला व्यक्ति है।
राजा की तीन बेटियां थीं। एक दिन उसने अपनी बेटियों को बुलाकर कहा, ‘मेरे पास जो भी है, वो सब तुम्हारा है। तुम तीनों को मुझसे ही जीवन मिला है। मेरी इच्छानुसार ही तुम तीनों का भूत, वर्तमान और भविष्य बना हुआ है, जो आगे भी ऐसे ही बना रहेगा। मैं ही तुम तीनों का भाग्य बनाता हूं।’
राजा की यह बात सुनकर उसकी दो बेटियों ने शांत मन से राजा की बात में हामी भर दी, लेकिन तीसरी बेटी ने ऐसा नहीं किया। उसने कहा, ‘नहीं, मुझे तो नहीं लगता है कि आपके हाथों में मेरा भाग्य है।’
राजा यह सुनते ही गुस्से में आ गया। उसनी अपनी तीसरी बेटी की कही बातों को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। उसने खुद को अपनी तीसरी बेटी के सामने सही साबित करने की ठान ली और उसे जेल में बंदी बना दिया।
इस वजह से राजा की तीसरी बेटी कई सालों तक जेल में ही बंद रही। राजा और उसकी बाकी की बेटियां राजसी जीवन जीते रहे।
राजा मन ही मन सोचता है कि यह मेरा ही हुक्म है, जो मेरी जिद्दी बेटी जेल में कैद है। लोगों को भी यही लग रहा होगा कि राजा का ही हुक्म है, जो उसकी बेटी को ऐसा भाग्य मिला है।
उसकी प्रजा के लोग भी यही सोचते थे। उन्हें लगता था कि राजा की तीसरी बेटी ने जरूर कोई गलत कार्य किया होगा, तभी उसे जेल में कैद करके रखा गया है। वरना कोई भी पिता अपनी बेटी के साथ भला ऐसा क्यों ही करेगा।
राजा कभी-कभी जेल में कैद अपनी तीसरी बेटी से मिलने के लिए जाता था। उसकी बेटी बहुत कमजोर हो गई थी, लेकिन अभी भी उसके विचारों में कोई बदलाव नहीं आया था। मगर राजा अपनी कमजोर होती बेटी की हालात और नहीं देख पा रहा था।
एक दिन उसने अपनी तीसरी बेटी से कहा, ‘इस तरह से तुम्हारा जिद करना मुझे बहुत गुस्सा दिलाता है। अगर तुम इसी तरह मेरी आंखों के सामने रही, तो गुस्से में मैं न जाने क्या कर बैंठूंगा। मैं तुम्हें मौत की सजा भी दे सकता है, लेकिन मैं एक अच्छे दिल का हूं, इसलिए मैंने सोचा है कि तुम अब मेरे राज्य के पास के ही एक जंगल वाली जमीन पर जानवरों के साथ रहोगी।’
राजा ने आगे कहा, ‘उस जंगल में सिर्फ उन्हीं लोगों को रखा जाता है, जो मेरे आदेश का पालन नहीं करते। तुमने भी अपनी जिद की वजह से मेरी बात नहीं मानी, इसलिए तुम भी अब वहां मौजूद लोगों के साथ अपना पूरा जीवन काटोगी।’
इसके बाद तीसरी बेटी को उस जंगल की जमीन पर रहने के लिए भेज दिया गया। वहां वह फल और सब्जियां खाने और एक गुफा में रहने लगी। उसके पास पीने के लिए झरने का पानी और ठंड से बचने के लिए सिर्फ सूरज की धूप का ही सहारा था।
वहां की खुली हवा में रहते हुए और फल-फूल खाते-खाते वो जल्द ही पूरी तरह से स्वस्थ हो गई। उसने वहां पर खेती करना भी शुरू कर दिया। गुफा को उसने घर की तरह सजा लिया था और खुशी-खुशी वहीं रहती थी। एक दिन वहां पर एक भटकता हुआ राहगीर आ पहुंचा। उसे देखते-ही-देखते राजा की तीसरी बेटी से प्रेम हो गया और दोनों खुशी-खुशी वहीं रहने लगे।
उस जंगल में उन दोनों के अलावा और भी कई लोग रहते थे, जिनकी मदद से उन्होंने उस जंगल को एक शहर के रूप में बदल दिया।
कुछ ही सालों में राजा की तीसरी बेटी और वो राहगीर उस शहर के राजा-रानी बन गए। अब उनके शहर की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी। जैसे ही इसकी जानकारी राजा को मिली वह उस जंगल में सबकुछ देखने के लिए पहुंच गया। जब उसने वहां की राजगद्दी पर अपनी बेटी को बैठे देखा और साथ में एक खुबसूरत युवक को, तो उसके होश उड़ गए।
इसके बाद राजा को स्वंय ही अपनी गलती पर पछतावा होने लगा और उसने अपनी सभी बेटियों को अपने भाग्य से आजाद कर दिया। उसने अपनी तीनों बेटियों से कहा, ‘भले ही तुम तीनों का भाग्य मेरे हाथों में है, लेकिन हर व्यक्ति खुद ही परीस्थितियों के अनुसार अपना भाग्य अच्छा व बुरा बना सकता है।
कहानी से सीख
राजा और उसकी तीन बेटियों की कहानी हमें यह सीख देती है कि कोई भी व्यक्ति किसी का भाग्य बना या बिगाड़ नहीं सकता। हमारा भाग्य स्वंय हमारे हाथों में ही होता है, जिसे हम अपनी सूझबूझ से बुरी परिस्थितियों में भी अच्छा बना सकते हैं।