बख्तियारपुर जक्शन” अर्थात भारतीय रेलवे स्टेशन के नाम है जो बिहार के राज्य में है, दुर्भाग्य कहे या मूर्खता की पराकाष्ठा बख्तियार खिलजी जो एक मुस्लिम आक्रमणकारी था!
जिसने भारत की सबसे उन्नत शिक्षा प्रणाली को नष्ट किया साथ ही वहाँ पर पढ़ रहे छात्र एवं शिक्षकों को जिनकी संख्या छात्र 10 हज़ार, शिक्षा 2 हज़ार जिनमें से बहुत से लोगो के सर कलम कर दिए थे और बाकी बचे लोगो को जिंदा ही आग के हवाले कर मृत्यु को शौप दिया था!
जी हां मैं “नालन्दा विश्वविद्यालय” की बात कर रहा हूँ..!
जिसे इस नीच पापी बख्तियार खिलजी ने पूर्णतः नष्ट कर डाला था! आज भले ही भारत शिक्षा के मामले में 191 देशों की लिस्ट में 145वें नम्बर पर हो लेकिन कभी यहीं भारत, अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर जाने वाली सभ्यताओं का प्रतिनिधित्व करता था!
बढ़ती उम्मीदे..बढ़ती जनसंख्या..और शिक्षा को व्यवसाय बनाने की दौड़ वाले दौर में..आज जहाँ सैकड़ो छात्रों पर केवल एक अध्यापक उपलब्ध होते हैं वहीं सदियों पहले इस विश्वविद्यालय के वैभव के दिनों में इसमें 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक शामिल थे यानी केवल 5 छात्रों पर एक अध्यापक..!
इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते है कि इसमें आठ अलग-अलग परिसर और 10 मंदिर थे, साथ ही कई अन्य मेडिटेशन हॉल और पठान कक्ष थे, यहाँ एक पुस्तकालय 9 मंजिला इमारत में स्थित था, जिसमें 90 लाख पांडुलिपियों सहित लाखों किताबें रखी हुई थीं!
विश्विद्यालय अपने समकालीन सभी सभ्यताओं के शिक्षा केंद्रों से कुछ इस तरह श्रेष्ठ था कि यहाँ सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशो के स्टूडेंट्स भी पढ़ाई के लिए आते थे..और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उस दौर में यहां लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, भाषा विज्ञान, इकोनॉमिक सहित कई विषय पढ़ाएं जाते थे..!
इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी केंद्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे इनमें गुरुओं के व्याख्यान हुआ करते थे मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इसके परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी इस यूनिवर्सटी में देश विदेश से पढ़ने वाले छात्रों के लिए छात्रावास की सुविधा भी थी..!
यूनिवर्सिटी में प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन होती थी की केवल विलक्षण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। यहां आज के विश्विद्यालयों की तरह छात्रों का अपना एक छात्रसंघ होता था वे स्वयं इसकी व्यवस्था तथा चुनाव करते थे। छात्रों को किसी प्रकार की आर्थिक चिंता नहीं थी। उनके लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र औषधि और उपचार सभी निःशुल्क थे। राज्य के शासक की ओर से विश्वविद्यालय को दो सौ गाँव दान में मिले थे, जिनसे प्राप्त आय और अनाज से खर्च चलता था..!
लगभग 800 सालों तक अस्तित्व में रहने के बाद इस विश्वविद्यालय को भूखे-नंगे, असभ्य,आदमखोरों की नजर लग गयी …..सन 1193 में, नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी के अधीन तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा बर्बाद कर दिया गया। फारसी इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज ने अपनी किताब तबक़त-ए-नासिरी में आक्रांताओं की क्रूरता को बयां करते हुए लिखा है कि यूनिवर्सिटी को बर्बाद करने के लिए अध्ययनरत हजारों छात्रों सहित 1000 भिक्षुओं को जिंदा जलाया गया और 1000 भिक्षुओं के सर कलम कर दिए गए..!
9 मंजिला पुस्तकालय को जला दिया गया..इसके साथ ज्ञान, विज्ञान, तकनीक और मानवता के आदर्शों को समेटने वाली लाखो पुस्तके भी उसकी आग में झुलसकर, सैकड़ो मीटर ऊंचे उठते धुंए में हमेशा के लिए कहीं ओझल हो गईं, पुस्तकालय के विध्वंस और किताबों की संख्या का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुस्तकालय में रखी किताबें लगभग 6 महीने तक जलती रहीं, और जलते हुए पांडुलिपियों के धुएं ने एक विशाल पर्वत का रूप ले लिया था..!’
Check Also
बेजुबान रिश्ता
आँगन को सुखद बनाने वाली सरिता जी ने अपने खराब अमरूद के पेड़ की सेवा करते हुए प्यार से बच्चों को पाला, जिससे उन्हें ना सिर्फ खुशी मिली, बल्कि एक दिन उस पेड़ ने उनकी जान बचाई। इस दिलचस्प कहानी में रिश्तों की महत्वपूर्णता को छूने का संदेश है।