शेख चिल्ली को खुली आंखों से सपने देखने की आदत थी। दिन हो या भरी दोपहर, कभी भी चलते-फिरते या बैठे-बिठाए वो सपने देखा करता था। ऐसा ही एक किस्सा बड़ा ही मशहूर है।
शेख चिल्ली अपने घर में बैठा-बैठा एक दिन सपने में डूब गया। उसके सपने में देखा कि एक बहुत बड़ी और विशालकाय पतंग उड़ रही है, जिसके ऊपर वो सवार है। उसे बड़ा ही मजा आ रहा था और आसमान से नीचे देखने पर उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। वो खुशी से उड़ ही रहा था कि तभी उसकी अम्मी की आवाज आई और उसका यह मजेदार सपना पल भर में टूट गया।
शेख चिल्ली की अम्मी जोर से पुकार रही थीं- “शेख चिल्ली! ओ शेख चिल्ली! कहां हो तुम?”
अम्मी की आवाज पर शेख चिल्ली बोला, “अम्मी आया अभी, अपनी ख्याली उड़ान से उतर कर शेख चिल्ली घर के आंगन की ओर दौड़ पड़ा।”
जैसे ही शेख चिल्ली अम्मी के सामने पहुंचा। अम्मी बोलीं, “शेख चिल्ली, मैं तुम्हारी सलमा दीदी के घर जाकर आती हूं। कुछ ही समय में उनकी बेटी की शादी है। मैं वहां उसी की तैयारी करने जा रही हूं। अब वहां से मैं शाम को ही लौटूंगी और आउंगी तो तेरे लिए मिठाइयां भी लेती आउंगी। तब तक तुम जंगल जाकर दरांती (घास काटने का औजार) से कुछ घास काट लाना। पड़ोसी की गाय को चारे के लिए घास मिल जाएगी और हमें उसके बदले कुछ पैसे मिल जाएंगे।”
इस पर शेख चिल्ली बोला, “हां, अम्मी ले आऊंगा और फिर शेख चिल्ली जंगल जाने के लिए तैयार हो गया और उसने हाथों में दरांती उठा ली।”
तभी अम्मी ने नसीहत देते हुए कहा, “सावधानी से जंगल की ओर जाना और रास्ते में कहीं बैठकर सपने न देखने लगना। वहीं दरांती को होशियारी से उपयोग करना और उसे अच्छे से पकड़ना। नहीं तो तुम्हारा हाथ कट सकता है।”
शेख चिल्ली ने अम्मी को तसल्ली देते हुए कहा, “अम्मी चिंता न करें, मैं होशियारी से काम लूंगा।”
अम्मी के जाते ही शेख चिल्ली जंगल की ओर चल दिया। रास्ते में चलते हुए उसे उन मिठाईयों का ध्यान आने लगा जो अम्मी सलमा दीदी के यहां से लाने वाली थीं। उसे ख्याल आते रहे कि आज कौन सी मिठाई खाने को मिलेगी। शायद रसदार गुलाब जामुन या फिर स्वादिष्ट रसगुल्ले और पेड़े। यह सोचकर शेख चिल्ली का मुंह पानी से भर गया और उसकी लार टपकने लगी।
तभी अचानक शेख चिल्ली को रास्ते में पड़े किसी पत्थर से ठोकर लगी और वो अपने सपनो से निकल कर फिर हकीकत में आ गया। “अरे रे रे, क्या कर रहा हूं मैं ये, अम्मी ने मना किया था कि रास्ते में जाते वक्त सपने मत देखना, लेकिन ये क्या, ओहो…” शेख चिल्ली ने खुद को समझाया।
इसके बाद जंगल पहुंच कर शेख चिल्ली ने बहुत सारी घास काटी और एक बड़ी सी गठरी बनाकर उसे सिर पर रखा और घर वापस आ गया। घास की गठरी उसने पड़ोसी को दी और उसके बदले उसे थोड़े पैसे मिल गए। तभी उसे ध्यान आया कि वो घास काटने के लिए जो दरांती ले गया था, उसे वह जंगल में कहीं छोड़ आया है।
शेख चिल्ली को अम्मी का गुस्सा ध्यान आया और वो जंगल में वापस दरांती लेने के लिए दौड़ पड़ा। उसे दरांती वहीं मिली, जहां वो उसे छोड़ गया था। मगर, शेख चिल्ली ने जैसे ही दरांती उठाने की कोशिश की उसके हाथ जलने लगे और उसने दरांती फौरन छोड़ दी। जाहिर है, तेज धूप में पड़ी लोहे की दरांती बहुत गर्म हो गई थी, लेकिन इस बात की समझ शेख चिल्ली में नहीं थी। वो उसको उलट-पलट कर देख रहा था। वह यह समझने की खूब कोशिश कर रहा था कि आखिर दरांती इतनी गर्म कैसे हो गई, मगर उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।
शेख चिल्ली इस पहेली को सुलझाने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी उसके घर के करीब में रहने वाला जुम्मन वहां से गुजरा और उसने शेख चिल्ली को हैरान होते हुए देखा। जुम्मन ने शेख चिल्ली से पूछा, “क्या हुआ? दरांती को तुम ऐसे हैरान होकर क्यों देख रहे हो?”
इस पर शेख चिल्ली बोला, “पता नहीं मेरी दरांती को क्या हो गया है। पता नहीं कैसे यह बहुत ज्यादा गर्म हो गई है।”
शेख चिल्ली की बात सुनकर जुम्मन मन ही मन हंसा और फिर उसने सोचा कि यह बहुत बड़ा मूर्ख है, जो इतनी छोटी सी बात नहीं समझ पा रहा है। उसके बाद जुम्मन ने शेख चिल्ली की इस मूर्खता का लाभ उठाने का सोचा और कहा, “मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम्हारी दरांती बुखार आने के कारण इतनी गर्म हो गई है।”
जुम्मन की यह बात सुनकर शेख चिल्ली और भी ज्यादा परेशान हो गया। शेख चिल्ली की बढ़ती परेशानी को देख जुम्मन बोला, “हमें इस दरांती का इलाज करने के लिए हकीम के पास ले जाना होगा।”
तभी जुम्मन ने सोचा शेख चिल्ली की इस मूर्खता का फायदा उठाकर इस दरांती को क्यों न हथिया लिया जाए। फिर उसने योजना बनाते हुए कहा, “अरे नहीं, हकीम को छोड़ो, मुझे पता है बुखार का इलाज कैसे किया जाता है। मेरी दादी को भी अक्सर बुखार आ जाता है। मैंने हकीम को अपनी दादी का इलाज करते हुए देखा है। उन्हें देखकर मैंने भी बुखार का इलाज करना सीख लिया है। मैं इस दरांती का बुखार आसानी से उतार सकता हूं।”
फिर क्या था, दरांती उठाकर जुम्मन आगे-आगे चलने लगा और उसके पीछे शेख चिल्ली भी चल पड़ा। आगे जाकर जुम्मन एक कुएं के पास रुका और फिर उसने दरांती को पास पड़ी एक रस्सी से बांधा और फिर उसे कुएं में लटका दिया।
इसके बाद जुम्मन ने शेख चिल्ली से कहा कि इसे ऐसी ही शाम तक लटके रहने दो। उम्मीद है कि रात तक दरांती का बुखार उतर जाएगा। उसके बाद तुम इसे यहां से घर ले जाना। हकीकत यह थी कि जुम्मन उस दरांती को शेख चिल्ली के जाने के बाद वहां से ले जाने वाला था।
अब शेख चिल्ली तो मूर्ख था, उसे जुम्मन के इरादे समझ नहीं आए और वह उसकी बात मानकर अपने घर लौट आया। शाम को जब उसे दरांती का ध्यान आया तो वह दरांती देखने के लिए कुएं की ओर चल दिया। शेख चिल्ली घर से निकला ही था कि तभी उसे जुम्मन की दादी की सिसकने की आवाज सुनाई दी।
दादी की आवाज सुनकर शेख चिल्ली जुम्मन के घर चला गया। वहां उसने देखा कि जुम्मन की दादी को तेज बुखार है और वह दर्द से सिसक रही हैं।
इस पर शेख चिल्ली ने सोचा कि उसे जुम्मन की दादी की मदद करनी चाहिए। इस ख्याल के साथ शेख चिल्ली ने दादी को पास पड़ी रस्सी से अपनी पीठ पर लाद कर बांध लिया और कुएं की ओर चल पड़ा। आस-पास के लोगों ने जब यह सब देखा तो सभी ने शेख चिल्ली को रोकने की बहुत कोशिश की। मगर, सबकी अनसुनी करते हुए शेख चिल्ली जुम्मन की दादी को कुएं तक ले आया।
दरअसल, जुम्मन दादी की दवा लेने गया था, इसलिए वह दरांती लेने कुएं पर नहीं आ पाया था। इस वजह से जब शेख चिल्ली कुएं पर पहुंचा तो उसे दरांती उसी जगह मिली। उसने फौरन रस्सी खींचकर दरांती निकाली और जुम्मन की दादी को कुएं लटकाने की तैयारी करने लगा।
तभी जुम्मन और उसके पिता को जब इस बात का पता चला कि शेख चिल्ली जुम्मन की दादी को पीठ पर लादकर कुएं की ओर ले गया है तो भागते हुए वे दोनों कुएं के पास पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि शेख चिल्ली दादी को कुएं में लटकाने की पूरी तैयारी कर चुका है।
यह देखकर जुम्मन के पिता तेजी से चिल्लाए, “अरे पागल, यह करने जा रहा है तू।”
शेख चिल्ली को कहां कुछ मालूम था, वह तो अपनी समझ से दादी का इलाज करने जा रहा था। इसलिए उसने बहुत आराम से जवाब देते हुए कहा कि दादी को बहुत तेज बुखार है। इसलिए मैं उनका इलाज करने जा रहा हूं।
इस पर जुम्मन के पिता ने गुस्साते हुए पुछा कि यह इलाज का कौन सा तरीका है। इस पर शेख चिल्ली बोला कि यह तरीका तो मुझे खुद जुम्मन ने बताया है। उसी ने मुझे बताया कि हकीम दादी का ऐसे ही इलाज करते हैं और उसने मेरी दरांती का बुखार भी ऐसे ही ठीक किया था।
शेख चिल्ली की ये बात सुनकर जुम्मन के पिता गुस्से से लाल हो गए और जुम्मन को घूरने लगे। अब जुम्मन अपनी ही चाल में फंस गया था और अपने किए पर शर्मिंदा था। जुम्मन के पिता को सारी बात समझ आ गई थी। उन्होने जुम्मन को मारने के लिए डंडा उठा लिया और उसे पीटने लगे।
नासमझ शेख चिल्ली हैरान था कि जुम्मन के पिता जुम्मन को क्यों मार रहे हैं। मगर, जुम्मन के पिता इतने गुस्से में थे कि उसने उनसे कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा और घर लौट आया। घर पर शेख चिल्ली की अम्मी मिठाइयों के साथ उसका काफी देर से इंतजार कर रही थीं।
कहानी से सीख
बुखार का इलाज शेख चिल्ली की कहानी से यह सीख मिलती है कि दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वाले एक दिन खुद उसी गड्ढे में गिरते हैं।