पहली भारतीय फिल्म “राजा हरिश्चन्द्र” का प्रदर्शन / 3 मई 1913
दादा साहेब फाल्के द्वारा निर्मित तथा सन् 1913 में प्रदर्शित फिल्म “राजा हरिश्चन्द्र” को भारत की पहली फीचर फिल्म होने का श्रेय प्राप्त है। “राजा हरिश्चन्द्र” चार रीलों की लम्बाई वाली एक मूक फिल्म है। इस फिल्म की कहानी हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में वर्णित राजा हरिश्चन्द्र की कथा पर आधारित है। अपने लंदन प्रवास के दौरान ईसा मसीह के जीवन पर आधारित चलचित्र ‘दि लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ को देखकर दादा साहेब फालके इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने भारत में फिल्म बनाने का निर्णय कर डाला। चूँकि उस जमाने में भारत में फिल्म निर्माण के विषय में नहीं के बराबर ही जानकारी थी इसलिये इंगलैंड में रहकर फिल्म निर्माण की कला सीखी।
फिल्म निर्माण कला सीख कर वापस भारत आने पर दादा साहेब फाल्के ने “राजा हरिश्चन्द्र” फिल्म बनाना शुरू किया। किन्तु उस जमाने में फिल्म बनाना आसान नहीं था क्योंकि लोग फिल्मों को अंग्रेजों का जादू-टोना समझते थे। फिल्म के लिये कलाकार मिलना मुश्किल होता था। किसी प्रकार से पुरुष कलाकार तो मिल जाते थे किन्तु महिला कलाकार मिल ही नहीं पाते थे क्योंकि महिलाओं का नाटक, नौटंकी, फिल्मों आदि में काम करना वर्जित माना जाता था। पुरुष कलाकारों को ही महिलाओं के वस्त्र पहनकर महिला-चरित्रों को निभाना पड़ता था। दादा साहेब फाल्के ने जब यह फिल्म ब्नानी शुरू की तो उन्हे तारामती का रोल करने के लिए कोई महिला कलाकार नहीं मिली, उन्होने मजबूर हो के एक युवक सालुंके से ये भूमिका करवायी। “राजा हरिश्चन्द्र” के निर्माण के दौरान दादा साहेब फाल्के के समक्ष अनेक बाधाएँ आईं किन्तु उन्होंने अडिग रहकर अपनी फिल्म बनाने में सफलता प्राप्त कर ही लिया और फिल्म 3 मई 1913 को प्रदर्शित हो गई।
प्रदर्शित होने पर “राजा हरिश्चन्द्र” ने इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त की कि मुंबई (उन दिनों बंबई) के गिरगाँव स्थित कोरोनेशन सिनेमा के सामने सड़कों पर लोगों की विशाल भीड़ इकट्ठी हो जाया करती थी। इस फिल्म की इतनी अधिक मांग बढ़ी कि ग्रामीण क्षेत्रों में इसके प्रदर्शन के लिये दादा साहेब फाल्के को फिल्म के और भी कई प्रिंट बनाने पड़े। फिल्म ने जबरदस्त सफलता प्राप्त की और दादा साहेब फाल्के एक फिल्म निर्माता के रूप में स्थापित हो गये और भारतीय फिल्म उद्योग के लिये एक रास्ता खुल गया।
उल्लेखनीय है कि दादा साहेब फाल्के का असली नाम ’धुंडीराज गोविन्द फालके’ था और उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का पितामह माना जाता है। आज भारत सरकार के द्वारा फ़िल्म निर्माण में क्षेत्र में उत्कृष्ठ योगदानकर्ता को ’दादा साहब फालके’ सम्मान द्वारा नवाजा जाता है जो कि इस क्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान है।