अकबर बीरबल के किस्से बहुत ही मशहूर हुआ करते थे यह सुनने में रोचक भी होते थे साथ ही ज्ञान भी देते थे। अकबर बीरबल के किस्से मनोरंजन का ऐसा साधन हैं, जो हँसी ठिठौली तो देते ही हैं साथ ही जीवन का सत्य भी उजागर करते हैं। ऐसा ही एक किस्सा इस कहानी में लिखा गया है।
एक दिन बादशाह अकबर बहुत परेशान थे, कारण था उनके बेटे की अंगूठा चूसने की आदत। बादशाह अकबर ने कई तरीके आजमाए लेकिन शहजादे की आदत पर कोई असर नहीं हुआ।
अकबर अपने दरबार में बैठे थे तब उन्हें एक फ़क़ीर के बारे में पता चला जिनकी बातें इतनी अच्छी होती हैं कि टेड़े से टेड़ा व्यक्ति भी सही दिशा में चलने लगता हैं।
अकबर ने उस फ़क़ीर को दरबार में पेश करने का हुक्म दिया। फ़क़ीर दरबार में आया उसे अकबर ने अपने बेटे की गलत आदत के बारे में बताया और कोई उपाय करने का आग्रह किया।
दरबार में सभी दरबारी और बीरबल के साथ अकबर और उनका बेटा भी था। फ़क़ीर ने थोड़ी देर सोचा और कहा कि मैं एक हफ़्ते बाद आऊंगा और वहां से चला गया। अकबर और सभी दरबारियों को यह बात अजीब लगी कि फ़क़ीर बिना शहजादे से मिले ही चले गए।
एक हफ़्ते के बाद, फ़क़ीर दरबार में आये और शहज़ादे से मिले और उन्होंने शहज़ादे को प्यार से मुहं में अंगूठा लेने से होने वाली तकलीफ़ों के बारे में समझाया और शहज़ादे ने भी कभी भी अंगूठा ना चूसने का वादा किया।
अकबर ने फ़क़ीर से कहा कि यह काम तो आप पिछले हफ़्ते ही कर सकते थे। सभी दरबारियों ने भी नाराज़गी व्यक्त की, कि इस फ़क़ीर ने हम सभी का वक्त बरबाद किया, और इसे सजा मिलनी चाहिए क्यूंकि इसने दरबार की तौहीन की है।
अकबर को भी यही सही लगा और उसने सजा सुनाने का तय किया। सभी दरबारियों ने अपना अपना सुझाव दिया। अकबर ने बीरबल से कहा – बीरबल तुम चुप क्यूँ हो ? तुम भी बताओं की क्या सजा देनी चाहिए ?
बीरबल ने जवाब दिया जहांपनाह! हम सभी को इस फ़क़ीर से सीख लेनी चाहिए और इन्हें एक गुरु का दर्जा देकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
अकबर ने गुस्से में कहा बीरबल ! तुम हमारी और सभी दरबारियों की तौहिन कर रहें हो।
बीरबल ने कहा जहांपनाह ! गुस्ताखी माफ़ हो। लेकिन यही उचित न्याय हैं। जिस दिन फ़क़ीर पहली बार दरबार में आये थे और आप जब शहजादे के बारे में उनसे कह रहे थे तब आप सभी ने फ़क़ीर को बार बार कुछ खाते देखा होगा। दरअसल फ़क़ीर को चूना खाने की गलत आदत थी।
जब आपने शहज़ादे के बारे में कहा तब उन्हें उनकी गलत आदत का अहसास हुआ और उन्होंने पहले खुद की गलत आदत को सुधारा। इस बार जब फ़क़ीर आये तब उन्होंने एक बार भी चूने की डिबिया को हाथ नहीं लगाया।
यह सुनकर सभी दरबारियों को अपनी गलती समझ आई और सभी से फ़क़ीर का आदर पूर्वक सम्मान किया।
हमें भी हमेशा दूसरों को ज्ञान देने से पहले खुद की कमियों को सुधारना चाहिए और सही उदाहरण पेश करना चाहिए, तभी हम दूसरों को ज्ञान देने के काबिल हो सकते हैं।