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हिम्मत मत हारो आगे बढ़ते रहो !!

कुछ सालो पहले की बात है, एक गुरु और शिष्य कही से गुजर रहे थे। चलते चलते वह एक खेत के पास पहुंचे। दोनों को बहुत प्यास लगी थी तो वह खेत के बीचो बीच बने एक टूटे फूटे घर के सामने पहुंच गए। और वहां जाकर उन्होंने दरवाजे को खटखटाया।

गुरु और शिष्य पहले से चौंके हुए थे क्यूंकि खेत बहुत बड़ा था और अच्छी जमीन भी थी लेकिन खेत की हालत देखकर लगता था की उसका मालिक खेत पर जरा सा भी ध्यान नहीं दे रहा है। जैसे ही दरवाजा खुला अंदर से एक आदमी निकला। उसके साथ उसकी पत्नी भी निकली और तीन बच्चे भी थे। सब फटे पुराने कपडे पहने हुए थे।

गुरु ने बहुत ही बिनम्र आवाज से बोला, “क्या हमें पानी मिल सकता है?”

आदमी ने गुरु को पानी दिया। पानी पीते-पीते गुरूजी बोले, “मैं देख रहा हूँ की आपका खेत इतना बड़ा है पर इसमें कोई फसल नहीं हुई गई है। आखिर आप लोग अपना गुजारा कैसे चलाते है?”

आदमी बोला, “हमारे पास एक भैंस है, वह काफी अच्छी दूध देती है और दूध बेचकर कुछ पैसे हमें मिल जाते है। और जो दूध बच जाता है उसका  हम सेवन करते है। ऐसे ही हमारा गुजारा चलता रहता है।”

शाम होने आई थी और काफी देर भी हो गई थी। गुरु और शिष्य ने सोचा की आज रात वह वही अपना गुजारा करेंगे। उन्होंने उस आदमी से अनुमति ली और वह वही पर रुक गए।

आधी रात हो चुकी थी। गुरु ने अपने शिष्य को उठाया और एकदम धीमे से उसके कानो में बोला, “चलो हमें अभी यहाँ से निकलना है और चलने से पहले उसकी जो भैंस है उसे हमें ले जाकर कही जंगल में छोड़ देना है।

शिष्य को अपनी गुरु के बात पर जरा सा भी यकीन नहीं हो रहा था क्यूंकि जिस गुरु से वह बहुत सारी चीजे सीखा हुआ था उसी गुरु ने किसी का बुरा करने के लिए बोला था। फिर भी वह उसके गुरु थे इसलिए गुरु की बात मना नहीं कर सकता था।

आखिर गुरु और शिष्य जंगल की और निकल पड़े और भैंस को ऐसी जगह पर छोड़ दिया जहाँ से आना मुश्किल था।

यह घटना शिष्य के मन मन में बैठ गई थी और करीब दश साल के बाद एक बड़ा गुरु बना तब उसने सोचा क्यों न अपनी गलती को सुधार लिया जाए और उस गलती को सुधरने के लिए उस आदमी से मिला जाए और उसकी आर्थिक मदद की जाए जिससे उस व्यक्ति के आगे आने वाली जिंदगी खुशाल जिंदगी बने।

फिर शिष्य निकल पड़ा उस आदमी के मदद के लिए। कुछ समय पहले चलने के बाद वह शिष्य वहां पहुंच गए जहाँ वह दश साल के बाद यहाँ आए थे। मगर वह फिरसे चौंक गया। वहां पर उसने देखा बहुत बड़े बड़े से फल के पेड़ लगे हुए है, एक बड़ा सा घर बना हुआ है।

शिष्य को लगा की भैंस के चले जाने के बाद वह परिवार सब कुछ बेचकर यहाँ से चला गया होगा इसलिए वह वापस लौटने लगा। तभी उसने उस आदमी को देखा।

शिष्य ने उस आदमी से कहा, “सायद आप मुझे नहीं पहचानते लेकिन मैं आपको सालो पहले मिला था।”

उस आदमी ने मायूसी से बोला, “हाँ हाँ कैसे भूल सकता हूँ उस दिन को। आप लोग तो बिना बताए ही चले गए पर उसी दिन न जाने क्या हुआ? और जो मेरी भैंस थी वह कही चली गई और आज तक नहीं लौटी। कुछ दिनों तक तो मुझे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करना चाहिए और मैं क्या कर पाऊंगा? जीने के लिए मुझे कुछ न कुछ तो करना ही था। तो लकडिया काटकर बेचने का मैंने काम शुरू किया और उससे कुछ पैसे इखट्टा किया और जितने भी मेरे पास पैसे थे उससे मैंने अपने खेतो में फसल उगाई। आखिर में मुझे अपने मेहनत का फल मिला। फसल बहुत ही अच्छी निकली। बेचने पर मुझे जो पैसे मिले उससे मैंने फलों के बगीचे लगवा दिए। यह काम बहुत ही अच्छा चल पड़ा और इस समय आसपास के हजार गांव में बड़े से बड़ा फल का व्यापारी मैं हूँ। सचमुच यह सबकुछ न होता अगर वह भैंस चली गई नहीं होती क्यूंकि उसी के कारन मैं लाचार था और उसी के कारन मैं कोई काम नहीं करना चाहता था। उसके जाने से मैंने तुरंत नए रास्ते निकाले जिससे मैं पैसे कमा सकता था और आज मैं एक बहुत ही बड़ा व्यापारी हूँ।”

शिष्य बोले, “लेकिन यह काम तो आप पहले भी कर सकते थे।”

आदमी बोला, “कर सकता था लेकिन तब मेरी जिंदगी बिना मेहनत किए भी चल रही थी। मुझे तब लगा ही नहीं की मेरे अंदर भी इतना कुछ करने की क्षमता है कोशिश ही नहीं की मैंने लेकिन जब मेरी भैंस चली गई तब मुझे ऐसा लगा की मैं दूसरा भी काम कर सकता हूँ जिससे मैं अच्छा खासा पैसा कमा सकता हूँ और मेरे बच्चे और मेरी पत्नी को और अच्छी जिंदगी दे सकता हूँ इसलिए मुझे कुछ न कुछ तो करना ही था और मैंने तब थान लिया था की अब मैं जो भी करूँगा मेहनत के साथ करूँगा, अपने दम पर करूँगा और आज इसलिए मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूँ

इस कहानी से हमें यह सीख़ मिलती है की हमें दुसरो पर निर्भर नहीं होना है बस आगे बढ़ते रहना है, हिम्मत नहीं हारना चाहिए। 

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