एक बार की बात है एक वृद्ध महिला का पति मर गया। इसीलिए वह अपने पुत्र उसकी पत्नी और अपनी पुत्री के साथ रहने चली गई। प्रतिदिन उस महिला की दृष्टि और सुनने की शक्ति कमजोर होती गई। कभी कभी उसके हाथ इसने अधिक कांपते थे, की उसकी प्लेट से मटर के दाने लुढ़ककर नीचे गिर जाते थे और कप से सूप गिर जाता था।
उसका पुत्र और उसकी पत्नी इस गंदगी से बहुत परेशान हो जाते थे। एक दिन उन्होंने कहा कि बस अब बहुत हो चुका। इसीलिए एक दिन उन्होंने उस वृद्ध महिला के लिए एक छोटी मेज झाड़ू रखने की कोठरी के निकट लगा दी। उसको वही बैठकर अकेले ही हर बार खाना खिलाया जाने लगा।
वह महिला भोजन के समय अश्रु पुरितनेत्रों से उनकी और अपने कमरे से देखा करती थी, लेकिन खाते समय उसके चमच गिराने पर उसे बुरा भला कहने के सिवाय वे उससे कोई बात नही करते थे।
एक शाम को रात के भोजन से जरा देर पहले उनकी छोटी बेटी घर बनाने के बॉक्स से खेल रही थी। उसके पिता ने उसको प्यार से पूछा कि तुम क्या बना रही हो? तो उसने जवाब देते हुए कहा की में आपके और मम्मी के लिए एक छोटी सी मेज बना रही हु. अंत किसी दिन में बड़ी हो जाऊंगी तब आप एक कौने में बैठकर खाना खा सकोगे।
उस बच्ची के पिता और माता की बोलती बंद हो गई और वो दोनो काफी देर चुप रहे। फिर वे दोनो रोने लग गए अपने कृत्यों की प्रकृति और दुख जो उन्होंने अपनी मां को दिया था उसपर… उन दोनों ने उसी रात को अपनी मां को अपनी बड़ी खाने को मेज पर वापस ला गए, जहा उसका सही स्थान था। और फिर उसी दिन से हमेशा उस वृद्ध महिला ने उनके साथ ही भोजन किया। और जब कभी भी भोजन का छोटा हिस्सा मेज पर गिरता या चम्मच नीचे गिर जाता तो किसी को इससे कोई परेशानी नहीं होती थी।
एक बदनसीब माँ की कहानी
एक बूढी औरत फुटपाथ पर बैठी थी, मेरी तरफ दोनों हाथ फैला रही थी, मैने कहा- माँ क्या चाहिए, माँ ने कहा- बेटा ! चाय पिला दे, मैनें पास की स्टॉल से चाय लाकर पिलाई , मैने कहा- माँ रस ( टोस्ट ) खाओगी, माँ बोली- बेटा मुँह में दाँत नहीं है, मैनें माँ से पूछा- माँ, आपका घर, बच्चे बहू नहीं है !!!
माँ बोली- बेटा, मेरे 2 बेटे है, दोनों बेटे सरकारी अफसर हैं, एक बेटा इंजीनियर है, दूसरा बेटा बैंक मैनेजर है, मैनें पूछा- माँ, आपके दोनों बेटे अफसर हैं, फिर आप फुटपाथ पर कैसे, आप ऐसी परिस्थिति में कैसे आयी, माँ बोली- बेटा, इनके बापू ने इनको खूब पढाया, अफसर बनाया, अफसर बन गये तो बहू भी पढी-लिखी आई, इनके बापू को दमा ( अस्थमा ) था, साँस लेने में तकलीफ होती थी,वो चल बसे !!
जब तक वो थे, उनका सहारा था, उनके जाने के बाद बेटों का सहारा लेना चाहा, बहुएँ अब मालकिन हो गई थी, बेटों पर भी हुकम चलाने लग गई थी, बेटे भी बहुओं के गुलाम हो गए, बहुएँ घर का काम मुझसे करवाती थी !!
एक दिन मैं मैं काँच का गिलास साफ कर रही थी, बेटा, ठण्ड के दिन थे, बहुत ठंड थी, गिलास हाथ से छूट कर गिरा और टूट गया, छोटी बहू चिल्लाती आई, ये बुढिया हमें बर्बाद करेगी, बुढिया मर क्यूँ नहीं जाती, बेटा, वो सब मुझसे सहा नहीं गया और मैं फुटपाथ पर भीख माँगती हूँ, मैनें कहा- माँ, बेटे वापस लेने नहीं आये आपको !!
माँ रोते हुए बोली- नहीं बेटा, मैनें माँ से कहा- माँ मुझे अपना बेटा मान लो, आप मेरे साथ रहना, माँ बोली- बेटा, तुम्हे तकलीफ होगी, मैने बहुत जिद की लेकिन माँ नहीं मानी, माँ को मैनें वृद्धाश्रम छोड़ दिया !!!