प्रांजलि की आदत थी कि वह छोटी से छोटी बात को बहुत बढ़ाचढ़ाकर बोलती थी। क्लास में कोई भी ऐसा बच्चा नहीं था, जिसका वह मजाक नहीं उड़ाती थी।
कई बार तो उसके दोस्त नाराज हो जाते थे और कई बार हंसकर टाल देते थे। पर ज्यादा समय तक कोई भी उससे गुस्सा रह भी नहीं पाता था क्योंकि प्रांजलि बहुत ही मिलनसार और हंसमुख थी। उसका सिर्फ एक यही दुर्गुण था कि वह जब देखो सबका मजाक उड़ाया करती थी और खुद को सबसे महत्वपूर्ण बताती थी। धीरे-धीरे उसके दोस्त भी उसकी इस आदत को जान गए थे, इसलिए उन्होंने इस बात पर भी ध्यान देना बंद कर दिया।
थाइबातेन को अनसुना कर देते है तो एक दिन वह अपने दोस्तों से बोली”मैं इस बार स्कूल के किसी भी सांस्कृतिक कायक्रम में जरूर भाग यूंगी।
सोनम ने आश्चर्य से पूछा, “क्या करोगी तुम उसमें ?” “मैं डांस कलंगी ।” प्रांजलि ने गर्व से कहा।
अमित ठहाका मारकर हंसता हुआ बोला, पर तुम्हें डांस कहां आता किसने कहा कि मुझे डांस नहीं आता?” प्रांजलि ने खिसियाते हुए जवाब दिया।
मीना मुस्करा कर बोलीहम तो तुम्हारे साथ इतने सालों से पढ़ रहे हैं। हमने तो कभी नहीं देखा, तुम्हें डांस करते हुए ।” “हां-हां, क्योंकि कभी ऐसा कोई मौका ही नहीं आया तो तुम में से किसी को भी नहीं पता है कि मैं बहुत अच्छा नाचती हूं।” “अरे वाह..” सभी दोस्त खुश होते हुए बोले।
यह देखकर प्रांजलि को बहुत खुशी हुई और वह इतरा उठी। कुछ ही दिनों बाद उसकी सहेली नीलम का जन्मदिन था। नीलन ने अपने संस दोस्तों को बुलाया था।
जब प्रांजलि वहां पहुंची तो उसे सबके साथ गुब्बारे फोड़ने और गे खेलने में बहुत मजा आया। थोड़ी ही देर बाद नीलम ने म्यूजिक चलाया। और सबको डांस करने के लिए कहा। मीना बोली, “नहीं आज हम सबसे पहले प्रांजलि का डांस देखें, प्रांजलि ने आश्चर्य से कहा“मेरा डांस।” अब तक प्रांजलि यह भूल चुकी थी कि वह सभी दोस्तों के सामने अपने डांस करने की डींगें मार चुकी थी। नीलू ने उसे याद दिलाते हुए कहा“तुमने तो उस दिन कहा था कि
तुम अच्छा नाचती हो।” जब प्रांजलि को कुछ नहीं सूझा तो उसने बहाना बनाते हुए कहा “पर इस गाने पर नहींमुझे तो दूसरे गाने पर डांस करना आता है।”
“कोई बात नहीं, हम गाना देते हैं।” नीलम ने उसकी दूसरा चला तरफ देखते हुए पूछा। प्रांजलि ने सोचा, कौनसा इसके पास हर गाना होगा।
पर उस दिन प्रांजलि का पासा उलटा पड़ गया। वह जो भी गाने बता रही थी, नीलम एक के बाद एक गाने चलाती
जा रही थी। प्रांजलि को काटो तो खून नहीं, उसे तो बिलकुल भी नाचना नहीं आता था। सब लोग उसी की तरफ देख रहे थे।
तभी वह बोली, “यहां पर नाचने में मुझे मजा नहीं आएगा। मुझे खुली जगह में नाचने में मजा आता है।” यह सुनकर सभी दोस्त जोरों से हंस पड़े। नीलम बोली ठीक है मैं इसका आवाज बढ़ा देती , जिससे बाहर तक सुनाई पड़ेगा और तुम बाहर आंगन में डांस करो हम लोग वहां देखे लेंगे। अब प्रांजलि का चेहरा उतर
गया।
वह सबसे बता भी नहीं सकती थी कि उसे बिलकुल भी नाचना नहीं आता। उसने फिर एक बहाना सोचा और बोली, “नहींमुझे लग रहा है कि आज कुछ मौसम ठीक नहीं है और शायद यह जमीन भी ऊबड़खाबड़ है।
मैं फिर कभी नाचूंगी। यह सुनते ही नीलम की दादी जोरों से हंस पड़ी। वह बहुत देर से प्रांजलि और उसके दोस्तों की बातचीत सुन रही थी।
वह हंसते हुए बोली, “प्रांजलि, बेटानाच न जाने आंगन टेढ़ा।” और यह सुनते ही सभी दोस्त खिलखिलाकर हंस पड़े। पर प्रांजलि को यह समझ में आ गया था कि अब वह कभी भी झूठी डींगें नहीं मारेगी और कभी किसी का मजाक नहीं उड़ाएगी।