साँच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै साँच है ताकै हृदय आप॥ सच्चाई के बराबर कोई तपस्या नहीं है, झूठ (मिथ्या आचरण) के बराबर कोई पाप कर्म नहीं है। जिसके हृदय में सच्चाई है उसी के हृदय में भगवान निवास करते हैं।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ‘सत्येन धारयते जगत् ।’ अर्थात् सत्य ही जगत को धारण करता है। संस्कृत की यह उक्ति अक्षरक्षः सत्य है। यदि कोई व्यक्ति समाज, नारेवार या राष्ट्र बार-बार असत्य का सहारा लेता है तो अंततः वह अवनति को ही प्राप्त होता है।
झूठे व्यक्ति का न ही कहीं मान होता है और न ही सम्मान। झूठ पकड़े जाने पर उसे बहुत लज्जा का सामना करना पड़ता है। यदि फिर वह सत्य का मार्ग अपनाना भी चाहे, तो कोई उसकी बात पर विश्वास नहीं करता। संसार के सभी महापुरुष सत्य का गुणगान करते नहीं थकते थे। राजा हरिश्चंद्र ने तो सत्य के मार्ग पर चलते हुए राज-पाट तक छोड़ दिया था।
महाभारत में युधिष्ठिर का दृष्टांत सत्य धर्म पर चलने वालों के लिए एक ज्वलंत उदाहरण है। हमारे राष्ट्रपिता ने भी सत्य तथा अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए ही अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे। यदि कोई व्यक्ति सोचता है कि आज के कलयुग में सत्य का कोई मोल नहीं है, तो वह गलत सोचता है।
आज के भौतिकवादी युग में भी सत्य का उतना ही महत्व है जितना कि सतयुग या द्वापर युग में था। हाँ, यदि किसी की भलाई के लिए असत्य बोला जाए, तो उसमें कोई बुराई नहीं है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सत्यवादी व्यक्ति किसी अन्य साधन के बिना भी इस लोक में मान-सम्मान तथा परलोक में मोक्ष को प्राप्त करता है, क्योंकि-
“साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप।”