एक जुलाहा था। एक कोयले का व्यापारी उसके पड़ोस में ही रहता था। जुलाहा अपनी छोटी-सी झोपड़ी में रहकर कपड़ा बुनता था। जबकि कोयले का व्यापारी नजदीक ही एक काफी बड़े कमरे में रहकर कोयले का व्यापार करता था।
एक दिन कोयले के व्यापारी ने जुलाहे से कहा, “तुम इतने छोटे-से कमरे में रहते हो। चाहो तो मेरे कमरे में आकर रह सकते हो। तुम्हें मुझे किराया भी नहीं देना पड़ेगा और रहने को अच्छी व खुली जगह भी मिल जाएगी।”
जुलाहे ने बड़ी नम्रता से कहा,”श्रीमान्! आपने मेरी मदद करनी चाही, इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! पर मैं आपके साथ नहीं रह सकता,
क्योंकि हम दोनों का काम बिल्कुल अलग है। आपके कमरे में मेरी रूई और कपड़े कोयले के कालेपन से मैले हो जाएंगे, इसलिए मैं अपनी झोंपड़ी में ही खुश हूँ।”
Moral of Story
शिक्षा: मित्रता सोच-समझकर ही करनी चाहिए।