एक दिन एक जौहरी एवं एक लौह व्यापारी अपने-अपने गधों पर सवा होकर कहीं जा रहे थे। जौहरी के गधे की पीठ पर रेशम का कपड़ा था और वह स्वर्ण मुद्राओं एवं कीमती जवाहरातों से भरे हुए दो थैले ढो रहा था।
वहीं लौह व्यापारी का गधा साधारण था। वह कुछ लोहे की छड़ें ढो रहा था। जौहरी के गधे को अपनी पीठ पर कीमती सामान होने के कारण घमंड हो गया। उसकी घमंड पूर्ण बातें दूसरा गधा सुन रहा था। दुर्भाग्य से,
जब वे एक जंगल से गुजर रहे थे, डाकुओं के एक गिरोह ने उन्हें रोक लिया। डाकुओं को देखकर जौहरी एवं व्यापारी अपने-अपने गधों को छोड़कर भाग खड़े हुए। डाकू सामान को देखने लगे।
उन्हें लौह व्यापारी के गधे की पीठ पर रखे सामान में कुछ भी कीमती सामान नहीं मिला। इसलिए उन्होंने उसे छोड़ दिया। जौहरी के घमंडी गधे की पीठ पर कीमती सामान देखकर वे उस पर लदे थैलों से सामान निकालने लगे।
जब गधा जरा-सा भी विरोध करता, है उसे खूब जोर-जोर से मारते। इस प्रकार उस घमंडी गधे को सबक मिल गया कि घमंड करना ठीक नहीं है। घमंडी लोगों को हमेशा नीचा देखना पड़ता है।