Breaking News

आँखें नम हो गईं !!

गांधीजी के अनन्य सहयोगी काका कालेलकर ने अनेक बार स्वाधीनता आंदोलन के सिलसिले में जेल यातनाएँ सहन की थीं। वे विदेशी शासन की कारगुजारियों के विरुद्ध खुलकर लेख लिखते थे।

वे गांधीजी के आश्रम में रहकर स्वदेशी और स्वदेश का महत्त्व प्रकट करनेवाला साहित्य सृजन करते थे। एक बार काका साहब को गिरफ्तार कर साबरमती की जेल में रखा गया।

उसी दौरान काका साहब के दोनों पुत्रों सतीश और बाल ने गांधीजी की दांडी यात्रा में शामिल होकर गिरफ्तारियाँ दीं। उन दोनों को भी उसी जेल में भेजा गया। काका साहब को इसकी जानकारी नहीं थी । पुत्र भी इस बात से अनजान थे कि उनके पिता इसी जेल में हैं।

एक दिन सतीश और बाल जेल के पुस्तकालय में स्वदेशी पुस्तकों की तलाश में पहुँचे। उन्होंने एक व्यक्ति को अध्ययन में लीन देखा । तीनों की जैसे ही आँखें मिलीं कि वे सब हतप्रभ रह गए।

काका साहब ने पुत्रों को गले लगाते हुए कहा, ‘मैं तुम दोनों को अपने पथ का अनुकरण करते देखना चाहता था। तुम्हें कैदियों के वस्त्र पहने देख प्रभु ने मेरी अभिलाषा पूरी कर दी ।

मुझे संतोष है कि तुम दोनों ने मातृभूमि की स्वाधीनता के यज्ञ में शामिल होकर हमारे कुल को पवित्र कर दिया।’ कहते-कहते काका साहब की आँखें नम हो गईं।

काका कालेलकर ने राष्ट्रभाषा हिंदी, स्वदेशी और दलितों-पीड़ितों की सेवा में अपना जीवन खपाया। उन्होंने अनेक देशों की यात्रा कर भारतीय संस्कृति का प्रचार किया।

Check Also

pakshi-budiyaa

बेजुबान रिश्ता

आँगन को सुखद बनाने वाली सरिता जी ने अपने खराब अमरूद के पेड़ की सेवा करते हुए प्यार से बच्चों को पाला, जिससे उन्हें ना सिर्फ खुशी मिली, बल्कि एक दिन उस पेड़ ने उनकी जान बचाई। इस दिलचस्प कहानी में रिश्तों की महत्वपूर्णता को छूने का संदेश है।