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जिन्दगी की तलाश में हम

कालिंदी बेचारी ज्यादा पढ़ी लिखी तो नही थी पर !!! उस बेचारी ने बहुत कोशिश की थी कि उसके बच्चे पढ़ लिखकर उसका और उसके कुल खानदान का नाम बढ़ाएं…कालिंदी का पति बेचारा श्याम बिल्कुल “” श्याम “” जैसा ही सीधा और भोला था…उसे दुनिया की चालाकियां और चतुराई न समझ में आती थी और ना ही वह वैसा बनना चाहता था….

कालिंदी अपने तीन देवरानी जेठानी और ननदों का मिला जुला परिवार था…जहा पर सब लोग एकी साथ रहते थे…चुकी कालिंदी के ससुर राम प्रसाद “” पी डब्लू डी “” के इंजीनियर पद से रिटायर होकर दिल्ली में ही एक आलीशान घर बनवा कर रहते थे..जहां कालिंदी के ससुर एक अच्छे आदमी थे स्वभाव के तो वही उसकी छाया…जो अपने नाम के अनुसार सबकी जिंदगी में अंधेरा फैलाई हुई थी….

कालिंदी बहुओं में माझल थी इसलिए उसकी और उसके परिवार की उस घर में इज्जत भी कम होती थी क्योंकि बड़ा बेटा डॉक्टर था और और छोटा बेटा वकील और दोनो बड़े छोटे माता पिता की जान थे और श्याम बीच का था इसलिए वह न मां का ही दुलारा था और न पिता का |

कालिंदी और श्याम को छोड़कर उस घर में सबकी तारीफ होती थी | श्याम की कीमत उस घर में इसलिए भी कम थी क्योंकि वह एक प्राइवेट स्कूल में टीचर इसलिए उसके परिवार की कीमत उस घर में एक नौकरी जैसी ही थी | पर श्याम और कालिंदी कभी इस बात का शोक नही मनाते थे उनको विश्वाश था कि एक दिन उनका समय भी आएगा भगवान ने उनके भी किस्मत में वह मान सम्मान और इज्जत मिलेगा जिसके लिए आज उन्हे दूर किया जाता है |

छाया और राम प्रसाद के पास धन दौलत की कोई कमी नही थी इसलिए वह लोग अपने बच्चो के ऐसों आराम और उनका स्टेट्स बनाने के लिए मुठ्ठी भर भर पैसे बिना किसी सवाल ज़बाब के से दिया करते थे |

ऊपर से बेटी दामाद के अलग शौक थे उनके ससुराल में दिखाने के लिए महंगी महंगी और कीमती चीज सास छाया अपनी बेटी दामाद के कहने पर लुटाया करती थी ताकि उनका और उनकी बेटी के मायके का नाम होगा | राम प्रसाद भी अपने दोनो बेटों के कहने पर अपने प्यार जीवन का पेंशन भी एक मूस्त रिटायरमेंट में ही ले लेते है इसलिए उन्हें कोई पेंशन भी नही मिलता है अब जो कुछ भी उनको करना होता है तो वह अपनी जमा पूंजी से निकालकर करते रहते है |

पत्नी भी गलत आदतों और किट्टी पार्टी, डिस्को में जाने की वजह से इतने पैसे बर्बाद कर देती है और इतना कर्जा राम प्रसाद के नाम पर लोगो से ले लेती है कि लोग उनके घरों तक आकर अपने पैसे मांगने लगते है जिसका अंदाजा और खबर राम प्रसाद को बहुत बाद में पता चलती है जिसकी भरपाई उन्हे अपनी जमा पूंजी और कुछ जमीनों को बेचकर भरनी पड़ती है |

धीरे धीरे सभी बेटे बेटियों के बच्चे अब बड़े होने लगते है उनके खर्चे और शौक भी उनकी उम्र के साथ बढ़ने लगते है तो दोनो बेटे अपनी फैमिली के शौक पूरे करने और आजादी की जिंदगी जीने के लिए उस बड़े से बंगले से निकल कर अलग रहने की मांग करने लगते है |

पर अभी उनके मन में अपनी इच्छाओं को पूरा करना था सो वह अपनी मां से कुछ पैसों का इंतजाम करने की गुजारिश करते है अपने बच्चो के हाई स्टडी के लिए तो छाया जो अब पूरी तरह से खाली हो चुकी रहती है वह अपने हालातो को बताकर खुद उनसे मदद की उम्मीद करने की गुहार लगाती है |

जब राम प्रसाद के दोनो बेटों और दोनो बेटियों को यह बात पता चलती है कि मां के पास अब देने के लिए कुछ नही बचा है तो वह लोग एक दिन बिना बताए घर छोड़कर जाने का प्लान बनाते है | एक दिन राम प्रसाद के दरवाजे पर बैंक से बंगले की नीलामी का नोटिस आ जाता है और वह जब इस बात के तह तक जाते है तो उन्हें अपनी पत्नी और दोनो बेटी के करतूत का पता चलता है |

सुबह राम प्रसाद बैठक में अपने पूरे परिवार को बुलाते है और अपनी पत्नी और दोनो बेटों से उनको बर्बाद करने का वजह पूछते है तो कोई कुछ नही बताता है…और बिना उनके कुछ कहने के पहले ही सब अपने अपने कमरे में चले जातें है। ..

श्याम…बेटा अब तुम्हारे हाथ में है कि हम इन मुसीबत से कैसे निकले , क्योंकि मेरे पास जो कुछ भी था वह तुम्हारी मां ने तुम्हारे भाइयों पर लूटा दिया और सब कुछ खुद बरबाद कर दिया है| इसलिए पत्नी होने के नाते जिस तरह से उसको आज तक झेलता आया हूं वैसे ही जिंदा रहते तक तो निभाऊंगा |

क्योंकि मेरे चार बच्चे मेरे सुख और मेरे पैसे के साथी थे पर तुम मेरे वो श्याम हो जो हमेशा से एक जैसा ही रह गया इसलिए तुम्हे कुछ दे तो नही पाया हूँ आज तक। .पर जो तुम्हारा है वह मैं तुम्हे देना चाहता हूं | इतना कहकर राम प्रसाद कुछ कागज श्याम और कालिंदी के हाथो में थमा देते है |

वैसे एक बात कहूं बेटा, एक स्त्री चाहे तो घर को घर बना देती है स्वर्ग जैसा !!! और वही स्त्री चाहे तो ?? तो बसे बसाए घर को जहन्नुम बना देती है | जैसा कि तुम्हारी मां शुरू से ही मुझे बरदाद करती आई है कभी मुझे मेरे परिवार से अलग करके तो कभी तुम्हे तुम्हारे ही भाइयों से और आज देखो। आज इसने मुझे धन दौलत और मेरे वजूद से | हम अपने परिवार और बच्चो के खुशी के लिए कभी इस बात पर ध्यान ही नही दिए कि मेरी पत्नी मेरा घर बना रही है या उजाड़ क्योंकि यह तो अपने दिखावे और हाई प्रोफाइल पब्लिसिटी स्टंट के लिए आज मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया |

श्याम , बेटा कालिंदी देखो तुम दोनो हमें माफ कर देना हम अपनी के करनी की सह तुमसे मांगते है बेटा देखना तुम दोनो का भी एक दिन वक्त आएगा तुम्हारी भीं किस्मत खुलेगी और तुम भी तुम एक जाने माने नाम बनकर अपनी जिंदगी बिताओगे तब हम तुम्हारे पास आयेंगे इसलिए तुम हमें खोजने को कोशिश मत करना .हम दोनो अपने किए हुए कर्म का प्रायश्चित करने जा रहे है |

श्याम के समझ में कुछ भी नही आता है कि उसके पिताजी ने क्या कहा है अभी और क्यों ??? क्योंकि वह कभी इन सबमें उतना था ही नही और ना ही कभी उसकी पत्नी ही पूछती या कहती थी उससे यह सब जानने सुनने के लिए श्याम वह कागज अपने माया पिता का आशीर्वाद समझकर उसको संभालकर रख देता है |

पिताजी…कालिंदी अपने ससुर के पांव पकड़कर उनसे पूछती है…आप लोग कहां जा रहे हो और आप ऐसी बातें क्यों कर रहे हो | ऐसा तो मैने कभी नही सुना आपसे |

कालिंदी…तुम हम लोगो की फिक्र कर रही है…ना तुम हमारे लिए अपने कीमती आंसू मत बहाया करो बेटा…और हम तुमसे दूर थोड़ी जा रहे है….हमें भी तो तुम लोग आजादी दी कि आज तक किए गए कर्मो का प्रायश्चित करके हम भी अपने पितरों और पीढ़ियों के लोगो को तार सके |

इतना कहकर राम प्रसाद अपनी पत्नी छाया को लेकर चला जाता है…वह कहां जाता है किसी को कुछ भी नही मालुम…कालिंदी और श्याम बहुत खोजने का प्रयास करते है पर उनको ढूंढ नही पाएं है | एक हफ्ते बाद बैंक वाले वहां आकर उस बंगले पर अपना अधिकार कर लेते है कालिंदी और श्याम अपने दोनो छोटे बच्चो को लेकर वहां से स्कूल के कंपाउंड में हो वॉचमैन के क्वार्टर में रहने लगते है |

बारह साल बाद, श्याम की किस्मत ऐसी खुलती है कि उसे अपने पिता का वह आशीर्वाद याद आने लगता है और वह जिस प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती था, आज वह प्राइवेट स्कूल गवर्नमेंट स्कूल में तब्दील हो जाता और वहां के सारे टीचर सरकारी टीचर हो जाते है | उसी साल श्याम का लड़का कृष्ण भी विदेश में अपनी पढ़ाई के लिए स्कॉलर शिप पाकर विदेश में नासा कंपनी के लिए चुन लिया जाता है जिसकी खबर अखबारों तक में छप जाती है |

अब श्याम और कालिंदी के सारे दुख दूर हो जाते है एक दिन उनके दरवाजे पर किसी की पुकारने की आहट सुनाई देती है तो ???? तो सामने अपने पिता राम प्रसाद को देखकर दोनो को विश्वाश नही होता है.

कालिंदी…यह सपना है कि सच…क्या तुम्हे भी दरवाजे पर पिताजी दिखाई दे रहे है…श्याम पूछता है अपनी पत्नी से

श्याम ??? बेटा मैने कहां था न कि तुम्हारी भी किस्मत खुलेगी एक दिन…देखो वो दिन आ गया…मैं तुम्हे खुश देखने के लिए आ गया…रामप्रसाद जी अपने मझले बेटे श्याम और इसकी पत्नी से कहते है पिता जी आप तो आ गया पर मां !!! मां कहा है पिता जी…उसको क्यों नही लेकर आए आप.???…. श्याम पूछता है अपने पिता से बेटा…तेरी मां ने तुम दोनो के साथ जो दोहरा व्यवहार किया था….भगवान ने उसे उसकी सजा दे दी बेटा…..तेरी मां ने अपने ही कोख से जन्म दिए बच्चो के साथ दोहरा व्यवहार किया था इसलिए भगवान ने उसे दस सालो तक कोढ़ से ग्रसित करके उसके जी कर्मो की सजा उसे दे दी थी। अब वह इस दुनिया में नही है |

पिताजी आप कहां चले गए थे…हमने कितनी तलाश की आपकी …कितना खोजा आपको हर जगह पर आप मिले ही हमें….श्याम अपने पिता से पूछता है…बेटा हम यहां रहते तब तो तुम्हे मिलते….हम तो प्रभु के चरणों में अपने पापो को ढिलने गए थे हरिद्वार….क्योंकि अगर इस जन्म में हम अपने पापों का प्रायश्चित नही करते तो हमको उस जन्म में भोगना पड़ता |

क्योंकि जब एक मां बाप अपने ही बच्चो से अलग अलग भाव रखते है तो ??? तो वह पाप का भागी बनते है….क्योंकि वह जन्मदाता होते है…और जन्मदाताओं को अपनी सभी औलादों से एक जैसा व्यवहार और दान देना चाहिए न कि किसी को कम तो किसी को ज्यादा .

तुम्हारी मां की जो दुर्दशा हुई थी वह उनके इसी कर्मो का फल था…. जो उन्हें कोढ़ रूप में प्रभु ने दिए। एक माता पिता अपनी औलाद के प्यार में पड़कर कितने बुरे कर्म कर देता है…उसके अंदर कितनी लोभ , मोह माया समा जाती है कि वह अपने सच्चे कर्म और सतमार्ग को भूलकर दूसरे रास्ते पर भटक जाता है….

जिंदगी की तलाश में वह ने जाने कितने गलत कार्य करता जाता है….वह अपने अच्छे बुरे के बारे में भूल जाता है… कि वह किसलिए यहां पर आया है…अपनी खुशी पाने के लिए क्या कुछ नहीं करता और उसको मिलता क्या है….कुछ नही ??? आया तो मुट्ठी बांधकर…सबको देने के लिए कुछ अच्छा कर्म करने के लिए…….और जाता है तो ??? तो खाली हाथ….कुछ नही रह जाता है उसके हाथो में ..वह जिस कर्म को करने आया था वह भी भूल जाता है अपनी जिंदगी को जीने में

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रामशरण ने कहा-" सर! जब मैं गांव से यहां नौकरी करने शहर आया तो पिताजी ने कहा कि बेटा भगवान जिस हाल में रखे उसमें खुश रहना। तुम्हें तुम्हारे कर्म अनुरूप ही मिलता रहेगा। उस पर भरोसा रखना। इसलिए सर जो मिलता है मैं उसी में खुश रहता हूं