चतुर,चालाक, कुटिल,फरेबी इंसान को साधारण बुद्धि वाले स्त्री पुरूष नहीं समझ सकते और उनकी बातों में आ जाते हैं!
उदाहरण के लिए – स्त्री पर कामुक नजर रखने वाला पुरुष अपनी काम भावना छिपाकर स्त्री से प्रेम निवेदन कर देता है वह डायरेक्ट तो नहीं कहता कि “हमें तुमसे संभोग की इच्छा है ” क्योंकि उसे पता है ऐसा कहेंगे तो क्या होगा?वह धीरे -धीरे प्रेम के छलावे में उसे बांधना शुरू करता है उसे उस वक्त स्त्री की सभी चीजें पसंद आती हैं नहीं भी आती तो भी वह पसंद होने का दिखावा करता है।
प्रेम निवेदन को स्त्री यदि ठुकरा देती है या पुरुष की गंदी स्वार्थी मानसिकता को भांप कर दूरी बना लेती है तो पुरूष को डर हो जाता है यह किसी से मेरे बारे में सच्चाई न बता दे,, इससे मेरी बदनामी होगी ,, और लोग मेरी गलत आदत पहचान जायेंगे,, पुरूष चूंकि पुरूष है उसको समाज की छद्म, दिखावटी चिंता है वह उस स्त्री को बिना समय गंवाए पहले ही बदनाम कर देने की कोशिश करता है ,
मैने दस सालों में सोशल मीडिया हो या धरातल कईयों आपबीती सुनी और देखी । कुटिल पुरूष कितनी आसानी से औरों से कह देते हैं अमुक तो लाइन मार रही थी हमने ही कहा अरे हम शरीफ आदमी हूं, और पता नहीं क्या -क्या.. मुझे लिखने में भी असभ्यता महसूस हो रही। लेकिन विषय उठाना जरूरी था अक्सर जो समाज की नजरों से ओझल विषय या जिनपर कम बात होती है उन विषयों को लाना मैं जरूरी समझती हूं।
कुछ कुटिल स्त्रियां भी पुरुष की काम भोगवादी मानसिकता भांपकर फायदा उठा लेती हैं बाद में पुरुष वहां भी सीधा बनने का प्रयास करता है कि अमुक को मैने बहुत किया वो लूट गई मुझे लूटा कहां? उसने तो अपने काम का ,अपने प्रेम का पारश्रमिक लिया और निकल ली दूसरे काम भोगवादी को सबक सिखाने पुरूष/स्त्री इनमें से जो भी अति काम पीड़ित रहेगा तब तक अच्छा इंसान नहीं बन सकता ,, वह दूसरो को छलेगा, दुःख पहुंचाएगा, या खुद छला जायेगा धन हानि करेगा। स्त्रियों का घोर आलोचक रहेगा ।
पुरुष में अन्य स्त्री के प्रति यदि काम भावनाएं न हों तो वह स्त्री द्वारा कभी छला ही नहीं जा सकता, उसकी चेतना उसे स्वयं को छलने नहीं देगी, उसे जगत की हर स्त्री मां बहन के समान लगेगी और आपस में सम्मान बढ़ेगा।
यह सत्य है स्त्रियां अपने लाइफ पार्टनर से संतुष्ट रहती हैं तो बाहर का रुख नहीं करतीं हैं लेकिन पुरूषों में टेस्ट बदलने की आदत के चलते संतुलन बिगड़ता है आपके पास समय उतना ही है बाहर इश्क लड़ा लो या लाइफ पार्टनर और बच्चों को संतुष्ट रखो,,
स्टेट्स सिंबल के चक्कर में कई स्त्री/पुरुष को आगे पीछे घुमाना कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं है, इससे ईर्ष्यालुओं की फौज खड़ी कर सकते हो, अन्य को भी भटका कर समाज का, खुद के परिवार का पतन कर सकते हो और कुछ नहीं।
औरतों के लिए पुरुषों की मानसिकता
दस बजे जमना आई बर्तन ओर कपड़े करने , सिर पर पट्टी बंधी थी घाव गहरा दिखाई दे रहा था आंखे भी सूजी थी ! सावि ने पूछा ये क्या हुआ वह धीरे से कराहती हुई बोली,कुछ नही दीदी ये सब तो हमारे किस्मत में लिखा ही है ,कल पापड़ के कारखाने में ज्यादा आर्डर था तो साढ़े ग्यारह बज गई थी घर आते आते ।
उसका आदमी मज़दूरी करता और पैसे दारू में उड़ाता ; तीन बच्चों का पेट भरने और घर खर्चा चलाने के लिए जमना घरों में बर्तन भी मांजती और घरेलू अचार पापड़ बनाने कारखाने भी दिन में दो बजे से सात बजे तक आस-पड़ोस की औरतों के साथ जाती। कई बार उसके पैसे भी कालू झटक कर ले गया और दारू पीने में उड़ा दिए थे ;
लेकिन ये चोट और सुजन ? सावि प्रश्न वाचक नजरो से उसे देख रही थी ! रात काम ज्यादा होने से हम लोगों को देर हो गई थी दीदी ,जमना क्षीण स्वर में बोल रही थी…आदमी दारू पीकर किवाड़ के वहाँ ही औंधा पड़ा था । मैंने जब पानी छिटकर जैसे तैसे उसको जगाया तो मुझे देखते ही गालियां देने लगा और कहने लगा की इत्ती देर कहाँ गई थी,तेरे बारे में ऐसी अफवाह बस्ती में फैली है की तु मेरी गैर मौजूदगी में आवारागर्दी करती है और गुलछर्रे उड़ाती है, कहकर मेरे चरित्र पर दाग़ लगाने लगा!
कहकर वह रोने लगी ; दीदी उसने मेरे कुछ भी बताने से पहले ईट का टुकड़ा मेरे सिर पर दे मारा मैं बेहोश ही हो गई थी,होश आया तो चोट पर हल्दी लगा ली खूब सारा खून बह गया दीदी ! दर्द से उसकी आवाज़ कांप रही थी । सावि ने उसे दो तीन दिन छुट्टी देते हुए कहा आज काम रहने दे घर जाकर आराम कर साथ ही मलहम घाव पर लगाने को दिया, वह दुआएं देती हुई चली गई;
सावि सोच रही थी की निम्न वर्ग हो या मध्य वर्ग हो या उच्च वर्ग!औरतों के लिए पुरुषों की मानसिकता में ज्यादा परिवर्तन नही आया ! कही न कही ये दंश प्रत्यक्ष या परोक्ष औरत को झेलना पड़ता है। कितना आश्चर्य है ना ! बुद्ध रात को घर से निकले तो भगवान बन गए और माँ सीता अग्निपरीक्षा की भागीदार बनी !
महिलाओं को समाज में सुरक्षित महसूस कराने के लिए पुरुषों की मानसिकता बदलना जरूरी है |