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संजीव कुमार (हरीभाई जरीवाला)

जन्मदिन पर संजीव कुमार (हरीभाई जरीवाला) को नमन
अपने किरदारों में दर्शकों के मनमाफ़िक पूर्णता ना ला पाने का मलाल कभी ना कभी हर कलाकार के हिस्से में आता है,लेकिन संजीव कुमार हिंदी सिनेमा का वो नाम है जो इसका अपवाद रहा है….रोल छोटा है या बड़ा ! …..संजीव कुमार इस बात की चिंता किए बिना भूमिकाओं को अदाकारी के विविध रंगों से सजा इंद्रधनुषी विस्तार दे देते थे…..
हरफनमोला अभिनेता संजीव कुमार ‘गुलज़ार ‘साहेब के सबसे फेवरिट अभिनेता थे गुलजार और संजीव कुमार ने आधा दर्जन से ज्यादा फिल्में साथ-साथ की. दोनों की दोस्ती एक मिसाल थी…….. प्रोफेशनल लाइफ में तो दोनों एक-दूसरे के साथ थे ही लेकिन निजी जिंदगी में भी बहुत अच्छे दोस्त थे …..इनकी दोस्ती फिल्मों में आने से पहले हुई दोनों एक-दूसरे को तब से जानते थे जब संजीव कुमार इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन से एक्टिंग की ट्रेनिंग ले रहे थे और गुलजार इंडियन नेशनल थियेटर्स से जुड़े थे दोनों ने एक साथ पहली बार दिलीप कुमार की फिल्म ‘संघर्ष ‘(1968 ) में काम किया जिसमें संजीव कुमार एक्टर थे और गुलजार फिल्म की स्क्रिप्ट से जुड़े थे …….
गुलजार और संजीव भले दोस्ते थे लेकिन उनके व्यक्तित्व पूरी तरह अलग अलग थे ……संजीव कुमार का सेंस ऑफ ह्यूमर नेचुरल था वह सेट पर अपने अंदाज में सबको हंसाते-गुदगुदाते थे जबकि गुलजार गंभीर थे उन्हें काम के समय सिर्फ काम पसंद था ……..संजीव कुमार काम करने की सिचुएशन को बहुत हल्का बना देते और मुश्किल से मुश्किल सीन को भी ऐसे फिल्मा देते कि लगता ही नहीं कि सीन शूट किया गया है. ……वह किसी भी सीन को सिर्फ एक बार पढ़ते, एक बार उसकी रिहर्सल करते और फिर शूटिंग शुरू कर देते गुलजार संजीव की इसी अदायगी के बहुत बड़े फैन थे…….. संजीव कुमार ने गुलज़ार की आशीर्वाद ,अनुभव ,परिचय ,कोशिश ,आंधी ,मौसम ,नमकीन ,देवता ,गृहप्रवेश ,अंगूर नौ से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया इसमें कुछ फिल्मो में गुलज़ार ने सिर्फ संवाद और कहानी लिखी जबकि कुछ फिल्मे निर्देशित भी की ….
संजीव कुमार और गुलजार की दोस्ती कैसी थी वो आपको इस किस्से से पता चल जायेगा ……गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘परिचय’ (1972 ) की शूटिंग चल रही थी इस फिल्म में संजीव कुमार का छोटा लेकिन दमदार रोल था वो जया के पिता की भूमिका में थे ………जया भादुड़ी के साथ संजीव कुमार पर ”बीती ना बिताए रैना ” गाना फिल्माया जाना था …..संजीव कुमार की एंट्री गाने के बीच में होती है इस गाने के बीच उन्हें खांसी का जबरदस्त दौरा भी पड़ता है ……संजीव कुमार ने अपने हिस्से के शूट को वन टेक में पूरा कर दिया वह भी एकदम नेचुरल अंदाज में …
संजीव कुमार का यह अंदाज देख कर उस दिन गुलजार इतने खुश हुए कि उन्होंने कहाः….
”बोलो तुम क्या चाहते हो, आज जो मांगोगे वह दूंगा. ”
संजीव कुमार ने पूछा, …
सच में ?’
गुलजार को लगा संजीव ऐसा ही कुछ बोलेंगे कि…” अब आज बहुत हो गया मुझे छुट्टी चाहिए ..संजीव कुमार और शर्मीला टैगोर फिल्मों की शूटिंग के बाद अक्सर फिल्म देखने का प्लान बनाते थे लेकिन गुलजार की सोच के विपरीत संजीव कुमार ने कहा…
‘” यार तुम पान छोड़ दो.”
गुलजार के लिए यह हैरान करने वाली बात थी. ….गुलजार पान के बहुत शौकीन थे और तब दिन-रात पान चबाते थे उन्हें नहीं पता था कि उनकी यह आदत संजीव कुमार को पसंद नहीं गुलजार थोड़ा सोच में तो पड़े लेकिन उस दिन के बाद उन्होंने पान खाना छोड़ दिया…..
.संजीव में खास बात थी कि वे अपनी उम्र से भी ज्यादा उम्र के किरदार बड़ी ही सहजता से निभा लेते थे …..अब इसे विडम्बना ही कहेगे कि संजीव कुमार ने भरी जवानी में बुढ़ापे वाले रोल बखूबी किये है पता नहीं क्यों उन्हें बुढ़ापा वाले रोल ज्यादा अच्छे लगते थे और इसीलिए इतनी कम उम्र में उन्होंने फिल्मों में बूढ़ों के रोल किए …..एक बार तब्बसुम ने अपने शो में उनसे पूछा भी था कि ..
हरि भाई, …बुढ़ापे को लेकर इतनी चाहत क्यों है ?
तो जवाब में उन्होंने हँसते हुए कहा, …
‘तब्बसुम, ..मेरा हाथ देखकर किसी ने बताया था कि मेरी उम्र ज्यादा लंबी नहीं है बूढ़ा होना मेरे नसीब में नहीं है इसलिए फिल्मों में बूढ़ा बनकर बूढ़ा होने का अरमान पूरा कर रहा हूं।’
संजीव को हमेशा मौत का डर सताता था वे मरना नहीं चाहते थे …..दरअसल संजीव कुमार को बचपन से ही दिल की बीमारी ( कंजेनाइटल हार्ट कंडीशन ) थी अब इसे विडंबना करे या संयोग अभिनेता संजीव कुमार के परिवार में उनके भाई समेत अधिकांश सदस्यों की मृत्यु 50 वर्ष से कम आयु में ही हो गई थी ….संजीव कही न कही इस बात से वाकिफ थे और अक्सर अपने दोस्तों से बातो बातो में कह जाते थे …..
”यार की मैं भी 50 साल से ज्यादा नहीं जी पाउँगा ”
और दुर्भाग्य से ऐसा ही हुआ ….छह नवंबर 1985 को मात्र 47 वर्ष की आयु में संजीव कुमार ने दुनिया को अलविदा कह दिया…
आपको ये जानकर हैरानी होगी संजीव कुमार जिस परिवार से ताल्लुक रखते थे वहां मर्द 50 से ज्यादा जी नहीं पाते थे इस बात से संजीव कुमार परेशान रहते थे. उन्हें लगता था कि वे भी ज्यादा दिन तक जी नहीं पाएंगे हालांकि ऐसा हुआ भी संजीव कुमार को अंदाजा था कि उनकी कम उम्र में मौत हो जाएगी और महज 47 साल की उम्र में संजीव कुमार ने आखिरी सांसे लीं …
ऐसे कलाकार के लिए बस यही कहा जा सकता है. .
तेरे जाने की रुत मैं जानता हूँ
मुड़ के आने की रीत है की नहीं . . . . . . ।।

(नमकीन – गुलजार)

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