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द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अर्चा विग्रह – श्री सोमनाथ

Dvadash Jyotirling

इस विश्व में जो कुछ भी दृश्य देखा जाता है तथा जिसका वर्णन एवं स्मरण किया जाता है, वह सब भगवान शिव का ही रूप है । करूणासिंधुअपने आराधकों, भक्तों तथा श्रद्धास्पद साधकों और प्राणिमात्र की कल्याण की कामना से उन पर अनुग्रह करते हुए स्थल – स्थल पर अपने विभिन्न स्वरूपों में स्थित हैं । जहां – जहां जब – जब भक्तों ने भक्तिपूर्वक भगवान शंभु का स्मरण किया, तहां – तहां तब – तब वे अवतार लेकर भक्तों का कार्य संपन्न करके स्थित हो गये । लोकों का उपकार करने के लिये उन्होंने अपने स्वरूपभूत लिंग की कल्पना की । आराधकों की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव उन – उन स्थानों में ज्योतीरूप में आविर्भूत हुए और ज्योतिर्लिंग रूप में सदा के लिये विद्यमान हो गये । उनका ज्योति:स्वरूप सभी के लिये वंदनीय, पूजनीय एवं नमनीय है । पृथ्वी पर वर्तमान शिवलिंगों की संख्या असंख्य है तथापि इनमें द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रधानता है । इनकी निष्ठापूर्वक उपासना से पुरुष अवश्य ही परम सिद्धि प्राप्त कर लेता है, अथवा वह शिवरूप हो जाता है । शिवपुराण तथा स्कंदादि पुराणों में इन ज्योतिर्लिंगों की महिमा का विशेष रूप से प्रतिपादन हुआ है । आज पूरे दिन संस्कार के सभी फेसबुक दर्शकों के लिए प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का विवरण दिया जाएंगा –

1) श्रीसोमनाथ

श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्रभास क्षेत्र (कठियावाड़) के विरावल नामक स्थान में स्थित है । यहां के ज्योतिर्लिंग के आविर्भाव के विषय में पुराणों में एक रोचक कथा प्राप्त होती है । शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा (सोम) के साथ हुआ था, इनमें से चंद्रमा रोहिणी से विशेष स्नेह रखते थे । अपनी अन्य कन्याओं के साथ विषमता का व्यवहार देखकर कुपित हो दक्ष ने चंद्रमा को क्षय – रोग से ग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया । सुधा – किरणों के अभाव में सारा संसार निष्प्राण सा हो गया । तब दु:खी हो चंद्रमा ने ब्रह्मा जी के कहने पर भगवान आशुतोष की आराधना की । भगवान ने प्रसन्न होकर दर्शन दिया और चंद्रमा को अमरत्व प्रदान करते हुए मास मास में पूर्ण एवं क्षीण होने का वर दिया । तदनंतर चंद्रमा तथा अन्य देवताओं के द्वारा प्रार्थना करने पर भगवान शंकर उन्हीं के नाम से ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां स्थित हो गये और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुए । इसी पवित्र प्रभास क्षेत्र में भगवान श्रीकृ,्णचंद्र जी ने अपनी लीलाओं का संवरण किया था । भगवान सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह के नीचे एक गुफा में है, जिसमें निरंतर दीप जलता रहता है ।

To English Wish4me

Whatever view is seen in the world and is used to describe and remember, all that is the only form of Lord Shiva. Krunasindhuapane worshipers, devotees and respected practitioners and wished them well-being of the creatures grace the site – located at the site in various formats. Where the – where the – the devotees of Lord devoutly recalled Shambhu, here and there – here and then – they were located by Doing devotees of Avatar. Swrupbhut his penis to the favor of the realms of fantasy. Worshipers worshiping Lord Shiva was pleased with those – in those places Jyotirup emerged and became revered as existing for ever. Their light format for all venerable, sacred and ductile. On Earth, however, is the myriad of current Shivlingon Jyotirlings preponderance of these twelve. These men must serve faithfully acquires ultimate accomplishment, or he gets Shivrup. Shivpuran Skandadi mythology and majesty of these Jyotirlings is especially rendering. Today, the day of the funeral details of all Facebook visitors each revered Jaanga –

1) Srisomnath

Srisomnath revered Prabhas area (Ktiavadh) is located at a place called the Viravl. Here’s an interesting story in the Puranas about the emergence of Jyotirlingas get. According to the twenty-seven daughters of Daksha Prajapati shivpuran married Moon (SOM) was with them from the moon Rohini had special affection. Outraged by the behavior of the other girls with the asymmetry of the moon efficient decay – cursed to suffer. Nectars – in the absence of light the whole world has become soulless. The sad moon Ashutosh worshiped God at the behest of Lord Brahma. God appeared delighted and full moon in the month of immortality while giving mass to be granted and emaciated. Subsequently the moon and other gods to pray to Lord Shiva by the name of those were located there, and revered as the name of Somnath in the three worlds were noted. Prabhas in this holy God Srikri, Hnchandra closure G had his pastimes. In a cave beneath the revered shrine of Lord Somnath which sustained deep burns.

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