प्रोफ़ेसर साहब बड़े दिनों बाद आज शाम को घर लौटते वक़्त अपने दोस्त से मिलने उसकी दुकान पर गए।
इतने दिनों बाद मिल रहे दोस्तों का उत्साह देखने लायक था…दोनों ने एक दुसरे को गले लगाया और बैठ कर गप्पें मारने लगे।
चाय-वाय पीने के कुछ देर बाद प्रोफ़ेसर बोले, “यार एक बात बता, पहले मैं जब भी आता था तो तेरी दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी और हम बड़ी मुश्किल से बात कर पाते थे। लेकिन आज बस इक्का-दुक्का ग्राहक ही दिख रहे हैं और तेरा स्टाफ भी पहले से कम हो गया है…”
दोस्त मजाकिया लहजे में बोला, “अरे कुछ नहीं, हम इस मार्केट के पुराने खिलाड़ी हैं…आज धंधा ढीला है…कल फिर जोर पकड़ लेगा!”
इस पर प्रोफ़ेसर साहब कुछ गंभीर होते हुए बोले, “देख भाई, चीजों को इतना हलके में मत ले…मैं देख रहा हूँ कि इसी रोड पर कपड़े की तीन-चार और दुकाने खुल गयी हैं, कम्पटीशन बहुत बढ़ गया है…और ऊपर से…”
प्रोफ़ेसर साहब अपनी बात पूरी करते उससे पहले ही, दोस्त उनकी बात काटते हुए बोला, “अरे ये दुकाने आती-जाती रहती हैं, इनसे कुछ फरक नहीं पड़ता।”
प्रोफ़ेसर साहब कॉलेज टाइम से ही अपने दोस्त को जानते थे और वो समझ गए कि ऐसे समझाने पर वो उनकी बात नहीं समझेगा।
इसके बाद उन्होंने अगले रविवार, बंदी के दिन; दोस्त को चाय पे बुलाया।
दोस्त, तय समय पर उनके घर पहुँच गया।
कुछ गपशप के बाद प्रोफ़ेसर साहब उसे अपने घर में बनी एक प्राइवेट लैब में ले गए और बोले, “देख यार! आज मैं तुझे एक बड़ा ही इंटरस्टिंग एक्सपेरिमेंट दिखता हूँ..”
प्रोफ़ेसर साहब ने एक जार में गरम पानी लिया और उसमे एक मेंढक डाल दिया। पानी से सम्पर्क में आते ही मेंढक खतरा भांप गया और कूद कर बाहर भाग गया।
इसके बाद प्रोफ़ेसर साहब ने जार से गरम पानी फेंक कर उसमे ठंडा पानी भर दिया, और एक बार फिर मेंढक को उसमे डाल दिया। इस बार मेंढक आराम से उसमे तैरने लगा।
तभी प्रोफ़ेसर साहब ने एक अजीब सा काम किया, उन्होंने जार उठा कर एक गैस बर्नर पर रख दिया और बड़ी ही धीमी आंच पर पानी गरम करने लगे।
कुछ ही देर में पानी गरम होने लगा। मेंढक को ये बात कुछ अजीब लगी पर उसने खुद को इस तापमान के हिसाब से एडजस्ट कर लिया…इस बीच बर्नर जलता रहा और पानी और भी गरम होता गया….पर हर बार मेढक पानी के टेम्परेचर के हिसाब से खुद को एडजस्ट कर लेता और आराम से पड़ा रहता….लेकिन उसकी भी सहने की एक क्षमता थी! जब पानी काफी गरम हो गया और खौलने को आया तब मेंढक को अपनी जान पर मंडराते खतरे का आभास हुआ…और उसने पूरी ताकत से बाहर छलांग लगाने की कोशिष की….पर बार-बार खुद को बदलते तापमान में ढालने में उसकी काफी उर्जा लग चुकी थी और अब खुद को बचाने के लिए न ही उसके पास शक्ति थी और न ही समय…देखते-देखते पानी उबलने लगा और मेंढक की मौत हो गयी।
एक्सपेरिमेंट देखने के बाद दोस्त बोला-
यार तूने तो मेंढक की जान ही ले ली…खैर, ये सब तू मुझे क्यों दिखा रहा है?
प्रोफ़ेसर बोले, “ मेंढक की जान मैंने नहीं ली…उसने खुद अपनी जान ली है। अगर वो बिगड़ते हुए माहौल में बार-बार खुद को एडजस्ट नहीं करता बल्कि उससे बचने का कुछ उपाय सोचता तो वो आसानी से अपनी जान बचा सकता था। और ये सब मैं तुझे इसलिए दिखा रहा हूँ क्योंकि कहीं न कहीं तू भी इस मेढक की तरह बिहेव कर रहा है।
तेरा अच्छा-ख़ासा बिजनेस है पर तू चेंज हो रही मार्केट कंडीशनस की तरफ ध्यान नहीं दे रहा, और बस ये सोच कर एडजस्ट करता जा रहा है कि आगे सब अपने आप ठीक हो जाएगा…पर याद रख अगर तू आज ही हो रहे बदलाव के ऐकौर्डिंग खुद को नहीं चेंज करेगा तो हो सकता है इस मेंढक की तरह कल को संभलने के लिए तेरे पास ना एनर्जी हो और ना ही समय!”
प्रोफ़ेसर की सीख ने दोस्त की आँखें खोल दीं, उसने प्रोफ़ेसर साहब को गले लगा लिया और वादा किया कि एक बार फिर वो मार्केट लीडर बन कर दिखायेगा।
दोस्तों, प्रोफ़ेसर साहब के उस दोस्त की तरह बहुत से लोग अपने आस-पास हो रहे बदलाव की तरफ ध्यान नहीं देते। लोग जिन skills के कारण job लिए चुने जाते हैं बस उसी पर अटके रहते हैं खुद को update नहीं करते…और जब company में layoffs होते हैं तो उन्हें ही सबसे पहले निकाला जाता है…लोग जिस ढर्रे पर 10 साल पहले business कर रहे होते हैं बस उसी को पकड़कर बैठे रहते हैं और देखते-देखते नए players सारा market capture कर लेते हैं!
यदि आप भी खुद को ऐसे लोगों से relate कर पा रहे हैं तो संभल जाइए और इस कहानी से सीख लेते हुए proactive बनिए और आस-पास हो रहे बदलावों के प्रति सतर्क रहिये, ताकि बदलाव की बड़ी से बड़ी आंधी भी आपकी जड़ों की हिला न पाएं
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Professor Sahab went to his shop to meet his friend while returning home this evening after a long time.
The excitement of friends found after so many days was worth seeing … Both of them embraced each other and started chatting down.
After some time drinking tea, Professor said, “Man, tell me one thing, whenever I used to come first, there was a crowd of customers in your shop and we used to talk hard. But today we are seeing just one and a quarter customers and your staff has also been less … ”
The friend said in a funny accent, “Hey nothing, we are the old players of this market … today’s business is loosened … tomorrow will take hold again!”
Professor Saheb said, “Look, brother, do not take things so lightly … I see that three and four shops of clothes are opened on this road, the situation has increased … and above … ”
Even before Prof. Saheb did his thing, the friend said, “These shops come and go, they do not make any difference.”
Professor Sahab College knew his friend from the time and he understood that after such explaining, he would not understand his point.
After this he will be next Sunday, on the day of the ban; Called the friend on tea
The friend reached his home on time.
After some gossip, Professor Saab took him to a private lab made in his house and said, “See, man! Today I see you a big interning experiment. ”
Professor Sahib took hot water in a jar and put a frog in it. Coming into contact with water, the frog got scared and jumped out.
After this, Professor Sahib threw hot water from the jar and filled the cold water in it, and once again put the frog in it. This time the frog started swimming in comfortably.
Then Professor Sahab did a strange job, he picked up a jar and put it on a gas burner and started heating the water on very low flame.
The water started getting hot in a while. This thing seemed strange to the frog but he adjusted himself according to this temperature … Meanwhile the burner was burning and the water got too hot … but every time the fritters adjusted themselves according to the temperature of the water and Lived in comfort …. But there was a capacity to bear her too! When the water got very hot and it came to fruition, the frog appeared to have an imminent danger on his life … and he tried to leap out of full strength …. But he had enough energy to put himself in the changing temperature over and over again. He had gone and now he had neither the power nor the time to save himself, nor did the time … the water started boiling and the frog died.
After seeing the experience,
Man, you took the life of a frog … Well, why are you showing me all this?
Professor said, “I did not take the life of the frog … he himself took his life. If he did not adjust himself repeatedly in the deteriorating environment, but thought of some way of avoiding him, he could easily save his life. And I am showing you all this because somewhere you are behaving like this paddock.
You have a nice business but you are not paying attention to the changing market condition, and are just adjusting by thinking that everything will be fine after all … but remember if you are going to change today. If the sounding does not change itself, then maybe you do not have energy or energy to adjust tomorrow like this frog! ”
The professor’s teaching opened the friend’s eyes, embraced the Professor Sahab and promised that once again he would become a market leader.
Friends, like that friend of Professor Sahab, many people do not care about the change happening around them. People who are selected for jobs because of the skills they are employed do not update themselves … and when the company has layoffs, they are first removed … people are doing business 10 years ago. Just sit and sit and watch the new players capture the whole market!
If you are also able to relate yourself to such people, then be aware and become proactive by learning from this story and be cautious about the changes happening around that, so that the big storm of change can not even shake your roots. Find