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संतोषी व्यक्ति सदा सुखदायी

संतोषी व्यक्ति सदा सुखदायी

भगवान बुद्ध पाटलिपुत्र में प्रवचन कर रहे थे। लोग मंत्रमुग्ध थे। प्रवचन के बाद बुद्ध आंखे बंद किए बैठे थे। स्वामी आनंद ने जिज्ञासा व्यक्त की, तथागत, आपके सामने बैठे लोगों में सबसे सुखी कौन है?

तथागत बोले कि सबसे पीछे जो सीधा-साधा या कहें फटेहाल सा ग्रामीण आंखें बंद किए बैठा है, वह सबसे ज्यादा सुखी है।

यह सुनकर सबको आश्चर्य हुआ। बुद्ध ने कहा, चलो, मेरे पीछे-पीछे। मैं तुम्हें इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देता हूं। वह एक-एक करके सबके पास पहुंचे।

उन्होंने सभी से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए? किसी ने कहा कि मुझे पुत्र चाहिए, तो किसी ने उन्हें धन चाहिए। तब वह सबसे पीछे बैठे ग्रामीण के पास पहुंचे। उससे भी यह प्रश्न पूछा तो उसका कहना था कि, मैं पूर्ण रूप से संतुष्ठ है। मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे पास जो है, उसी में संतोष रहे । इस तरह सभी तथागत की ओर देखने लगे।

In English

Lord Buddha was preaching in Pataliputra. People were charmed. After the discourse, Buddha had stopped eyes. Swami Anand expressed curiosity, Tathagat, who is the happiest among the people sitting in front of you?

Tathagat said that the most backward, who is sitting in the middle of the eyes, is straight and simple, it is the most happy.

Everyone was surprised to hear this. Buddha said, “Come on, follow me!” I give you direct evidence of this. He came to each one by one.

They all asked what you want? Someone said that I want a son, then somebody needs money for him. Then he got near the village sitting at the back. Asked this question from him, he was saying that, I am completely satisfied. I do not want anything. Have satisfaction in what I have. In this way, they started looking towards all the Tathagata.

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