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आदत का जिम्मेदार!!

एक आदमी को रोज़ दारू पिने की बुरी आदत पड़ गयी थी। उसकी इस आदत से घरवाले बड़े परेशान रहते थे। गांव के लोगों ने उसे समझाने कि भी बहुत कोशिश कि, लेकिन वो हर किसी को एक ही जवाब देता, “मैंने ये आदत नहीं पकड़ी, इस आदत ने मुझे पकड़ रखा है।”

वास्तव में सचमुच वो इस आदत को छोड़ना चाहता था, पर कई कोशिशों के बावजूद वो ऐसा नहीं कर पा रहा था। उसके परिवार वालों ने सोचा कि शायद शादी करवा देने से वो ये आदत छोड़ दे सकता है, इसलिए उसकी शादी करा दी गयी।

पर कुछ दिनों तक सब ठीक चला और फिर से वह शराब पिने लगा। उसकी पत्नी भी अब काफी चिंतित रहने लगी, और उसने निश्चय किया कि वह किसी न किसी तरह अपने पति की इस आदत को छुड़वा ही लेगी।

एक दिन गांव में प्रसिद्ध साधु महाराज आ गए। वो अपने पति को लेकर उनके आश्रम पहुंची। साधु ने कहा, “बताओ पुत्री तुम्हारी क्या समस्या है?”

पत्नी ने दुखी स्वर में सारी बातें साधु महाराज को बता दी। साधु महाराज उनकी बातें सुनकर समस्या कि जड़ समझ चुके थे, और समाधान देने के लिए उन्होंने पति-पत्नी को अगले दिन आने के लिए कहा।

अगले दिन वे आश्रम पहुंचे तो उन्होंने देखा कि साधु महाराज एक पेड़ को पकड़ के खड़े है। उन्होंने साधु से पूछा कि आप ये क्या कर रहे हैं, और पेड़ को इस तरह क्यों पकडे हुए हैं?

साधु ने कहा, “आप लोग जाइये और कल आइयेगा”  फिर चौथे दिन भी पति-पत्नी पहुंचे तो देखा कि फिर से साधु पेड़ को पकड़ के खड़े हैं।

उन्होंने पूछा, “महाराज माफ़ करिये पर आप ये क्या कर रहे हैं? आप इस पेड़ को छोड़ क्यों नहीं देते?”

साधु बोले, “मैं क्या करूँ बालक ये पेड़ मुझे छोड़ ही नहीं रहा है?”

पति हँसते हुए बोला, “महाराज आप पेड़ को पकडे हुए हैं, पेड़ आप को नहीं! आप जब चाहें उसे छोड़ सकते हैं”

साधू-महाराज गंभीर होते हुए बोले, “इतने दिनों से मै तुम्हे क्या समझाने कि कोशिश कर रहा हूँ। यही न कि तुम दारू पिने की आदत को पकडे हुए हो, ये आदत तुम्हे नहीं पकडे हुए है!”

पति को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। वह समझ गया कि किसी भी आदत के लिए वह खुद जिम्मेदार है, और वह अपनी इच्छा शक्ति के बल पर जब चाहे उसे छोड़ सकता है।

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