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आसक्ति से पतन

जैन संत आचार्य तुलसी कहते थे कि किसी भी तरह की आसक्ति या महत्त्वाकांक्षा से सर्वथा मुक्त रहने में ही कल्याण है। वे भरत की कथा सुनाते हुए चेतावनी दिया करते थे कि हिरण की आसक्ति के कारण ही उन्हें हिरण बनना पड़ा था। एक दिन उन्होंने एक कथा सुनाई

एक महात्मा की घोर तपस्या से उनके आश्रम में सिंह और बकरी, सर्प और मेढक तक वैर भाव भुलाकर प्रेम से साथ रहने लगे। इंद्र को लगा कि यदि महात्मा की तपस्या चलती रही, तो उनका आसन अधिक दिन तक नहीं टिक पाएगा।

उन्होंने महात्मा को आसक्ति से डिगाने का उपाय सोचा। वेश बदलकर आश्रम पहुँच गए और महात्मा से कहा, ‘महाराज, मैं कहीं बाहर जा रहा हूँ। यह तलवार आपके पास छोड़े जा रहा हूँ। यदि इसका ध्यान रख सकें, तो आभारी रहूँगा। संत ने स्वीकृति दे दी।

महीनों बीतने के बाद भी इंद्र तलवार लेने आश्रम नहीं आए। महात्माजी ने सोचा कि तलवार किसी की धरोहर है, इसलिए उसे अपने पास रखने लगे।

जहाँ जाते तलवार साथ ले जाते, ताकि कोई उसे चुरा न ले। भगवान् में हर समय लीन रहनेवाला मन अकसर तलवार की ओर चला जाता। इस तरह संत की साधना का क्रम भंग होने लगा।

साधना में विघ्न पड़ने से आश्रम का सात्त्विक वातावरण दूषित होने लगा और जो जीव हिंसा त्यागकर मैत्री के कारण साथ-साथ रहते थे, वे फिर एक-दूसरे का भक्षण करने लगे।

आचार्य तुलसी यह कहानी सुनाकर कहते थे, ‘किसी भी वस्तु के प्रति आसक्ति जीवनभर की तपस्या को पलभर में नष्ट कर देती है, इसलिए सदैव इससे बचना चाहिए।

English Translation

Jain saint Acharya Tulsi used to say that there is welfare in being completely free from any kind of attachment or ambition. He used to warn while narrating the story of Bharata that he had to become a deer because of his attachment to the deer. one day he told a story

Due to the severe penance of a Mahatma, in his ashram, the lion and goat, snake and frog started living together with love, forgetting the feelings of enmity. Indra felt that if the Mahatma’s penance continued, his seat would not last long.

He thought of a way to dissuade the Mahatma from attachment. Reached the ashram disguised and said to the Mahatma, ‘Maharaj, I am going out somewhere. I am leaving this sword with you. I would be grateful if you can take care of this. The saint approved.

Even after months passed, Indra did not come to the ashram to collect the sword. Mahatmaji thought that the sword was someone’s heritage, so he started keeping it with him.

Carry the sword with you wherever you go, so that no one can steal it. The mind that was always absorbed in the Divine would often turn to the sword. In this way the order of the saint’s sadhana started getting disturbed.

The sattvik atmosphere of the ashram started getting polluted due to disturbances in spiritual practice and the living beings who renounced violence and lived together because of friendship again started eating each other.

Acharya Tulsi used to tell this story and say, ‘Attachment towards any object destroys the penance of a lifetime in a moment, so it should always be avoided.

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