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“अच्छाई…..

बिस्तर पर बुखार से तप रही सुधा को आराम करने के लिए छोड़ कर उसकी दवाईयां लेने गया था उसका पति बिरजू मगर उसे अचानक टायलेट का प्रेशर तेज होने लगा तो वह डगमगाते हुए बिस्तर से उठते हुए बाथरूम की और जाने के लिए अभी बढ़ी ही थी की उसे चक्कर आ गया वह लगभग गिरने ही लगी थी की तभी झाड़ू लगाती उसकी बुजुर्ग सासूमां सुषमा जी ने उसको दौड़ कर पकड़ लिया अरे बिटिया मुझे बता देती मैं तुमको ले चलती कहते हुए उन्होंने सुधा को संभालते हुए सुधा को बाथरूम ले जाकर उसे फ्रेश करवाते वापिस उसे पलंग पर लिटा दिया
क्या खाएगी बिटिया मैं बना देती हूं
आप ….पर आप बनाएगी तो आपको देर हो जाएगी और बाबूजी …. आपके जैसे उन्हें भी तो डायबिटीज है उन्हें भी तो समय से खाना देना होता है ना आपको तो कैसे
कोई बात नहीं बिटिया एक दिन देर से खा लेंगे तो हम बूढ़ों को कोई परेशानी नही हो जाएगी
सासूमां की बात सुनकर सुधा के मन में शर्मिंदगी का भाव भर गया उसे बीते हुए वो दिन रह रहकर स्मरण हो रहे थे जब वह नयी नयी ब्याहकर इस घर परिवार में आई थी उसे अपने बुजुर्ग सास ससुर की सेवा नहीं करनी थी
अभी महीने भर पहले जब उसकी सासूमां को बुख़ार आ गया था तो वह बिस्तर पर थी जब से वह आई थी तबसे घर का अधिकतर काम उसकी सासूमां ही करती थी वो हमेशा उसे कहती बिटिया तुम मेरी बहु नहीं बेटी हो और वैसे भी तुम आफिस जाती हो और में यहां बेकार खाली बैठे क्या करुंगी अभी शरीर चल रहा है तो कर रही हूं
कल ज्यादा बूढ़ी हो जाऊंगी तो मेरी बेटी है ना कहकर घर के काम निपटा देती थी मगर असल में सुधा को इस बात का अभिमान था की वो पैसा कमा रही है कयीबार उसके बर्ताव के चलते उसका उसके पति बिरजू से झगड़ा भी हुआ था मगर तब भी सासूमां को यही कहते हुए सुना था बेटा तू बहुत से झगड़ा मत किया कर उसे नये घर परिवार में एडजस्ट होने में वक्त लग रहा है देखना बहुत जल्दी वो सब संभाल लेगी मगर उसे यही लगता था कि मां अपने बेटे को समझा नहीं रही बल्कि दिखावा कर रही है
और अच्छाईयों को अनदेखा करके बस झगड़ा करते हुए अलग होने पर ही अमादा थी और आखिरकार बात अधिक बढ़ने पर उसके सास ससुर दोनों ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो गए थे बिरजू तो अपने मां बाबूजी से बराबर मिलता रहता था मगर वो उन्हें देखकर भी नजरें फेरकर निकल जाती थी मगर बीते दो दिनों से उसकी तबीयत बिगड़ी हुई थी
डाक्टर ने तो उसे अस्पताल में भर्ती करवाने को कहा था मगर उसकी सासूमां ने कहा वो है ना अस्पताल में नर्स भले ही हो मगर यहां उसकी मां है और एक मां से बढ़कर उसकी बेटी की देखभाल कोई नहीं कर सकता तबसे वह उन्हें बिस्तर पर लेटी हुई सभी कामकाज करते हुए देख रही थी हालांकि बिरजू रसोईघर में खाना वगैरह सब देख रहा था क्योंकि सुधा ने ही एकबार कहा था कि वो उनके हाथों का खाना नहीं खाएगी बस चाहे होटल रेस्टोरेंट से मंगवाया करो
दो दिनों बाद जब डाक्टर ने बताया कि वह अब पूरी तरह रिकवर कर चुकी हैं और वह अगले दिन से आफिस भी जा सकती है तो बिरजू के साथ साथ मां ने भी खुशी जताई सुधा ने उसी वक्त बिरजू को कहा … वह स्वस्थ हो गई है अच्छी बात है मगर वो अब आफिस नहीं जाएगी क्योंकि बीते दिन ही उसने रिजाइन कर दिया है उसे अब आफिस से भी जरुरी काम करना है और वो है अपने मां बाबूजी की सेवा … हां मांजी मुझे माफ कर दीजिए और आप फिर से अपने बेटे बेटी के साथ आकर रहिए ऊपर वाले कमरे में नहीं …मे बाबूजी से भी माफी मांग लूंगी मुझे मेरे गलत व्यवहार के लिए माफ कर दीजिए और अपनी सेवा करने का मौका दीजिए कहते हुए सुधा सासूमां के पैरों में गिरकर रोने लगी मां ने उसे उठाकर गले लगाते हुए कहा .
..पगली बेटियां पैरों में नहीं सिर के मुकुट के जैसे सम्मान से मस्तक पर ही अच्छी लगती हैं जहां दोनों गले लगी हुई रो रही थी वहीं कमरे में मौजूद बिरजू तो कमरे के दरवाजे की ओट में खड़े बाबूजी की आंखें खुशी में भीगीं हुई थी क्योंकि आखिरकार बड़े बुजुर्गो की बात फिर से सत्य जो साबित हो रही थी की बुराई चाहे कितनी भी बड़ी हो मगर अच्छाई के सामने हमेशा छोटी सी रहेगी।

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