अमावस्या तिथि का रहस्यमय प्रभाव
अमावस्या तिथि को सूर्य और चंद्रमा एक साथ होते हैं। एवं चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देते हैं अर्थात सूर्य व् चंद्रमा का अंतर ३४९ से ३६० अंश तक एवं शून्य हो जाता है। अमावस्या को चन्द्र मास की तीसवीं तिथि माना गया है। अमावस्या तिथि के स्वामी पितृ देव माने गए हैं। अमावस्या तिथि को चंद्रमा की सोलहवीं कला माना गया है जो जल में प्रविष्ट हो जाती है । चंद्रमा का वास अमावस्या तिथि को जल एवं औषधियों में माना गया है। चंद्रमा की इस सोलहवीं कला का अमृत पान पृथ्वी के जीव करते हैं, गाय भैंस आदि जीव इस अमृत का पान चारे एवं पानी आदि के स्वरूप करते हैं । इस प्रकार जीवों द्वारा ग्रहण किया गया चंद्रमा की सोलहवीं कला का अमृत पान दूध घी आदि के रूप में मनुष्यों को भी प्राप्त होता है । और उसी घी दूध आदि की आहुति ऋषि मुनि यज्ञ हवन आदि के माध्यम से पुनः चंद्रमा एवं अन्य देवताओं को पहुंचाते हैं । अमावस्या तिथि को भगवान् शिव का वास गौरी माता के सानिध्य में माना गया है अर्थात इस दिन शिव पूजन आदि शुभ एवं संभव है। अमावस्या तिथि को केतु गृह की जन्म तिथि माना गया है। वर्ष में १२ अमावस्या होती हैं, और हर अमावस्या को भारत में कई त्यौहार मनाए जाते हैं, अमावस्या का भारतीय परिपेक्ष में अत्यंत महत्व माना गया है । सोम मंगल एवं बृहस्पति वार को एवं अनुराधा, स्वाति, विशाखा नक्षत्रों में अमावस्या का विशेष महत्व है।
अमावस्या तिथि में जन्मे जातकों को जीवन में मान सम्मान प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। इस तिथि में जन्मे जातकों को व् उनके माता पिता को जीवन में बहुत सी आर्थिक विषमताओं का सामना करना पड़ता है । इन जातकों को जीवन में बार बार कई जगह अपमानित भी होना पड़ता हैं। अमावस्या तिथि में जन्मे जातकों को जीवन में मान सम्मान प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। क्योंकि इस तिथि में चंद्रमा को अन्य तिथिओं कि अपेक्षा क्षीण माना जाता है तो जातकों को बहुधा मानसिक दिक्कतों का सामना करते हुए देखा जा सकता है ।
अमावस्या तिथि में जन्मे जातकों की तांत्रिक शक्तियों आदि में मान्यता होती है । इन जातको की आध्यात्मिक मान्यताएं अपेक्षाकृत अधिक तीव्र होती हैं । सामन्यतः देखने में आया है कि इनके जीवन का बहुत सा भाग या तो तंत्र शक्तियों या आध्यात्मिक मान्यताओं के अध्यन में गुजरता है । जातक को अपना जीवन स्वाध्याय एवं स्वयं की शिक्षा को आगे बढ़ाने में समर्पित कर देना चाहिए क्योंकि यदि शिव कृपा इन जातको पर हो जाए, तो इन जातको की आध्यात्मिक उन्नति तय मानिए, और इस उन्नति के पश्चात सामान्यतः जैसा माना जाता है कि इनको मान सम्मान कि प्राप्ति के लिए संघर्ष करना पड़ता है इन्हें वही मान सम्मान स्वतः प्राप्त होने लगता है । जैसे आग में तप कर सोना कुंदन होने लगता है, ठीक उसी प्रकार इन्हें संघर्ष उपरांत उन
सभी चीज़ों कि प्राप्ति संभव हो जाती है जो असंभव जान पड़ती थी ।
अमावस्या तिथि में जन्मे जातकों के इष्टदेव पितृ देवता हैं। पितरों के निमित आहुति से शुभ लाभ कि प्राप्ति संभव है। घी के छाया पात्र का दान एवं रुद्राभिषेक जीवन में शुभता को बढ़ाएगा । अमावस्या तिथि को जन्मे जातकों के लिए तृतीया तिथि शुभ नहीं है ।
अमावस्या व्रत का स्वरूप
अमावस्या का व्रत करना चाहीये। अर्थात् निराहार रहकर उपवास करना चाहिये। उप-समीप, वास-निवास अर्थात् परमात्मा के समीप रहना चाहियें अमावस्या के दिन ऐसे ही कार्य करने चाहिये जो परमात्मा के पास में ही बिठाने वाले हो, सांसारिक खेती-बाडी व्यापार आदि कर्म तो परमात्मा से दूर हटाने वाले है। और संध्या हवन, सत्संग, परमात्मा का स्मरण ध्यान कर्म परमात्मा के पास बैठाते हैं इसलिए महीने में एक दिन उपवास करना चाहिये। और वह दिन अमावस्या का ही श्रेष्ठ मान्य हैं । क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा ये दोनों शक्तिशाली ग्रह अमावस्या के दिन एक राशि में आ जाते हैं अर्थात चन्द्र जब तक दोनो एक राशि में रहते हैं तब तक ही अमावस्या रहती हैं। चन्द्रमा सूर्य के सामने निस्तेज हो जाता हैं। अर्थात चंन्द्र की किरणें नष्टप्राय हो जाती हैं। संसार में भयंकर अन्धकार छा जाता है। चन्द्रमा ही सभी औषधियों को रस देने वाला हैं जब चन्द्रमा ही पूर्ण प्रकाशक नहीं होगा तो औषधि भी निस्तेज हो जायेगी। ऐसा निस्तेज अन्न, बल, वीर्य, बुध्दि वर्धक नहीं हो सकता किन्तु बल वीर्य बुध्दि आदि को मलिन करने वाला ही होगा। इसलिये अमावस्या का व्रत करना चाहिये उस दिन अन्न खाना निषेध किया गया हैं और व्रत का विधान किया गया हैं।
एकादशी या सोम, रवि आदि वार-तिथियां तो अति शीघ्र सप्ताह में एक बार या महीनें में एकाधिक बार आ जाते हैं। साधारण किसान लोग परिश्रम करने वाले इतना कहॉं पर पाते हैं। ये सभी व्रत तो होना असंभव हैं किन्तु अमावस्या तो महीनें में एक बार ही आती हैं। सभी कार्यो को छोड कर तीस दिनों में एक दिन तो पूर्णतया परमात्मा के अर्पण कर सकते है । इससे सुविधा भी तथा सुलभता भी है। वेदों में भी कहा गया हैं – दर्श-पौर्णमास्यायां यजेत् अर्थात अमावस्या और पूर्णमासी को निश्चित ही यज्ञ करें। वेदों में भी एकादशी या अन्य किसी व्रतों उपवासों का कोई वर्णन नहीं आया।
व्रत करने से आध्यात्मिक लाभ तो होगा ही साथ में भौतिक लाभ भी होगा। हम लोग रात दिन समय बिना समय भूखे हो या न भी हो तो भी खाते ही रहते हैं। शरीरस्थ अग्नि को ज्यादा भोजन डाल कर मंद कर देते हैं वह मंद अग्नि भोजन को पूर्णतया पचा नहीं सकती। इसलिए अनेकानेक रोग बढ जाते हैं, फिर चिकित्सकों के पास चक्कर लगाना पडता हैं । इन समस्याओं का समाधान भी व्रत करने से हो जाता हैं। और यदि रोज-रोज नये व्रत करोंगे ततो पेट में भूखा रहते-रहते अग्नि स्वयं बुझ जायेगी । फिर भोजन डालने से प्रज्वलित नहीं हो सकेगी और यदि महीनें मे एक बार
ही अमावस्या का व्रत करते हैं तो स्वास्थ्य का संतुलन ठीक से चलता रहेंगां यह भी अमावस्या व्रत का
फल है।
वेदों में अमावस्या का महत्व बताया गया हैं। उसके पष्यात किसी संत महापुरूष ने अमावस्या का व्रत करना नहीं बताया। प्रथम वार श्री गुरू जम्भेश्वर महाराज ने ही कहा है कि अमावस्या का व्रत करो। इसमें बहुत बडा रहस्य छुपा हुबा हैं यह एक प्रथम से अन्वेषण का विषय है। अमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राशि में रहे, तब तब कोई भी सांसारिक कार्य जैसे- हल चलाना, कसी चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करना चाहिये। उस दिन तो केवल परमात्मा का भजन ही करना चाहिए। अमावस्या व्रत का फल भी शास्त्रों में बहुत ही ऊंचा बतलाया है। यह व्रत कथा जम्भसार तथा अमावस्या व्रत कथा में प्रकाशित हो चुकी है। जम्भपुराण में यह कथा सरल हिन्दी भाषा में लिखी जा चुकी हैं। आप स्वयं पढे तथा अन्य जनों को सुनाने से अमावस्या महत्व का ज्ञान होता है। तथा ज्ञान से श्रध्दा बढती हैं, श्रध्दा से व्रत सुरूचि पूर्वक किया जाता हैं।