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चार आने का हिसाब एक शिक्षाप्रद कहानी

 king of Chandanpur was a great prince

बहुत समय पहले की बात है , चंदनपुर का राजा बड़ा प्रतापी था , दूरदूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थी, उसके..
महल में हर एक सुखसुविधा की वस्तु उपलब्ध थी पर फिर भी अंदर से उसका मन अशांत रहता था। बहुत से विद्वानो से मिला, किसी से कोई हल प्राप्त नहीं हुआ.. उसे शांति नहीं मिली।

एक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकला। घूमतेघूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा , तभी उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी , किसान ने फटेपुराने वस्त्र धारण कर रखे थे और वह पेड़ की छाँव में बैठ कर भोजन कर रहा था।

किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन मे कुछ खुशियां पाये।

राजा किसान के सम्मुख जा कर बोलामैं एक राहगीर हूँ , मुझे तुम्हारे खेत पर ये चार स्वर्ण मुद्राएँ गिरी मिलीं , चूँकि यह खेत तुम्हारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो।

किसाननाना सेठ जी , ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं , इसे आप ही रखें या किसी और को दान कर दें , मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं।
किसान की यह प्रतिक्रिया राजा को बड़ी अजीब लगी , वह बोला , धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला आप लक्ष्मी को ना कैसे कर सकते हैं ?

सेठ जी , मैं रोज चार आने कमा लेता हूँ , और उतने में ही प्रसन्न रहता हूँ… , किसान बोला।
क्या ? आप सिर्फ चार आने की कमाई करते हैं , और उतने में ही प्रसन्न रहते हैं , यह कैसे संभव है ! , राजा ने अचरज से पुछा।

सेठ जी, किसान बोला , प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती की आप कितना कमाते हैं या आपके पास कितना धन है …. प्रसन्नता उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है।

तो तुम इन चार आने का क्याक्या कर लेते हो ?, राजा ने उपहास के लहजे में प्रश्न किया।

किसान भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहता था उसने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया ,
इन चार आनो में से एक मैं कुएं में डाल देता हूँ , दुसरे से कर्ज चुका देता हूँ , तीसरा उधार में दे देता हूँ और चौथा मिटटी में गाड़ देता हूँ ….
राजा सोचने लगा , उसे यह उत्तर समझ नहीं आया। वह किसान से इसका अर्थ पूछना चाहता था , पर वो जा चुका था।

राजा ने अगले दिन ही सभा बुलाई और पूरे दरबार में कल की घटना कह सुनाई और सबसे किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा।

दरबारियों ने अपनेअपने तर्क पेश किये पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया , अंत में किसान को ही दरबार में बुलाने का निर्णय लिया गया।

बहुत खोजबीन के बाद किसान मिला और उसे कल की सभा में प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया।

राजा ने किसान को उस दिन अपने भेष बदल कर भ्रमण करने के बारे में बताया और सम्मान पूर्वक दरबार में बैठाया।

मैं तुम्हारे उत्तर से प्रभावित हूँ , और तुम्हारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूँ; बताओ, तुम अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते हो ? , राजा ने प्रश्न किया।

किसान बोला , हुजूर , जैसा की मैंने बताया था , मैं एक आना कुएं में डाल देता हूँ , यानि अपने परिवार के भरणपोषण में लगा देता हूँ, दुसरे से मैं कर्ज चुकता हूँ , यानि इसे मैं अपने वृद्ध माँबाप की सेवा में लगा देता हूँ , तीसरा मैं उधार दे देता हूँ , यानि अपने बच्चों की शिक्षादीक्षा में लगा देता हूँ, और चौथा मैं मिटटी में गाड़ देता हूँ , यानि मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूँ ताकि समय आने पर मुझे किसी से माँगना ना पड़े और मैं इसे धार्मिक ,सामजिक या अन्य आवश्यक कार्यों में लगा सकूँ।

राजा को अब किसान की बात समझ चुकी थी। राजा की समस्या का समाधान हो चुका था , वह जान चुका था की यदि उसे प्रसन्न एवं संतुष्ट रहना है तो उसे भी अपने अर्जित किये धन का सहीसही उपयोग करना होगा।
मित्रों, देखा जाए तो पहले की अपेक्षा लोगों की आमदनी बढ़ी है पर क्या उसी अनुपात में हमारी प्रसन्नता भी बढ़ी है ?

पैसों के मामलों में हम कहीं कहीं गलती कर रहे हैं , लाइफ को बैलेंस्ड बनाना ज़रूरी है और इसके लिए हमें अपनी आमदनी और उसके इस्तेमाल पर ज़रूर गौर करना चाहिए, नहीं तो भले हम लाखों रूपये कमा लें पर फिर भी प्रसन्न एवं संतुष्ट नहीं रह पाएंगे !

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Long time ago, the king of Chandanpur was a great prince, far away, his prosperity was discussed, his ..
In the palace there was an object of every comfort, but still his mind was disturbed from inside. Many scholars found it, no solution was obtained from anyone. She could not find peace.
One day, the King went on his journey to the state of disguising himself. He roamed around a farm, then he saw a farmer lying on it, the farmer was wearing tired clothes and he was eating food in the shade of a tree.
Seeing the farmer’s clothes, the king came to mind that he should give some gold coins to the farmer so that he could get some happiness in his life.
The King went to the farmer and said – I am a passer-by, I found these four golden muds on your farm, since this farm is yours, keep these currencies only for you.
Farmers – Na – Na Seth Ji, these currencies are not mine, keep it to yourself or donate to someone else, I have no need for them.
This reaction of the farmer was very strange to the king, he said, who does not need money, how can not you do Lakshmi?
Seth ji, I earn four awards every day, and I am happy with that …, farmer said.
what ? You earn just four, and are happy with that, how is it possible! , The king wondered.
Seth Ji, the farmer said, happiness does not depend on how much you earn or how much money you have … Pleasure depends on the use of that money.
So what do you do about these four coming? The King questioned in the accent of ridicule.
The farmer also did not want to fall into the unnecessary debate, he replied in advance,
One of these four anuses I put in the well, I pay the loan from the other, give it in the third lending, and give it to the fourth floor ….
The king began to think that he did not understand the answer. He wanted to ask the farmer its meaning, but he had gone.
The King convened the next day and narrated the incident yesterday in the entire court and most farmers started asking for the meaning of that statement.
The courtiers presented their own arguments, but no one was able to satisfy the king, in the end it was decided to call the farmer in the court.
After a lot of research, the farmer got it and he was instructed to be present in the tomorrow’s meeting.
Raja informed the farmer about changing his customs on that day and sat in the courtyard respectfully.
I am impressed by your reply, and want to know the account of your four coming; Tell me, how do you spend your earning money that you are so happy and satisfied? , The king asked the question.
The farmer said, Hujoor, as I had said, I put one come in the well, i.e. in the maintenance of my family, I pay the debt to the other, that is, I am in the service of my elderly parents Let me lend, the third I lend, that is, I impose my children in the education initiation, and fourth I am buried in the soil, that is, I save a single money so that when the time comes, Do not stop and I can put it in religious, social or other necessary functions.
The king had now understood the matter of the farmer. The king’s problem had been solved, he had realized that if he had to be happy and satisfied, he would have to use his wealth properly.
Friends, if seen, the income of the people has increased rather than earlier, but is our happiness also increased in the same proportion?
In case of money, we are making a mistake somewhere, it is important to make life balanced and for this we should definitely consider our income and its use, otherwise we may earn millions of rupees but still remain happy and satisfied. Will find!

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