गुस्सा इंसान को अपनी भावना व्यक्त करने के तरीकों में से ही एक ऐसा तरीका है जिसमे लोग अपने डर, लालच , अहंकार , घमण्ड, बुराई ,दुर्व्यहार, ईर्ष्या, ईगो हार्ट, अपमान इत्यादि को व्यक्त करके अपने मन की भड़ास निकालते है। गुस्सा हर इंसान के अंदर छुपा हुआ रहता है। जो एक सूखे हुए तिनके के समान होता है लेकिन जैसे ही उसमे चिंगारी पड़ती है तो यह गुस्सा हम हावी होने लगता है भगवत गीता में गुस्सा को नर्क का द्वार कहा गया है।
अर्थात गुस्सा जीवो के अंदर उत्पन्न होने वाला एक प्राकृतिक नियम है। गुस्सा किसी भी चीज का हल नही होता है बल्कि गुस्सा हमे जिंदगी से अकेला कर देता है। अर्थात गुस्सा एक ऐसी आग है जो पहले तो खुद को जलाती है फिर प्रत्येक सामने वालो को जलाती है।
चलिए जानते हैं गुस्से पे कैसे काबू पाएं
बहुत पुरानी बात है। एक गांव में 12 वर्ष का लड़का अपने परिजनों के साथ रहता था। वह लड़का दिल का बहुत साफ था, पर उसे बहुत गुस्सा आता था।
उसके घरवाले काफी परेशान थे। तब एक दिन उसके पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा, ‘जब भी उसे क्रोध आए वो घर के सामने लगे पेड़ में कीलें ठोंक दे।’
लड़के ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए ठीक वैसे ही किया। उसे जब भी गुस्सा आया तो पहले दिन लड़के ने पेड़ में 30 कीलें ठोंकी। अगले कुछ हफ्तों में उसने गुस्से पर काबू कर लिया।
अब वह पेड़ में रोज एक – दो कीलें ही ठोंकता था। उसे यह समझ में आ गया था कि पेड़ में कीलें ठोंकने के बजाय क्रोध पर नियंत्रण करना आसान था। लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब उसने पेड़ में एक भी कील नहीं ठोंकी।
जब उसने अपने पिता को यह बताया तो पिता ने उससे कहा, ‘अब वह सारी कीलों को पेड़ से निकाल दे।’ लड़के ने बहुत मेहनत की और पेड़ से सारी कीलें खींचकर निकाल दीं। जब उसने अपने पिता को बताया की काम पूरा हो गया है तो पिता बेटे का हाथ थामकर उसे पेड़ के पास लेकर गया।
पिता ने पेड़ को देखते हुए बेटे से कहा, ‘मेरे बेटे , तुमने बहुत अच्छा काम किया, लेकिन पेड़ के तने पर बने सैकडों कीलों के इन निशानों को देखो। अब यह पेड़ इतना खूबसूरत नहीं लगता । हर बार जब तुम क्रोध किया करते थे तब इसी तरह के निशान दूसरों के मन पर बन जाते थे।
अगर तुम किसी पर भी गुस्सा होकर बाद में हजारों बार माफी मांग भी लो तब भी मन के घाव का निशान वहां हमेशा बना रहेगा। अपने मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसा काम न करो जिसके लिए तुम्हें पछताना पड़े।
Hindi to English
Angry is one of the ways in which a person expresses his feelings, in which people express their anger by expressing their fear, greed, ego, pride, evil, misbehavior, jealousy, ego heart, humiliation etc. Anger is hidden inside every human being. Which is similar to a dried straw but as soon as there is a spark in it, this anger starts dominating us, in the Bhagavad Gita, anger is called the gate of hell.
That is, anger is a natural law arising inside organisms. Anger is not solved by anything but anger makes us lonely with life. That is, anger is a fire that first burns itself and then burns the people in front of it.
Let’s know how to overcome anger
It’s a very old matter. A 12-year-old boy lived with his family in a village. The boy was very clear of heart, but he was very angry.
His family members were very upset. Then one day his father gave him a lot of nails and said, ‘Whenever he gets angry, he will put nails in the tree in front of the house.’
The boy followed his father’s orders in exactly the same way. Whenever he got angry, on the first day the boy hit 30 nails in the tree. Over the next few weeks, he overcame anger.
Now he used to put only one or two nails in the tree every day. He understood that it was easier to control anger than to nail into trees. But one day it also came when he did not hit a single nail in the tree.
When he told this to his father, the father told him, “Now let him remove all the nails from the tree.” The boy worked hard and pulled all the nails from the tree and removed them. When he told his father that the work was done, the father took the son’s hand and took him to the tree.
The father looking at the tree said to the son, ‘My son, you did a great job, but look at these marks of hundreds of nails on the trunk of the tree. Now this tree does not look so beautiful. Every time you used to be angry, similar marks were made on the minds of others.
Even if you get angry at someone and apologize for thousands of times later, the scar of mind will always remain there. Never do such work with your mind, words and deeds, for which you have to regret it.