महर्षि च्यवन परोपकारी संत थे।वह कहा करते थे कि मूक जीवों के प्रति दया करना सर्वोपरि धर्म है । महर्षि अपने आश्रम में बैठकर स्वयं पक्षियों को दाना चुगाया करते थे।और गौ माता की सेवा किया करते थे।एक बार महर्षि नदी की गहराई में जल के भीतर बैठकर मंत्र जाप कर रहे थे।
इतने में कुछ मछुआरे वहां आये। और उन्होंने मछलियां पकड़ने के लिए नदी में जाल फेंका।कुछ देर बाद जब मछुआरों ने जाल वापस खींचा गया।तो उसमें मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी जाल में बाहर आ गए। मल्लाह महर्षि च्यवन को जाल में फंसा देखकर घबरा गए।उन्होंने महर्षि से जाल से बाहर निकल आने की प्रार्थना की।
लेकिन महर्षि मछलियों को पानी बिना तड़पते देखकर द्रवित हो उठे। उन्होंने कहा “मछलियों को पुनः जल में छोड़ देंगे।तभी मैं जाल से बाहर आऊंगा।अन्यथा मैं भी इन्हीं के साथ प्राण दे दंगा”। यह समाचार राजा नुहष के पास पहुंचा।वह तुरंत नदी तट पर पहुंचे।वहां पहुंच कर राजा ने महर्षि को प्रणाम किया।और जाल से बाहर आने की विनती करने लगे।
महर्षि ने कहा “राजन इन मछुआरों ने परिश्रम करके मछलियों को जाल में फंसाया है।यदि आप इन्हें मेरा तथा मछलियों का मूल्य चुका दें। तो हम सब जाल से मुक्त हो जाएंगे”। राजा ने मछुआरों को स्वर्णमुद्राएं देने की पेशकश की।
यह देख पास ही खड़े एक संत ने कहा “महर्षि का मूल्य स्वर्णमुद्राओं से नहीं आंका जा सकता।आप गाय भेंट कर इन्हें बचा सकते हैं”। इसके बाद राजा नुहष ने गाय देकर महर्षि व मछलियों को जाल से मुक्त करा लिया।
Moral Of The Story (अनूठी करुणा)
यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि हमें इस दुनिया के हर प्राणी के प्रति दया व करुणा का भाव रखना चाहिए।फिर चाहे वह कोई इन्सान हो या फिर अन्य जीव जंतु।