विधि और कथा
- जिस दिन प्रकट हुए थे भगवान विष्णु मोहिनी रूप में
- करोड़ों वर्ष की तपस्या का फल देती है यह एकादशी
- जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत
- इसलिए एकादशी में वर्जित है चावल खाना
- उत्तम संतान प्रदान करने वाला पुत्रदा एकादशी व्रत
एकादशी व्रत का संबंध केवल पाप मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति से नहीं है। एकादशी व्रत भौतिक सुख और धन देने वाली भी मानी जाती है। ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी ऐसी ही एकादशी है जिस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से अपार धन प्राप्त होता है। यही कारण है कि इस एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी इस वर्ष 4 जून मंगलवार के दिन है।
अपरा एकादशी का एक अन्य अर्थ यह कि ऐसी ऐसी एकादशी है जिसका पुण्य अपार है। इस एकादशी का व्रत करने से, ऐसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है जिससे व्यक्ति को प्रेत योनी में जाना पड़ सकता है। पद्मपुराण में बताया गया है कि इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को वर्तमान जीवन में चली आ रही आर्थिक परेशानियों से राहत मिलती है। अगले जन्म में व्यक्ति धनवान कुल में जन्म लेता है और अपार धन का उपभोग करता है।
शास्त्रों में बताया गया है कि परनिंदा, झूठ, ठगी, छल ऐसे पाप हैं जिनके कारण व्यक्ति को नर्क में जाना पड़ता है। इस एकादशी के व्रत से इन पापों के प्रभाव में कमी आती है और व्यक्ति नर्क की यातना भोगने से बच जाता है।
व्रत की विधिः
पुराणों में एकादशी के व्रत के विषय में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह उठकर मन से सभी विकारों को निकाल दें और स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा में तुलसी पत्ता, श्रीखंड चंदन, गंगाजल एवं मौसमी फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए। व्रत रखने वाले को पूरे दिन परनिंदा, झूठ, छल-कपट से बचना चाहिए।
जो लोग किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं उन्हें एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए। इन्हें भी झूठ और परनिंदा से बचना चाहिए। जो व्यक्ति एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।
व्रत कथाः
महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी व्रत करने वाले के समस्त पापों का नाश हो जाता है. प्रभु इस व्रत से प्रसन्न होकर साधक को अनंत पुण्य देते हैं.
ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है. इस एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है.
अपरा एकादशी का एक अर्थ यह कि इस एकादशी का पुण्य अपार है. इस एकादशी का व्रत करने से लोग पापों से मुक्ति होकर भवसागर से तर जाते हैं. पुराणों में एकादशी के व्रत के बारे में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए. एकादशी के दिन सुबह उठकर, स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूजा में तुलसीदल, श्रीखंड चंदन, गंगाजल व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए. व्रत रखने वाले को पूरे दिन परनिंदा, झूठ, छल–कपट से बचना चाहिए.
जो लोग किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए. जो व्यक्ति एकादशी के दिन ‘विष्णुसहस्रनाम‘ का पाठ करता है, उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है.
व्रत कथा इस प्रकार है:
महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था. एक दिन मौका पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे शव को गाड़ दिया. अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी. मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती थी. एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे. इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना.
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया. राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा. द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया. एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया.
In English
Apara Ekadasi
Sri Yudhishthira Maharaj said, “Oh Janardana, what is the name of the Ekadasi that occurs during the dark fortnight (krishna paksha) of the month of Jyeshtha (May-June)?
I wish to hear from You the glories of this sacred day of Hari.
Please narrate everything to me”
Lord Sri Krishna said, “Oh king, your inquiry is wonderful because the answer will benefit the whole human society.
This Ekadasi is so sublime and meritorious that even the greatest sins can be erased by its purity.
“Oh great saintly king, the name of this unlimitedly meritorious Ekadasi is Apara Ekadasi.
Whoever fasts on this holy day becomes famous all over the universe.
Even such sins as killing a brahmana, a cow, or an embryo; blasphemy; or having sex with another man’s wife are completely eradicated by observing Apara Ekadasi.
Oh king people who bear false witness are most sinful.
A person who falsely or sarcastically glorifies another; one who cheats while weighing something on a scale; one who fails to execute the duties of his varna or Ashrama (an unqualified man’s posing as a brahmin, for example, or a person’s reciting the Vedas wrongly); one who invents his own scriptures; one who cheats others; one who is a charlatan astrologer, a cheating accountant, or a false Ayurvedic doctor.
All these are surely as bad as persons who bears false witness, and they are all destined for hellish punishments.
But simply by observing Apara Ekadasi, all such sinners become completely free of their sinful reactions.
Warriors who fall from their kshatriya-dharma and flee the battlefield go to a ferocious hell.
But, Oh Yudhishthira, even such a fallen kshatriya, if he observes fasting on the Apara Ekadasi, is freed of that great sinful reaction and goes to heaven.
That disciple is the greatest sinner who, after receiving a proper spiritual education from his spiritual master, turns around and blasphemes him.
Such a so-called disciple suffers unlimitedly.
But even he, rascal though he be, if he simply observes Apara Ekadasi, can attain to the spiritual world.
Listen, Oh king, as I describe to you further glories of this amazing Ekadasi.
The merit attained by one who performs all of the following acts of piety is equal to the merit achieved by one who observes Apara Ekadasi:
bathing three times daily in Pushkara-kshetra during Kartika (October-November); bathing at Prayag in the month of Magh (January-February) when the sun is in the zodiac of Capricorn; rendering service to Lord Shiva at Varanasi (Benares) during Shiva-ratri; offering oblations to one’s forefathers at Gaya; bathing in the sacred Gautami River when Jupiter transits Leo (Simha); having darshan of Lord Shiva at Kedarnatha; seeing Lord Badrinath when the Sun transits the sign of Aquarius (Kumbha); and bathing at the time of a solar eclipse at Kurukshetra and giving cows, elephants, and gold there in charity.
All the merit one gets from performing these pious acts is gained by a person who observes the Apara Ekadasi fast.
Also, the merit attained by one who donates a pregnant cow, along with gold and fertile land, is attained by one who fasts on this day.
In other words, Apara Ekadasi is an axe that cuts down the fully matured forest full of trees of sinful deeds, it is a forest fire that burns sins as if they were kindling firewood, it is the sun blazing before one’s dark misdeeds, and it is a lion stalking the meek deer of impiety.
Therefore, Oh Yudhishthira, whoever truly fears his past and present sins must observe Apara Ekadasi very strictly.
One who does not observe this fast must be born again in the material world, like one bubble among millions in a huge body of water, or like a small ant among all other species.
Therefore one must faithfully observe the sacred Apara Ekadasi and worship the Supreme Personality of Godhead, Sri Trivikrama.
One who does so is freed of all his sins and promoted to the abode of Lord Vishnu.
Oh Bharata, for the benefit of all humanity I have thus described to you this the importance of the holy Apara Ekadasi.
Anyone who hears or reads this description is certainly freed from all kinds of sins, oh best of saintly kings, Yudhishthira.
Thus ends the narration of the glories of Jyeshtha-krishna Ekadasi, or Apara Ekadasi, from the Brahmanda Purana.