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बेहतरीन समय 

 

बेहतरीन समय
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 बेहतरीन समय 

एक दिन अचानक मेरी पत्नी मुझसे बोली – “सुनो, अगर मैं तुम्हे किसी और औरत के साथ डिनर और फ़िल्म के लिए बाहर जाने को कहूँ तो तुम क्या कहोगे”। मैं बोला – “मैं कहूँगा कि अब तुम मुझे प्यार नहीं करती”।

उसने कहा – “मैं तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन मुझे पता है कि यह औरत भी आपसे बहुत प्यार करती है और आप के साथ कुछ समय बिताना उनके लिए सपने जैसा होगा”।

वह अन्य औरत कोई और नहीं मेरी “माँ” थी। जो पिता के देहांत के बाद मुझ से अलग अकेली रहती थी। अपनी व्यस्तता के कारण मैं उनसे मिलने कभी कभी ही जा पाता था। मैंने माँ को फ़ोन कर उन्हें अपने साथ रात के खानेे और एक फिल्म के लिए बाहर चलने के लिए कहा।

“तुम ठीक तो हो ना, तुम दोनों के बीच कोई परेशानी तो नहीं है” – माँ ने पूछा। मेरी माँ थोडा शक्की मिजाज़ की औरत थी। उनके लिए मेरा इस किस्म का फ़ोन मेरी किसी परेशानी का संकेत था। “नहीं नहीं कोई परेशानी नहीं। बस मैंने सोचा था कि आपके साथ बाहर जाना एक सुखद अहसास होगा” – मैंने जवाब दिया और कहा “बस हम दोनों ही चलेंगे”।

उन्होंने इस बारे में एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, “ठीक है”। शुक्रवार की शाम को जब मैं उनके घर पर पहुंचा तो मैंने देखा वह भी दरवाजे पर इंतजार कर रही थी। वो एक सुन्दर पोशाक पहने हुए थी और उनका चेहरा एक अलग सी ख़ुशी लिये चमक रहा था।

कार में माँ ने मुझसे कहा – “जब मैंने अपनी एक दोस्त को बताया कि आज मैं अपने बेटे के साथ बाहर खाना खाने व पिक्चर देखने के लिए जा रही हूँ। तो वो बहुत खुश हुई”।

हम लोग माँ की पसंद वाले एक रेस्तरां पहुचे जो बहुत सुरुचिपूर्ण तो नहीं मगर अच्छा और आरामदायक था। हम वहाँ बैठ गए और मैं मेनू देखने लगा। मेनू पढ़ते हुए बीच मे जब मैंने आँख उठा कर देखा तो पाया कि माँ मुझे ही देख रहीं थी और एक उदास सी मुस्कान उनके होठों पर थी।

‘जब तुम छोटे थे तो ये मेनू मैं तुम्हारे लिए पढ़ती थी’ – उन्होंने कहा। ‘माँ इस समय मैं इसे आपके लिए पढना चाहता हूँ’ – मैंने जवाब दिया।

खाने के दौरान, हम में एक दुसरे के जीवन में घटी हाल की घटनाओं पर चर्चा होंने लगी। हमने वहाँ बैठे बैठे आपस में इतनी ज्यादा बात की, कि पिक्चर का समय कब निकल गया हमें पता ही नही चला। बाद में वापस घर लौटते समय माँ ने मुझसे कहा कि अगर अगली बार मैं उन्हें बिल का पेमेंट करने दूँ, तो वो मेरे साथ दोबारा डिनर के लिए आना चाहेंगी।

मैंने कहा – “माँ जब आप चाहो और बिल पेमेंट कौन करता है इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है। माँ ने कहा – कि फ़र्क़ पड़ता है और अगली बार बिल वो ही पे करेंगी।

“घर पहुँचने पर पत्नी ने पूछा” – कैसा रहा।। “बहुत बढ़िया, जैसा सोचा था उससे कही ज्यादा बढ़िया” – मैंने जवाब दिया।
इस घटना के कुछ दिन बाद ही मेरी माँ का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। यह सब इतना अचानक हुआ कि मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया ।

माँ की मौत के कुछ समय बाद, मुझे एक लिफाफा मिला जिसमे उसी रेस्तरां की एडवांस पेमेंट की रसीद के साथ माँ का एक ख़त था। जिसमे माँ ने लिखा था -“मेरे बेटे मुझे पता नहीं कि मैं तुम्हारे साथ दोबारा डिनर पर जा पाऊँगी या नहीं इसलिए मैंने दो लोगो के खाने के अनुमानित बिल का एडवांस पेमेंट कर दिया है। अगर मैं नहीं जा पाऊँ तो तुम अपनी पत्नी के साथ भोजन करने जरूर जाना।

उस रात तुमने कहा था ना कि क्या फ़र्क़ पड़ता है। मुझ जैसी अकेली रहने वाली बूढी औरत को फ़र्क़ पड़ता है, तुम नहीं जानते उस रात तुम्हारे साथ बीता हर पल मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन समय में एक था। भगवान तुम्हे सदा खुश रखे। “I love you Beta”- तुम्हारी अपनी माँ

उस पल मुझे अपनों को समय देने और उनके प्यार को महसूस करने का महत्त्व मालूम हुआ। जीवन में कुछ भी आपके अपने परिवार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। ना व्हाट्सएप, ना फेसबूक, ना मोबाइल, ना लैपटॉप और ना ही टीवी। अपने परिजनों को उनके हिस्से का समय दीजिए क्योंकि आपका साथ ही उनके जीवन में खुशियाँ का आधार है। आपका धन तो आता जाता है मगर आपके अपने अगर गए तो लौट के कभी नहीं आते।

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