Breaking News

चातुर्मास और आयुर्वेद का संबंध

चातुर्मास में मांसाहार भोजन, मदिरा, पत्तेदार सब्जियां और दही से परहेज करना चाहिए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों चातुर्मास में इन चीजों का सेवन वर्जित माना गया है.

इस बारे में आयुर्वेद में बताया गया है कि, चातुर्मास के चार महीने में मौसम में बदलाव होते हैं. सावन में बारिश होती है, भाद्रपद में आद्रता या नमी वाला मौसम होता है, आश्विन में जाती हुई गर्मी और कार्तिकमें ठंड के मौसम की शुरुआत होने लगती है.

ऐसे में इन चार महीनो में पाचन शक्ति भी कमजोर रहती है. क्योंकि मौसम में बदलाव के कारण शरीर और आसपास के तापमान में लगातार उतार-चढाव होता है. साथ ही इस समय रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया या वायरस भी बढ़ने लगते हैं. अगर आप इस समय अत्यधिक मसालेदार या तामसिक भोजन करेंगे तो भोजन सही ढंग से पचेगा नहीं और इससे कई तरह के रोग होने का खतरा बढ़ जाएगा. यही कारण है कि आयुर्वेद में सावन के महीने में पत्तेदार सब्जियां, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और इसे बने पदार्थ और कार्तिक में प्याज लहसुन और उड़द दाल नहीं खाने की बात कही गई है.

चतुर्मास क्यों महत्वपूर्ण है?
चातुर्मास सभी के लिए तपस्या, तपस्या, उपवास, पवित्र नदियों में स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए वर्ष की आरक्षित अवधि है। चातुर्मास देव शयनी एकादशी से शुरू होता है और देव उठनी एकादशी पर समाप्त होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, ये चार महीने हैं जब भगवान विष्णु को विश्राम या शयन करते हुए माना जाता है।

चातुर्मास का मतलब क्या होता है?
व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को हिन्दू धर्म में ‘चातुर्मास’ कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है।

हिंदू धर्म में चतुर्मास क्या है?
चातुर्मास्य (संस्कृत: चातुर्मास्य, शाब्दिक अर्थ ‘चातुर्मास्य’), जिसे चातुर्मास भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में चार महीने की एक पवित्र अवधि है, जो शयनी एकादशी (जून-जुलाई) से शुरू होती है और प्रबोधिनी एकादशी (अक्टूबर-नवंबर) को समाप्त होती है। यह अवधि भारत में मानसून के मौसम के साथ भी मेल खाती है।

चातुर्मास में कितने दिन होते हैं?
देवशयनी के साथ आज से चातुर्मास शुरू:58 दिन का सावन और पांच महीने का चातुर्मास, अगले 148 दिन में 97 व्रत-त्योहार आज (29 जून) देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू हो गए हैं। चातुर्मास में सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक, ये चार महीने रहते हैं, लेकिन इस बार अधिक मास होने से चातुर्मास चार नहीं, पांच महीनों का होगा।

चातुर्मास में बैंगन क्यों नहीं खाना चाहिए?

नमी अधिक होने के कारण इस समय बैक्टीरिया-वायरस अधिक हो जाते हैं और हरी सब्जियां भी इनसे संक्रमित हो जाती हैं। – आयुर्वेद के अनुसार, इस समय हरी सब्जी खाने से हमें हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकती हैं, इसलिए इस दौरान हरी सब्जियां, बैंगन आदि खाने की मनाही होती है।

चातुर्मास में क्या करें क्या न करें?
चातुर्मास में सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साथ ही पांच तरह के दान का विशेष महत्व होता है, पहला- अन्न दान, दूसरा- दीपदान, तीसरा- वस्त्रदान, चौथा- छाया दान और पांचवा- श्रमदान करना चाहिए। चातुर्मास में अन्न व वस्त्र का दान करना चाहिए और मंदिर में जाकर सेवा दान करना चाहिए।

क्या चतुर्मास में मुंडन किया जा सकता है?
भगवान शयन से ही चातुर्मास प्रारंभ होगा। इसलिए इस दौरान विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, विवाह जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जा सकते हैं ।

चातुर्मास कब समाप्त होता है?
Chaturmas 2023: चातुर्मास यानी चार महीने की अवधि, जिसे सबसे धार्मिक अवधि माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2023 में अधिकमास के कारण चातुर्मास पांच महीने तक चलेगा. चातुर्मास देवशयनी एकादशी यानी 29 जून 2023 से शुरू होने जा रहा है और इसका समापन देवउठनी एकादशी यानी 23 नवंबर 2023 को होगा.

आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य क्या है?
आयुर्वेद का मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी हो जाने पर उसके विकार का प्रशमन करना है। ऋषि जानते थे कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ जीवन से है इसीलिए उन्होंने आत्मा के शुद्धिकरण के साथ शरीर की शुद्धि व स्वास्थ्य पर भी विशेष बल दिया है।

हिन्दू धर्म के जनक कौन है?
भगवान ऋषभदेव स्वायंभुव मनु से 5वीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वायंभुव मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। दूसरा रहस्य जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर नमि के बारे में उल्लेख है कि वे मिथिला के राजा थे। इन्हें राजा जनक का पूर्वज माना जाता है। राजा जनक भगवान राम के श्‍वसुर थे।

चातुर्मास में किसकी पूजा करनी चाहिए?
चातुर्मास के आषाढ़ माह में भगवान विष्णु, सूर्यदेव, मंगलदेव, दुर्गा और हनुमानजी की पूजा करने का दोगुना फल मिलता है।

चातुर्मास में क्या क्या नहीं खाना चाहिए?
चातुर्मास के दौरान तामसिक और गरिष भोजन, शराब, नॉनवेज, अंडा आदि चीजों को नहीं खाना चाहिए. इस समय को संयम का समय कहा गया है. चातुर्मास के दौरान विवाह समारोह, सगाई, सिर मुंडवाना और बच्चे का नामकरण, गृहप्रवेश जैसे तमाम मांगलिक कार्य करने की मनाही है.

क्या मैं चातुर्मास में शादी कर सकता हूं?
चातुर्मास के दौरान विवाह जैसे कोई भी शुभ समारोह नहीं होते हैं । चातुर्मास जुलाई के दूसरे भाग में शुरू होता है और नवंबर के पहले भाग के बाद समाप्त होता है। तुलसी विवाह के बाद भारत में शादी का मौसम शुरू हो जाता है।

चातुर्मास प्रारम्भ : जानिए 20 बड़े नियम और पूजा के तरीके

  1. चार माह तक एक समय भी भोजन करते हैं।
  2. इस दौरान फर्श या भूमि पर ही सोते हैं।
  3. इस दौरान राजसिक और तामसिक खाद्य पदार्थों का त्याग कर देते हैं।
  4. चार माह ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
  5. प्रतिदिन अच्छे से स्नान करते हैं।
  6. उषाकाल में उठते हैं और रात्रि में जल्दी सो जाते हैं।
  7. यथा शक्ति दान करते हैं।
  8. 4 माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृहप्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं।
  9. उक्त चार माह बाल और दाढ़ी नहीं कटवाते हैं।
  10. इन 4 महीनों में क्रोध, ईर्ष्या, असत्य वचन, अभिमान आदि भावनात्मक विकारों से बचते हैं।
  11. उक्त चार माह में यदि व्रत धारण करके नियमों का पालन कर रहे हैं तो यात्रा नहीं करते हैं।
  12. इन चार माह में व्यर्थ वार्तालाप, अनर्गल बातें, मनोरंजन के कार्य आदि त्याग देते हैं।
  13. अधिकतर समय मौन ही रहते हैं।
  14. साधुओं के साथ सत्संग का लाभ लेते हैं।
  15. नित्य संध्यावंदन करते हैं।
  16. नित्य विष्णुजी का ध्यान करते हैं।
  17. साधुजन योग, तप और साधना करते हैं आमजन भक्ति और ध्यान करते हैं।
  18. यज्ञोपवीत धारण करते हैं या उनका नवीनीकरण करते हैं।
  19. व्रत को खंडित नहीं करना चाहिए। नियम का पालन कर सको तभी चतुर्मास करना चाहिए।
  20. विष्णु जी के साथ ही लक्ष्मी, शिव, पार्वती, गणेश, पितृदेव, श्रीकृष्ण, राधा और रुक्मिणीजी की पूजा करते हैं।

Check Also

babu-kunwar-singh

बाबू वीर कुंवर सिंह

यदि हमें पिछले 200-250 वर्षों में हुए विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं की सूची बनाने को कहा जाए तो हम अपनी सूची में पहला नाम बाबू वीर कुंवर..