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सत्य घटना पर आधारित

पति- वह लोग कल आ रहे हैं, तू रिंकू से कहना की वह कल स्कूल न जाये

पत्नी – अरे कौन आ रहा है?

पति – हमारी रिंकू के देखने लड़के वाले आ रहे हैं हमारी रिंकू भाग्यशाली है की उसके लिए एक अच्छे घर से रिश्ता आ रहा है । राज करेगी राज हमारी गुड़िया बेटी।

पत्नी – अरे??? ये क्या बात हुई? अभी हमारी बच्ची केवल 10 साल की है और उसे भले बुरे का उतना ज्ञान भी नहीं है और आप उसकी शादी की सोच रहे हो, आप पागल तो नहीं हो गये?

पति – तू तो 8 साल मे इस घर पे मेरे साथ ब्याह के आई थी क्या तूने भी कुछ सीखा था क्या? वैसे ही वह भी आस्ते आस्ते सब सीख जायेगी। हर लड़की का सपना होता है की उसे अच्छा पति और अच्छा परिवार मिले । हम वही तो दे रहे है अपनी बिटिया को।

पत्नी – हमने जो गलती की क्या वही गलती अपनी बेटी के साथ करें? अभी उसने सपने देखे भी नहीं होंगे की हम अपने सपनों को उसपे लादकर उसके सपनों को दबा दे? उसे थोड़ा समझदार तो होने दीजिए । फिर हम मिलकर फैसला करेंगे न की उसके लिए अच्छा बुरा क्या है। तभी सास की अवाज आती है…तू ज्यादा बकर बकर मत कर और चुपचाप जो हो रहा है होने दे..तू अभी इतनी बड़ी नहीं हुई है की इस घर पे तेरी मनमानी चले।

पत्नी – क्या अपने ही कोख की मोती की भलाई के लिए बोलना भी मनमानी है?

सास- अब तू ज्यादा बोलेगी तो तेरा ही नुकसान होगा, तेरे जिद से कुछ होने वाला भी नहीं है। हम सबने फैसला कर लिया है और वही अटल है।

पति- तू कल मायके चली जाना और बेटी की शादी के बाद ही आना यदी तेरा मन करे तो…

रितीका चुपचाप कमरे मे जाके बैठी बैठी सोचने लगती है। की एक बेटी की उम्र सिर्फ 18या 20 साल तो होती है ,ये ही तो पूँजी होती है हर लडकीयों की जो इन मे अपने सपने बुनते है दोस्त बनाते है खेलते है मस्ती करते है माँ बाप के प्यार का भरपूर फायदा उठाते हैं । फिर शादी के बाद तो हकदार बदल जाते हैं बेटी अब किसी की बहू तो किसी की भाभी तो किसी बीवी बन जाती है। कान भी तरस से जाते हैं फिर वही मीठे शब्द सुनने के लिए..बेटी …

अब रितीका फैसला करती है मन ही मन, कोख से बचाके लाई हूँ यूँ ही उसे मरने कहाँ दूंगी । फिर समय देखती है दोपहर के दो बज रहें है । फिर अपने साथ कुछ जरूरी समान लेके चुपचाप किसी को पता चले बगैर अपनी बेटी के स्कूल जाकर उसे वहीं से ले के दिशाहीन एक अंजान मंजिल की ओर निकल पड़ती है

ख्याल तो आया की मा बाप के घर जाने की मगर वहाँ भी तो उसे सिर्फ आठ साल की उम्र मे शादी करवाके उसका बचपन छीन लिया था। फिर वह निकल पड़ती है एक नई मंजिल की ओर अपनी बेटी की खूबसूरत भविष्य की तलाश मे। वह एक नये शहर मे जाके बेटी के साथ सिलाई बुनाई का काम करती है और बेटी को स्कूल भेजती है आस पास के पडोशी रितीका के स्वाभाव और चालचलन से बेहद प्रभावित थे..उसे हर बार सहायता की पेशकश करते थे मगर वह एक खुद्दार औरत नहीं वल्की एक खुद्दार माँ भी थी जिसने बेटी के लिए अपनी जिंदगी दाँव पे लगा दी थी वह फिर समझौता कैसे करती कीसी और से। देखते ही देखते जिंदगी के अनमोल 15 साल बित गये

आज रिंकू का जन्मदिन है।

रितीका- ये रिंकू जल्दी कर बेटी केक काट ले…तभी फोन आता है की हस्पीटल मे इमेरजेन्सी केश आया है।

रिंकू -चलो माँ आओ।

माँ – चल बाद मे केक काटना…तेरा जन्मदिन कहीं भागा नहीं जा रहा है। हस्पीटल मे कोई पेसेन्ट तेरा इंतजार कर रहा है अपनी जिंदगी के लिए । इसलिए जल्दी से जा ,

रिंकू -अरे माँ अपना जन्मदिन तो मना लू केक तो खा लूँ ।

माँ – तेरे जन्मदिन से बड़ा किसी की जिंदगी है चल अब पहले हस्पीटल जा।

रिंकू पैर पटकती हुई नाराजगी से कहती है की आप बेहद बुरी हो और कुछ नहीं जानती।

माँ – हाँ मै बेहद बुरी हूँ और कुछ नहीं जानती मगर तू जा तो पहले…

रिंकू थोड़ी दूर जाके फिर दौड़कर मां के गले लगके बोलती है। मेरी दुनिया ही मेरी माँ तू है और तेरे जैसा कोई नहीं । अब अपनी बेटी को आशीर्वाद दे ताकी मैं किसी के लिए जीने की वजह बन सकूँ ।

मां का आर्शीवाद लेके रिंकू हस्पीटल पहुँचती है और इलाज शुरू करती है मगर पेसेन्ट को देखते ही हैरान रह जाती है। सामने और कोई नहीं वल्की उसका अपना बाप था, बाहर देखा तो सब अपने ही थे दादा दादी चाचा चाची, सबको पहचान लिया मगर कोई रिंकू को पहचान न सका। रिंकी दुवाओं के साथ अपरेशन शुरू करती है क्योंकि सामने पड़ा मरीज खुद उसका बाप होता है।

इलाज सफल होता है और रिंकू रोते हुए माँ को जल्दी से हॉस्पिटल बुलाती है। इधर सब अंदर रिंकू के पापा से मिलने जाते हैं । मा के आते ही रिंकू माँ के लगकर रोते हुये कहती है की…मां , आज तेरी बेटी बहुत बड़ी हो गई है…पता है आज इन हाथों से मैंने अपने बाबा को बचाया है जिस बाबा ने मुझे जन्म दिया था । रितीका के पलकों पे भी आशू थे मगर उस फैसले के लिए । जो अपनी बेटी की सपनों को पूरा करने के अपनी 15 साल की जिंदगी बिन पति के गुजराती थी

तभी सभी उसके अपने रिंकू को धन्यवाद देने आते है तो रिंकू के साथ रितीका को देखकर सबकी आंखे फटी की फटी रह जाती है । माँ कुछ बोलती इससे पहले रिंकू सबके पैर छूने को झूकती है। तब रितीका कहती है की…ये आप सबकी वह छोटी रिंकू है जिसके सपने को मैंने पूरे करने के लिए घर छोड़ी थी। हाँ मै मुजरीम थी उस वक्त आप सबकी मगर मुझे गुनाह करना आसान लगा

अपनी बेटी की सपनों को पूरा करने के लिए । सबकी आखो मे बस पश्चताप के आशू थे । कोई कुछ भी बोल नहीं पा रहा था हर तरफ खामोशी । बस अवाज गूँज रही थी तो बस सिसकीयो की उधर रिंकू रितीका सब मिलकर अपने पापा से मिलते हैं उस बाप की आखो मे पश्चतावे के आंशू के अलावा कुछ न था। हाँथ जुड़े हुए और सर शर्म से झूके हुए मगर बेटी ने गले लगकर सारे दुखो को दूर कर दिया। आज वही परिवार का हर बड़ा छोटा सदस्य गाँव गाँव घूमकर बाल बिवाह के खिलाफ लोगों को संदेश दे रहा है।

जो कभी बाल विवाह के हक मे थे। आज भी हमारे देश के कई हिस्सों मे बाल विवाह का जोर सोर से प्रचलन है। कोख मे बेटी हत्या बहू हत्या दहेज प्रचलन जोर शोर से है । मगर इस खास मुद्दों पर कोई आवाज नहीं उठाता मगर आरक्षण के सबको चाहिए।

अरे जब बेटीयां ही पैदा होना छोड़ देगी तो फिर ये आरक्षण किस के लिए। आजकल सोसल मीडिया एक तरह से सरकार है उसकी आवाज मे ताकत है मगर कभी कभी मैं हैरान रह जाती हूँ लोग फालतू की पोस्ट करके खुश हो जाते हैं । इसपर अवाज उठाना बेहद जरूरी है और ऐसा तब होगा जब हमारी सोच एक होगी।

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