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बासी भोजन का रहस्य

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बासी भोजन का रहस्य
शहर से दूर प्रकृति की गोद में एक महात्मा का आश्रम था। महात्मा वहां अपने शिष्यों को उनके रुचि के स्तर से शिक्षा दिया करते थे। उनकी शिक्षा से सभी लोग प्रसन्न रहते थे। महात्मा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी , लोग उनसे शास्त्रार्थ करने और उनके प्रवचन सुनने कई दिनों का मार्ग तय करके महात्मा के आश्रम आया करते थे।
एक धनी सेठ महात्मा के आश्रम में पधारे और महात्मा के प्रवचनों को सुनकर वह मंत्रमुग्ध हो गए। प्रवचन इतने हृदयस्पर्शी थे कि सेठ महात्मा के वचनों को बड़े ही तल्लीनता और एकाग्रता से सुन रहे थे। जब प्रवचन समाप्त हुआ तो , सेठ ने महात्मा को अपने घर भोजन का न्योता दिया। महात्मा ने काफी अनुनय विनय के बाद सेठ का निवेदन स्वीकार किया। किंतु महात्मा के अनुयायियों ने सेठ को स्पष्ट बता दिया कि महात्मा केवल ताजा भोजन करते हैं। अतः महात्मा के लिए ताजा भोजन का ही प्रबंध किया जाए।
तय समय पर महात्मा अपने अनुयायियों के साथ सेठ के घर अतिथि रूप में उपस्थित हुए। सेठ ने महात्मा से बताया उनके पूर्वज उनके लिए इतना धन संपत्ति छोड़ गए हैं कि किसी को और को कमाने अथवा श्रम करने की कोई आवश्यकता नहीं। बैठे – बैठे सात पुस्ते खा सकती हैं , फिर भी धन की कोई कमी नहीं होगी महात्मा बात सुनते रहे।
भोजन का समय हुआ महात्मा के समक्ष अनेकों प्रकार के भोजन उपस्थित किए गए। महात्मा ने सेठ से कहा हमने तुम्हें पहले ही बताया था कि हम बासी भोजन नहीं करते हैं। सेठ आश्चर्यचकित रह गया और कहा महात्मा इन व्यंजनों के लिए कई घंटों की मेहनत लगी है , तब जाकर यह व्यंजन तैयार हुए हैं, यह ताजे व्यंजन है।
महात्मा ने कहा यह व्यंजन ताजे तब होते जब तुम्हारे द्वारा कमाए गए धन से बने होते। यह व्यंजन तुम्हारे पूर्वजों के धन से बनाया गया है , इसलिए यह भोजन मेरे लिए बासी के समान है। यह कहते हुए महात्मा अपने अनुयायियों के साथ बिना भोजन किए अपने आश्रम आ जाते हैं।

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