बंसी वाले को हम याद आने लगे,
कान्हा मंदिर में आंसू बहाने लगे|
अब ना कीर्तन में नर्तन कहीं हो रहा,
अब ना भक्तों का दर्शन कहीं हो रहा,
कितना सुनसान मंदिर पड़ा देख कर,
कान्हा अश्क़ों में भी मुस्कुराने लगे,
बंसी वाले को ……………..
अब ना याचक कोई ना दया पात्र है,
पूजा को कुछ पुजारी ही बस मात्र हैं,
अपना जीवन बचने में सब लग गए,
अपने कान्हा को अब सब भुलाने लगे,
बंसी वाले को ………………
उनके सेवक पुजारी भी खाली खड़े,
भक्त सब खो गए उनके छोटे बड़े,
आके प्रसाद कोई लगाता नहीं,
पेट के चूहे अब कुलबुलाने लगे,
बंसी वाले को …………….
सोचते हैं ये मैंने क्या लीला घडी,
लौट कर ये तो मुझ पर ही भारी पड़ी,
मेरे भक्तों बिना मेरा क्या मोल है,
सोच कर खुद बखुद पछताने लगे,
बंसी वाले को ………………