हम को अपना सुधार करना चाहिये। हमारे द्वारा अब ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिये, जो हमें खतरे में डालने वाला हो। भाव ऊंचा बनायें। भाव अपना है, अपने अधिकार की बात है। फिर कमी क्यों रहने दें। अनिच्छा- परेच्छा से जो कुछ आकर प्राप्त होता है वह हमारा प्रारब्ध है। कोई भी काम करें उस में ऊंचे-से-ऊंचा भाव रखें। संसार में जो कुछ है भाव ही है। भाव श्रेष्ठ बनायें।
एक भाई यज्ञ -तपादि करता है, उसका भाव यह है कि हमारा शत्रु मारा जाय, बीमार पड़ जाय तो यह तामसी है अधोगच्छन्ति तामसा: । देखने में उसके कर्म अच्छे हैं किन्तु उसका फल नरक है, क्योंकि उसका उद्देश्य खराब है, भाव खराब है।
दूसरा एक भाई वही यज्ञ-तपादि भगवान् में प्रेम होमे के लिये करता है या फलकी इच्छा नहीं रखता, निष्काम भाव से करता है, वह क्रिया कल्याण करने वाली है, इसलिये उत्तम भाव से ही कर्म करना चाहिये। हम किसी की सेवा करते हैं तो उस समय यह भाव रखना चाहिये कि हम कुछ नहीं करते, अपितु यही हमारा बहुत बड़ा काम करते हैं कि हमसे सेवा करा रहे हैं, उनकी और भगवान् की दया है कि हमको सेवा का मौका दिया है। यह भाव कल्याण करने वाला है, ऊंचे दर्जे का भाव है। यदि यह भाव करे कि हम सेवा करते हैं तो लाभ तो है किन्तु इतना नहीं, वाहवाही मिल जायेगी। नाम- बड़ाई होगी या स्वर्ग मिलेगा, किन्तु उससे लाभ क्या है? मनुष्य- जीवन विषय- भोग के लिये नहीं है। उद्देश्य यह न हो कि मैं जो दान, तप,यज्ञ, उपकार करुंगा उससे स्वर्ग मिले या कीर्ति हो। स्वर्ग और कीर्ति कोई चीज नहीं है, असली वस्तु तो ऊंचे भाव से मिलती है। स्वर्ग मिला तो क्या लाभ हुआ?    वे उस विशाल स्वर्ग लोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को ही प्राप्त होते हैं। इस प्रकार स्वर्ग के साधन रुप तीनों वेदों में कहे हुए सकाम कर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों की कामना वाले पुरुष बार-बार आवागमन को प्राप्त होते हैं, अर्थात् पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग में जाते हैं और पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आते हैं।
हमलोग न जाने कितनी बार स्वर्ग और नरक भोग चुके हैं, फिर यह मनुष्य जीवन पाकर फिर उसी के लिये चेष्टा करना मूर्खता है। यह मौका हाथ से न जाने दें। यह आखिरी मौका है, अन्यथा ऐसे ही जन्मते-मरते रहना है।
पूर्व में कितनी बार जन्मे-मरे और भविष्य में कितनी बार जन्मेंगे और मरेंगे, इसको कोई महीं बता सकता।
यह मनुष्य शरीर संसार में घूमने के लिये नहीं मिला है। संसार चक्र को रोकने के लिये मिला है। संसार के भोगों के लिये या स्वर्ग भोगने के लिये नहीं मिला है, यह तो परम कल्याण करने के लिये मिला है।
  हम जिनकी सेवा करते हैं, उपकार करते हैं, वास्तव में वही हमारा उपकार करते हैं, वही हमारा कल्याण करते हैं। यदि हमारे द्वारा किसी का अनिष्ट हो जाय तो समझें बड़ा भारी पाप हो गया, जिसका अनिष्ट हो गया है उससे क्षमा प्रार्थना करनी चाहिये। वह यदि क्षमा कर दें तो फिर यमराज की सामथ्र्य नहीं है कि दण्ड दे सकें।
यह भाव रखे कि सब भगवान् के ही जन हैं। जितने जीव हैं भगवान् के ही तो हैं। तुलसीदास जी ने कहा है—
समदरसी मोहि कह सब कोउ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोउ।।
अनन्यगतिवाला भक्त भगवान् को अधिक प्रिय है। अनन्य गति का लक्षण भगवान् राम इस प्रकार बताते हैं—
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत। मैं सेवक सचराचर रुप स्वामि भगवंत।।
वह मेरा अनन्य सेवक है जिसकी मति इस भाव से कभी नहीं टलती कि यह संसार भगवान् का स्वरुप है और मैं सबका सेवक हूं। यह बहुत ऊंचा भाव है। गीता में भगवान् कहते हैं—
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।
बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में तत्त्वज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही है— इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।
हमलोगों को सबको वासुदेव समझकर, नारायण समझकर सेवा करनी चाहिये। यदि कुछ अपराध बन जाय तो सेवा—प्रार्थना करनी चाहिये और बदले में सेवा अधिक करनी चाहिये, यदि हमारा अनिष्ट हो तो यह भाव रखे कि यह हमारे प्रारब्ध का फल है। हमने जो अपराध किया है उसका फल भगवान् इसको निमित्त बनाकर भुगत रहे हैं। प्रभु से उसके लिये यह प्रार्थना करनी चाहिये कि प्रभो आप तो स्वयं यह काम कर सकते हैं तो फिर इस बेचारे को क्यों निमित्त बना हरे हैं। अपने से जो किसी की सेवा हो रही है, उसमें सेवा करवाने वाले के द्वारा हमारा उपकार हो रहा है। किसी के द्वारा हमारा अनिष्ट होता है तो अपने ही पापों का फल समझे। भगवान् उसको निमित्त बनाकर फल भुगता रहे हैं, उसके प्रति द्वेष भाव न रखे। उसका इसमें कोई दोष नहीं है। जो कुछ है भाव ही है। इसी को ऊंचा बनायें। यह संसार दीख रहा है, यह हमारे मनका भाव है। भीतरका भाव ही बाहर दिखता है, मनको भावमय बनाये। मनको कुछ काम चाहिये, यही काम दें। यहां आयें हैं तो गंगा में स्नान करें। गंगा की महान् कृपा है तभी तो हमको पवित्र करने आयी है। गंगा भगवान् शंकर की जटा का जल है और भगवान् विष्णु के चरणों का जल है, यह कल्याण करने के लिये ही संसार में आयीहै। स्नान करते समय इस प्रकार का ऊंचा भाव रखें। इसी प्रकार भगवान् को अघ्र्य देते समय यह भाव रखें कि भगवान् सूर्य संसार का कल्याण कर रहे हैं। प्रकाश द्वारा जो कल्याण होता है वह तो होता ही है। यह प्रत्यक्ष देवता हैं। इनकी रश्मियों के द्वारा मनुष्य कल्याण को प्राप्त होता है। यह उत्तम मार्ग से परमात्मा के परमधाम पहुंचाते हैं। इनकी उपासना भावमय होकर करे तो क्या वह इतना भी नहीं करेंगे कि इसने जन्मभर मेरी आराधना की है अतः उसे अच्छे मार्ग से भगवान् के धाम में पहुंचा दें। इसलिये इनकी आराधना करते समय बहुत ही ऊंचा भाव रखना चाहिये।
यही बात नामजप में है। नामजप का बड़ा भारी प्रभाव है। नामजप से सारे पापों का नाश होकर कल्याण हो जाता है। नामजप के समान और मूल्यवान् हो जाता है। नामजप के साथ-साथ भगवान् के स्वरुप का ध्यान करने से अधिक लाभ हो सकता है। नामजप में भाव ऊंचा बनायें, बड़ा लाभ हो सकता है।
भगवान् की हर एक क्रिया में प्रसन्न रहे, मुग्ध हो-होकर भगवान् की दया समझे, फिर कल्याण की प्राप्ति मेंे देर नहीं हैं।
wish4me in English
ham ko apana sudhaar karana chaahiye. hamaare dvaara ab aisa koee kaam nahin hona chaahiye, jo hamen khatare mein daalane vaala ho. bhaav ooncha banaayen. bhaav apana hai, apane adhikaar kee baat hai. phir kamee kyon rahane den. anichchha- parechchha se jo kuchh aakar praapt hota hai vah hamaara praarabdh hai. koee bhee kaam karen us mein oonche-se-ooncha bhaav rakhen. sansaar mein jo kuchh hai bhaav hee hai. bhaav shreshth banaayen.
ek bhaee yagy -tapaadi karata hai, usaka bhaav yah hai ki hamaara shatru maara jaay, beemaar pad jaay to yah taamasee hai adhogachchhanti taamasa: . dekhane mein usake karm achchhe hain kintu usaka phal narak hai, kyonki usaka uddeshy kharaab hai, bhaav kharaab hai.
doosara ek bhaee vahee yagy-tapaadi bhagavaan mein prem home ke liye karata hai ya phalakee ichchha nahin rakhata, nishkaam bhaav se karata hai, vah kriya kalyaan karane vaalee hai, isaliye uttam bhaav se hee karm karana chaahiye. ham kisee kee seva karate hain to us samay yah bhaav rakhana chaahiye ki ham kuchh nahin karate, apitu yahee hamaara bahut bada kaam karate hain ki hamase seva kara rahe hain, unakee aur bhagavaan kee daya hai ki hamako seva ka mauka diya hai. yah bhaav kalyaan karane vaala hai, oonche darje ka bhaav hai. yadi yah bhaav kare ki ham seva karate hain to laabh to hai kintu itana nahin, vaahavaahee mil jaayegee. naam- badaee hogee ya svarg milega, kintu usase laabh kya hai? manushy- jeevan vishay- bhog ke liye nahin hai. uddeshy yah na ho ki main jo daan, tap,yagy, upakaar karunga usase svarg mile ya keerti ho. svarg aur keerti koee cheej nahin hai, asalee vastu to oonche bhaav se milatee hai. svarg mila to kya laabh hua? ve us vishaal svarg lok ko bhogakar puny ksheen hone par mrtyu lok ko hee praapt hote hain. is prakaar svarg ke saadhan rup teenon vedon mein kahe hue sakaam karm ka aashray lene vaale aur bhogon kee kaamana vaale purush baar-baar aavaagaman ko praapt hote hain, arthaat puny ke prabhaav se svarg mein jaate hain aur puny ksheen hone par mrtyulok mein aate hain.
hamalog na jaane kitanee baar svarg aur narak bhog chuke hain, phir yah manushy jeevan paakar phir usee ke liye cheshta karana moorkhata hai. yah mauka haath se na jaane den. yah aakhiree mauka hai, anyatha aise hee janmate-marate rahana hai.
poorv mein kitanee baar janme-mare aur bhavishy mein kitanee baar janmenge aur marenge, isako koee maheen bata sakata.
yah manushy shareer sansaar mein ghoomane ke liye nahin mila hai. sansaar chakr ko rokane ke liye mila hai. sansaar ke bhogon ke liye ya svarg bhogane ke liye nahin mila hai, yah to param kalyaan karane ke liye mila hai.
ham jinakee seva karate hain, upakaar karate hain, vaastav mein vahee hamaara upakaar karate hain, vahee hamaara kalyaan karate hain. yadi hamaare dvaara kisee ka anisht ho jaay to samajhen bada bhaaree paap ho gaya, jisaka anisht ho gaya hai usase kshama praarthana karanee chaahiye. vah yadi kshama kar den to phir yamaraaj kee saamathry nahin hai ki dand de saken.
yah bhaav rakhe ki sab bhagavaan ke hee jan hain. jitane jeev hain bhagavaan ke hee to hain. tulaseedaas jee ne kaha hai—
samadarasee mohi kah sab kou. sevak priy anany gati sou..
ananyagativaala bhakt bhagavaan ko adhik priy hai. anany gati ka lakshan bhagavaan raam is prakaar bataate hain—
so anany jaaken asi mati na tari hanumant. main sevak sacharaachar rup svaami bhagavant..
vah mera anany sevak hai jisakee mati is bhaav se kabhee nahin talatee ki yah sansaar bhagavaan ka svarup hai aur main sabaka sevak hoon. yah bahut ooncha bhaav hai. geeta mein bhagavaan kahate hain—
bahoonaan janmanaamante gyaanavaanmaan prapadyate.
vaasudevah sarvamiti sa mahaatma sudurlabhah..
bahut janmon ke ant ke janm mein tattvagyaan ko praapt purush, sab kuchh vaasudev hee hai— is prakaar mujhako bhajata hai, vah mahaatma atyant durlabh hai.
hamalogon ko sabako vaasudev samajhakar, naaraayan samajhakar seva karanee chaahiye. yadi kuchh aparaadh ban jaay to seva—praarthana karanee chaahiye aur badale mein seva adhik karanee chaahiye, yadi hamaara anisht ho to yah bhaav rakhe ki yah hamaare praarabdh ka phal hai. hamane jo aparaadh kiya hai usaka phal bhagavaan isako nimitt banaakar bhugat rahe hain. prabhu se usake liye yah praarthana karanee chaahiye ki prabho aap to svayan yah kaam kar sakate hain to phir is bechaare ko kyon nimitt bana hare hain. apane se jo kisee kee seva ho rahee hai, usamen seva karavaane vaale ke dvaara hamaara upakaar ho raha hai. kisee ke dvaara hamaara anisht hota hai to apane hee paapon ka phal samajhe. bhagavaan usako nimitt banaakar phal bhugata rahe hain, usake prati dvesh bhaav na rakhe. usaka isamen koee dosh nahin hai. jo kuchh hai bhaav hee hai. isee ko ooncha banaayen. yah sansaar deekh raha hai, yah hamaare manaka bhaav hai. bheetaraka bhaav hee baahar dikhata hai, manako bhaavamay banaaye. manako kuchh kaam chaahiye, yahee kaam den. yahaan aayen hain to ganga mein snaan karen. ganga kee mahaan krpa hai tabhee to hamako pavitr karane aayee hai. ganga bhagavaan shankar kee jata ka jal hai aur bhagavaan vishnu ke charanon ka jal hai, yah kalyaan karane ke liye hee sansaar mein aayeehai. snaan karate samay is prakaar ka ooncha bhaav rakhen. isee prakaar bhagavaan ko aghry dete samay yah bhaav rakhen ki bhagavaan soory sansaar ka kalyaan kar rahe hain. prakaash dvaara jo kalyaan hota hai vah to hota hee hai. yah pratyaksh devata hain. inakee rashmiyon ke dvaara manushy kalyaan ko praapt hota hai. yah uttam maarg se paramaatma ke paramadhaam pahunchaate hain. inakee upaasana bhaavamay hokar kare to kya vah itana bhee nahin karenge ki isane janmabhar meree aaraadhana kee hai atah use achchhe maarg se bhagavaan ke dhaam mein pahuncha den. isaliye inakee aaraadhana karate samay bahut hee ooncha bhaav rakhana chaahiye.
yahee baat naamajap mein hai. naamajap ka bada bhaaree prabhaav hai. naamajap se saare paapon ka naash hokar kalyaan ho jaata hai. naamajap ke samaan aur moolyavaan ho jaata hai. naamajap ke saath-saath bhagavaan ke svarup ka dhyaan karane se adhik laabh ho sakata hai. naamajap mein bhaav ooncha banaayen, bada laabh ho sakata hai.
bhagavaan kee har ek kriya mein prasann rahe, mugdh ho-hokar bhagavaan kee daya samajhe, phir kalyaan kee praapti mene der nahin hain