एक बार अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से प्रश्न किया, ‘आपको किन-किन सद्गुणों वाला भक्त प्रिय है?’
श्रीकृष्ण ने बताया, ‘जो किसी प्राणी से द्वेष नहीं करता, सबसे सद्भाव व मैत्री भाव रखता है, सब पर करुणा करता है, क्षमाशील है, ममता और अहंकार से रहित है, सुख-दुःख में एक समान रहता है, वह भक्त मुझे प्रिय है।’
‘स्वर्ग के अधिकारी कौन होते हैं?’ इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, ‘जो दान, तपस्या, सत्य भाषण और इंद्रिय संयम द्वारा निरंतर धर्माचरण में लगे रहते हैं, ऐसे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो माता-पिता की सेवा करते हैं तथा भाइयों के प्रति स्नेह रखते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं।
हिंसा व अन्य दुष्प्रवृत्तियों को पतन का कारण बताते हुए श्रीकृष्ण ने कहा, ‘हे महाबाहु अर्जुन, प्राणियों की हिंसा करनेवाले, लोभ-मोह में फँसकर जीवन निरर्थक करनेवाले व्यक्ति का पतन हो जाता है,
लेकिन जो व्यक्ति न किसी से द्वेष करता है और न आकांक्षा करता है, उसे सदा संन्यासी, महात्मा ही समझना चाहिए, क्योंकि राग-द्वेष आदि द्वंद्वों से रहित पुरुष सुखपूर्वक संसार- बंधन से मुक्त हो जाता है।’
भगवान् श्रीकृष्ण आगे कहते हैं, जिसके चित्त में असंतोष व अभाव का बोध है, वही दरिद्र है। जिसकी चित्तवृत्ति विषयों में आसक्त नहीं है, वह समर्थ-स्वतंत्र है और सदा शांति की अनुभूति करता है।’
भक्तों को महत्त्व देते हुए श्रीकृष्ण ने बताया, ‘भक्त के पीछे-पीछे मैं निरंतर यह सोचकर घूमा करता हूँ कि उसके चरणों की धूल उड़कर मुझ पर पड़ेगी और मैं पवित्र हो जाऊँगा।