भीमा नायक मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता आंदोलन कारियों मैं जिन नायकों का नाम लिया जाता है
उनमें से एक भीमा नायक हैं जिन का स्वतंत्रता के लिए विशेष स्थान है। भीमा नायक
का संबंध भील जनजाति से है जिनका जन्म मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के पंच मोहाली नामक गांव में हुआ था
और इनका जन्म वर्ष 1840 में हुआ bhima nayak ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था।
भीमा नायक बड़वानी में आदिवासियों का नेतृत्व किया अंग्रेज सरकार द्वारा उनके खिलाफ दोष सिद्ध होने पर उन्हें पोर्ट ब्लेयर व निकोबार में रखा गया था।
1857 में हुए अंबापानी युद्ध में bhima nayak का एक विशेष योगदान था, अंग्रेजों ने भीमा नायक को पकड़ने में असफल रहे ओर
जिसके कारण उन्होंने एक चाल चली और भीमा नायक के करीबी रहने वाले लोगों के साथ धोखाधड़ी करके भीमा नायक को 2 अप्रैल 1868 को सतपुड़ा के घने जंगल में जब भीमा नायक सो रहे थे उस समय अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया।
आदिवासी समुदाय के इस योद्धा को अंडमान के काला पानी में 29 दिसंबर 1876 को फांसी दी गई थी
bhima nayak को रॉबिनहुड के नाम से भी जाना जाता था और वे आदिवासी समुदाय को एकजुट किया जिससे स्वतंत्रता की जंग में भीमा नायक ने अंग्रेजी शासन की सत्ता को हिला कर रख दिया था।
वर्ष 1857 में भीमा नायक की शक्तिशाली टुकड़ी ने तीर कमान के द्वारा संघर्ष करके अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था
सेंधवा घाट संघर्ष का प्रमुख स्थल बना 3000 लोगों के साथ भीमा नायक, खाज्या नायक ,मेवासिया, दौलत सिंह, कालू बाबा जैसे वीरों ने लड़ाई लड़ी।
और इसी समय तात्या टोपे निमाड़ क्षेत्र या बड़वानी में आए उस समय तात्या टोपे की मुलाकात भीमा नायक (Bhima Nayak) से हुई
निमाड़ परगना खानदेश में भीमा नायक की दहशत फैल गई थी उन्होंने अंग्रेजों के 71 ठिकानों को नष्ट कर दिया था उनकी कर्म स्थली ग्राम दुआवा बावड़ी में भीमा नायक का स्मारक बनाया गया है