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बोलती आंखें

पिता के लाख समझाने पर भी रंजन समझने को तैयार नहीं था ।’ बेटा! प्रद्युम्न ईमानदार है ,वह तुम्हारा पाई -पाई चूका देगा। मैं उसे बचपन से जानता हूं।’लड़की की शादी के बाद हाथ तंग हो हीं जाता है। इतना तैश में आकर चाचा का इज्ज़त लेना ठीक नहीं है। आखिरकार वह तुम्हारा अपना चाचा है। कोई ग़ैर नहीं। शालू क्या तुम्हारी बहन नहीं है ।समझो बहन की शादी में मदद किया।
“रंजन –हूं! वो तो बारात आने के समय प्रद्युम्न चाचा ने मुझे कहा कि बेटा बारात आने वाली है और मेरे पास कुछ पैसे हैं लेकिन मुझे पचास हज़ार कर्ज के तौर पर दो , शादी के दो तीन महीने में लौटा दूंगा। ओर अब एक साल होने जा रहा है पर अभी तक उन्हें पैसे लौटाने का समय हीं नहीं आया है । और आप कहते हैं कि इमानदार है। आज़ मैं चाचा के घर जा रह हूं। तभी समझेंगें। इज्ज़त क्या होती है।
“पिता समझ गया था कि बेटा को समझाना व्यर्थ है सो वह चुप हो गया था। रंजन चाचा के घर जाने को तैयार होने लगा था कि ऐन उसी वक्त डोर बेल बजा र्टिंगं-र्टिंगं-र्टिंगं॰॰॰।”
रंजन दरवाजा खोला तो सामने अपने प्रद्युम्न चाचा को देख कर हतप्रभ रह गया और झूक कर चरण स्पर्श किया।
“चाचा आशीर्वाद दिया और भाई की तरफ़ इशारा करते हुए कहा “सब ठीक-ठाक है न भैया। दोनों भाई गले मिले फिर कहा “बहुत दिन हो गए रंजन को पैसे लौटाने थे सो आज —-अच्छा है रंजन भी मौजूद है वरणा —-! और जेब से पचास हज़ार रुपए की गड्डी निकाल कर रंजन को दिया।वो बेटा गिन लो । बातों को आगे बढ़ाते हुए चाचा ने कहा ; बेटा में बड़ा शर्मिंदा हूं कि साल होने पर तुम्हारा कर्ज चुकाने आया हूं।
“पिता ने गर्व से रंजन को मौन शब्दों में कहा कि –तुम्हारा चाचा ईमानदार है। लेकिन रंजन को काटो तो खून नहीं।वह एक पल के लिए संज्ञा शून्य सा हो गया। वह अपने पिता को देखा और फिर रूपये की गड्डी को अपने चाचा के हाथ में देते हुए कहा –“चाचा जी शालू मेरी भी बहन थी । मैं ने ये पैसे कन्या दान में दिया है। कर्ज नहीं। इतना सुनते हीं रंजन के पिता की भींगी आंखें गर्व से मुस्कुरा उठी, प्रद्युम्न चाचा की दोनों आंखों से आंसू ढलकने लगे ,और रंजन की आंखें ख़ुशी से छलक आए। सभी चुप थे सिर्फ आंखें बोल रही थीं।

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